What is Farz,Sunnat,Wajib|क्या है? – इन 5 चीजों मतलब इस्लाम
फर्ज, सुन्नत, वाजिब, मकरूह, हराम: अर्थ और अंतर”
इस ब्लॉग में, हम ये पाँच अहम इस्लामिक अदेशों के मतलब और अंतर को सरलता से समझेंगे। चलिए, इस्लामिक धर्म की महत्वपूर्ण बातों को अध्ययन करें।
फ़र्ज़ का अर्थ और महत्व: Meaning and importance of duty
What is Farz फ़र्ज़, या फिर “फर्ज”, इस्लाम में वह काम होता है जो हर मुस्लिम के लिए लाज़िमी होता है। इन कामों को करना ईमान का प्रमुख अंग होता है और इस्लामी धर्म के पांच सतून “pillars” में से एक माना जाता है। What is Farz इनमें दिन में पाँच वक्त की नमाज पढ़ना, रमजान में रोजा रखना, जकात देना और हज्ज करना शामिल है। इन कार्यों को पूरा करने से आदमी अपने मज़हबी और रूहानी फ़राइज़ (Fraiz) को पूरा करता है और अपने रब के साथ नजदीकी का अनुभव करता है।
फ़र्ज़ (Farz) दो प्रकार के होते हैं:
फर्ज ऐन (Farz Ain): ये वह काम हैं जो हर एक व्यक्ति को अपने अकेले करने होते हैं और उनको अपने अकेले ही जिम्मेदारी होती है। इन कामों का मिसाल लें, “What is Farz Ain” नमाज पढ़ना, (जुमा: नमाज़ की फजीलत) रोज़ा रखना, जकात देना और हज़ यात्रा करना। ये काम हर मुस्लिम के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं और उन्हें अपने अकेले करने की ज़िम्मेदारी होती है। इन्हें करने से व्यक्ति अपने धार्मिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों को पूरा करता है और अपने ईश्वर के साथ नजदीकी का अनुभव करता है।
फर्ज किफाया (Farz Kifaya): What is Farz Kifaya
फर्ज किफाया (Farz Kifaya): ये वह काम हैं जो समूह के सभी लोगों को मिलकर करने होते हैं और उनको समूचे समुदाय के लिए जिम्मेदारी होती है। इन कामों का मिसाल लें, “What is Farz Kifaya” किसी का निधन होने पर उसकी नमाज़ पढ़ना या किसी के लिए जनाज़ा नमाज़ का इमाम बनना। यदि कोई व्यक्ति इस काम को करता है, तो बाकी सदस्यों को इसे करने की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन अगर कोई इस काम को नहीं करता है, तो समूचे समुदाय को उसकी बजाय उस काम को करने के लिए जिम्मेदारी होती है।
What is Farz (Farz Kifayi) एक ऐसा काम है जिसे समूचे समुदाय के कुछ लोग करते हैं और इसे करने से बाकी सभी समूचे समुदाय के लिए उस काम की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। अगर कोई समूचे समुदाय में फर्ज किफायी का काम करता है, तो बाकी सदस्यों को उस काम को करने की आवश्यकता नहीं होती।
उदाहरण के तौर पर, जब किसी का निधन होता है तो उसकी जनाज़ा में शामिल होना फर्ज किफाया का उदाहरण है। अगर कुछ लोग जनाज़ा में शामिल होते हैं, तो बाकी समूचे समुदाय के लिए यह काम पूरा हो जाता है और उनको इसे करने की ज़रूरत नहीं होती।
इस तरह के कामों को करने से समूचे समुदाय का हित होता है और उनकी सामूहिक जिम्मेदारी बनी रहती है।
इस्फ़लाम में फर्ज़ की अहमियत क्या है?” हदीस और क़ुरान
इस्लाम में “फर्ज” की अहमियत को कुरान और हदीसों में व्यक्त किया गया है। यहाँ कुछ उदाहरण हैं:
फ़र्ज़ के बारे में कुरान: Quran about Farz
- सूरह अल-इस्रा (सूरह 17), आयत 23: “और अपने माता-पिता के साथ अच्छे व्यवहार करने का फर्ज है। अगर तुम्हारी सेहत की कोई संकटकारी तब उनको न आवास देना और न उन्हें बुरी तरह से डांटना। और उनके साथ वक्त बिताना सच्चाई और न्याय में है।”
फ़र्ज़ के बारे में हदीस: Hadith about Farz
- प्रोफेसर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फर्ज की अहमियत को समझाते हुए यह फरमाया: Farz “फर्ज के पास जाओ, फर्ज की ओर जाओ, फर्ज का बयान करो।” (सुनन अबू दाउद)
इन आयतों और हदीसों से स्पष्ट होता है कि इस्लाम में फर्ज का पालन करने की अहमियत को मान्यता दी गई है और यह मुस्लिमों के मज़हबी और सामाजिक जीवन में एक अहम किरदार निभाता है।
