जब तक रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मक्का में थे, किसी भी घटना में यहूदियों का जिक्र नहीं हुआ। लेकिन जब रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मदीना गए, तो वहाँ पहले से ही बहुत सारे यहूदी बसे हुए थे। अब सवाल यह है कि मदीना में इतने सारे यहूदी आए कहाँ से?
यह बात इस वजह से है क्योंकि यहूदियों को लगभग एक हज़ार साल पहले से यह मालूम था कि मदीना और उसके आसपास एक पैगंबर आने वाला है। Taurat ki bhavishyawaniyan
आज से करीब सत्तर साल पहले, तीन अरब चरवाहे (शेपर्ड्स) फ़लस्तीन के पहाड़ों में घूम रहे थे। अचानक उन्हें दूर एक पहाड़ में एक गुफा दिखाई दी। वे उस गुफा के अंदर गए और देखा कि वहाँ सिर्फ दो मटके (जार्स) रखे हुए थे। उन्होंने मटकों को खोला और उनके अंदर पुराने समय के कुछ कागज़ और स्क्रॉल्स (पांडुलिपियाँ) देखीं।
उन्होंने सोचा कि यह शायद कोई पुरानी चीज़ होगी। इसलिए वे उन्हें बाज़ार ले गए और थोड़े पैसे में बेच दिया। वहाँ से ये स्क्रॉल्स किसी तरह अमेरिका के एक वैज्ञानिक, जॉन सी. ट्रैवर, के हाथ लगे। उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि यह यहूदियों की आसमानी किताब “तौरात” है।
लेकिन यह किताब एक अलग अंदाज़ में लिखी गई थी और आज की तौरात से बिल्कुल अलग थी। जॉन सी. ट्रैवर ने इन पांडुलिपियों की तुलना उस समय के सबसे पुराने तौरात से की, जो करीब 1800 साल पुरानी थी। उन्होंने पाया कि दोनों की लेखन शैली और अंदाज़ बिल्कुल समान है।
इससे यह निष्कर्ष निकला कि यह तौरात कम से कम 2200 साल पुरानी है। यानी यह दुनिया की सबसे पुरानी तौरातों में से एक है।
यह पूरी तौरात तो नहीं थी, लेकिन तौरात के कई हिस्से इनमें मौजूद थे। इन स्क्रॉल्स की शुरुआत में यहूदियों के एक पैगंबर, हज़रत इसाया (आईजेया), का ज़िक्र है। इन्हें ईसाई और मुसलमान दोनों सच्चा पैगंबर मानते हैं।
आईजेया की भविष्यवाणियाँ: Taurat ki bhavishyawaniyan
इस पैगंबर ने भविष्य में होने वाली कई घटनाओं की भविष्यवाणी लिखी।
- पहली भविष्यवाणी यह थी कि “नबूकद नेज़र” (बख्ते नस्सर), बाबुल का शक्तिशाली राजा, जो हजारों साल पहले यहूदियों पर अत्याचार कर रहा था, उसकी हुकूमत को एक शख्स तबाह कर देगा और यहूदियों को उनके इलाकों में वापस बसाएगा।
यह भविष्यवाणी हज़रत साइरस द ग्रेट (फ़ारस के महान बादशाह) की शक्ल में पूरी हुई। उन्हें कई इस्लामी विद्वान “ज़ुलक़रनैन” भी मानते हैं। - दूसरी भविष्यवाणी यह थी कि मदीना में यहूदियों का बसना।
स्क्रॉल्स में अन्य भविष्यवाणियाँ
इन पांडुलिपियों में एक और महत्वपूर्ण भविष्यवाणी लिखी है: Taurat ki bhavishyawaniyan
“देखो, वह मेरा सेवक है जिसे मैंने चुना है और सशक्त बनाया है। मैं उसमें अपनी आत्मा की शक्ति भर दूंगा, और वह सत्य और न्याय का परचम बुलंद करेगा। जब तक इंसाफ पूरी तरह से कायम न हो जाए, वह अपने प्रयास में डटा रहेगा।”
इसके अलावा, एक और उल्लेख मिलता है: Taurat ki bhavishyawaniyan
“कैदार के लोगों के बसेरे आनंद और उत्सव से गूंज उठें, और उनके क्षेत्रों में खुशहाली का माहौल बन जाए।”
कैदार कौन है?: Taurat ki bhavishyawaniyan
कैदार, हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के बेटे हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) के दूसरे बेटे का नाम था। कैदार के वंशजों ने अरब में एक बड़ी सल्तनत कायम की, और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) भी इसी वंश से थे।
सेला का उल्लेख
तौरात में एक और भविष्यवाणी यह है:
“सेला के लोग पहाड़ पर चढ़कर खुशी के नारे लगाएंगे।”
आज भी तौरात में सेला का उल्लेख मिलता है। गूगल मैप्स पर “सेला अरब” लिखें और खोजें। सेला का मतलब ‘कटा हुआ