वाजिब का अर्थ : reasonable meaning in hindi
“वाजिब” का अर्थ होता है कार्य जो आवश्यक और अनिवार्य है, लेकिन 1फ़र्ज़ की तुलना में कम महत्वपूर्ण होता है। ये कार्य भी इस्लाम में महत्वपूर्ण होते हैं लेकिन उनकी परिभाषा और मापदंड थोड़े नर्म होते हैं। उदाहरण के रूप में, आपातकाल में नमाज पढ़ना, सदाका देना, और मासिक दान करना वाजिब कार्यों में शामिल हो सकता है।
“वाजिब” वह चीज़ है जो इस्लाम में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है और उसे अदा करना अनिवार्य होता है। नमाज़ में “वाजिब” कामों का उदाहरण निम्नलिखित है:
- नमाज़ की तहरीमा: यह उस वक्त होता है जब नमाज़ का पहला तकबीरा कहा जाता है। नमाज़ में इसे कहना वाजिब है और इसे छोड़ना नहीं चाहिए।
- खड़ा होना: नमाज़ के दौरान हमें नमाज़ पढ़ते समय खड़े होना वाजिब है। यदि कोई व्यक्ति नमाज़ के दौरान बैठा रहता है, तो उसकी नमाज़ मान्य नहीं होती।
इन “वाजिब” कामों का अदा करना नमाज़ की वैधता के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सुन्नत की अवधारणा
“सुन्नत” का अर्थ होता है वह कार्य जो प्रोफ़ेसर मोहम्मद साहिब के सुन्नत अर्थात उनकी सिखाई गई बातों, अदायगी के तरीक़े या उनके किए गए कामों के अनुसार होता है। इसे अनिवार्य नहीं माना जाता, लेकिन इसे अनुसरण करना धार्मिक उत्साह और ईमान की अभिव्यक्ति के रूप में महत्वपूर्ण होता है।
सुन्नत (Sunnat) की दो किस्में हैं:
- सुन्नत मुआक्कदा (Sunnat Mu’akkadah): ये वह काम हैं जो प्रोफ़ेसर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने बहुत ही नियमित रूप से किए और अपने साथियों को भी उन्हें करने के लिए सिखाए। उदाहरण के रूप में, रोज़ा रखना सुन्नत मुआक्कदा है क्योंकि प्रोफ़ेत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने को बहुत ही ज़ोर दिया था और अपने साथियों को भी सिखाया।
- सुन्नत ग़ैर मुआक्कदा (Sunnat Ghair Mu’akkadah): ये वह काम हैं जो प्रोफ़ेत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अधिकतर किया, लेकिन उन्होंने इसे बहुत ही नियमित रूप से नहीं किया और न ही अपने साथियों को इसे करने के लिए सख्ती से कहा। उदाहरण के रूप में, जल्दी से सुन्नत नमाज़ पढ़ना सुन्नत ग़ैर मुआक्कदा है, क्योंकि प्रोफ़ेत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कभी-कभी इसे पढ़ा, लेकिन उन्होंने इसे बहुत ही नियमित रूप से नहीं किया।
मकरूह: अर्थ और परिणाम
“मकरूह” का अर्थ होता है कोई कार्य जो इस्लाम में मकरूह या अच्छा नहीं माना जाता है, लेकिन इसकी अपरिहार्यता नहीं होती। ये कार्य जितना अच्छा नहीं है, उतना ही बुरा भी नहीं होता है। इसमें कुछ विशेष आचरणों का त्याग करना शामिल हो सकता है, जैसे कि अल्कोहल का सेवन या गंदे भाषण करना।
मकरूह : (Makrooh) नापसंद को कहते हैं इसकी 2 दो किस्में है
हां, “मकरूह” एक इस्लामी शरीयती टर्म है जो किसी काम को नापसंदीदा या अच्छा नहीं मानता है। मकरूह को दो वर्गों में बांटा गया है:
मकरूह तह्रीमी: Meaning of Makrooh Tahrimi
यह मकरूह है जिसका इस्तेमाल किया गया है जिसे अल्लाह या उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने काफी मना किया है, लेकिन इसका न तो सख्त इस्तेमाल किया जाता है और न ही इसके लिए सख्त सजा दी जाती है।
मकरूह तनजीही: Meaning of Makrooh Tanzihi
यह मकरूह है जिसका इस्तेमाल किया गया है लेकिन इसकी मान्यता कम है। इसके लिए आमतौर पर किसी प्रकार की सजा नहीं होती।
इन दोनों के बीच में अंतर है कि मकरूह तह्रीमी में अधिक सख्तता होती है, जबकि मकरूह तनजीही में कम सख्तता होती है।
हराम का अर्थ और प्रभाव: Meaning and effects of Haram
हराम (Haram) एक ऐसी चीज़ है जो इस्लाम में स्वीकृत नहीं होती और जिसे करना या उससे संबंधित होना मान्य नहीं होता है। ये वे काम होते हैं जो अल्लाह के द्वारा स्पष्ट रूप से निषेधित किए गए होते हैं।
एक प्रमुख उदाहरण है मांसाहारी खाना, जैसा कि खिरखिरा, सुअर का गोश्त, शराब पीना, और हलाल से अलग किया गया मांस का सेवन। इन चीज़ों को खाना या उससे संबंधित होना हराम माना जाता है।
अगर हमें अपने आप को इन चीज़ों से दूर रखना है, तो हम अपने धार्मिक और आध्यात्मिक दायित्वों का पालन करते हैं और अपने आत्मा की शुद्धि बनाए रखते हैं।
क़ुरान में हराम काम का ज़िक्र: Mention of haram work in Quran
हराम काम” का मतलब मुख्तलिफ इंसानी खुसूसियत के मुखालिफ़ रवैया करना है, जो इस्लाम में मना गया है। यह शामिल है, लेकिन महदूद नहीं है, हदूद के बगैर। इस्लाम में, अजर (सवाब) या फिर दिया जाने वाला इनाम, अच्छे काम करने पर मिलता है, और हराम काम से बचने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
कुरान और हदीस में बहुत से स्थानों पर “हराम काम” और उसके परिणामों के बारे में चर्चा की गई है। यहाँ कुछ उदाहरण हैं:
- कुरान में, सूरह अल-इसरा (सूरह 17), आयत 32 में कहा गया है: “और न तुम लोगों का भला काम जो उनमें से है उसे भूल जाना, और फिर किसी को नासिब नहीं होगा उसका।”
- सूरह अल-माइदा (सूरह 5), आयत 90–91 में कुरान में है: “हे इमानवालों! शराब, जुआ और अनजाने में हिंसा का समर्थन करने से परहेज करो, क्योंकि यह शैतान की कार्य तरीके हैं। इसके बावजूद अल्लाह ने तुम्हें बचने और सतर्थ करने का हुक्म दिया है।”
- हदीस में, प्रिफेट मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह फरमाया है: “जब तक लोगों में से किसी ने अपने भाई के लिए चाहा है जैसा कि वह अपने लिए चाहता है, तब तक वह असल मुखालिफात में नहीं है।” (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)
इस्लाम में, हराम काम छोड़ने का अज्र (सवाब) बहुत है और यह अच्छी आदतों को प्रोत्साहित करता है।
इन शब्दों का महत्व
इन मज़हबी शब्दों को समझने और उनके अनुसार आचरण करने से धार्मिक और रूहानी विकास होता है। ये शब्द हमें साहस, संज्ञान और फैसला लेने की सलाहियत फराहम करते हैं और हमें सीधा रास्ते पर चलने में सहायता करते हैं।
निष्कर्ष
इसलिए, “फ़र्ज़, वाजिब, सुन्नत, मकरूह और हराम” ये सभी शब्द इस्लामी धर्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और मानव जीवन को धार्मिकता और आध्यात्मिकता की ओर दिशा देते हैं। इनको समझने और अपने जीवन में अनुपालन करने से हम अपने आत्मिक और आध्यात्मिक विकास में अग्रसर हो सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Farz क्या है?
Farz इस्लामी कर्तव्यों का वो हिस्सा है जो हर मुसलमान पर अनिवार्य (Mandatory) है। इन्हें करना अनिवार्य है और न करने पर गुनाह होता है। जैसे, पाँच वक्त की नमाज़ पढ़ना।
Sunnat का मतलब क्या है?
Sunnat वो कार्य हैं जो पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) ने खुद किए या जिनकी करने की सलाह दी। इन्हें करना पुण्य का काम है, लेकिन छोड़ने पर कोई सजा नहीं होती। उदाहरण: रोज़ा इफ्तार के समय दुआ पढ़ना।
Wajib का मतलब क्या है?
Wajib वो कार्य हैं जो Farz से थोड़ा कम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन फिर भी इनका पालन करना जरूरी है। अगर कोई जानबूझकर Wajib छोड़ता है, तो गुनाह हो सकता है। जैसे, ईद की नमाज़।
Nafl और Mustahab में क्या फर्क है?
Nafl: वो इबादत जो पूरी तरह ऐच्छिक (Optional) है। इन्हें करने से सवाब मिलता है, लेकिन छोड़ने पर कोई पाप नहीं।
Mustahab: वो काम जिनकी सिफारिश की गई है और जिन्हें करने से अल्लाह खुश होते हैं। जैसे, दूसरों की मदद करना।
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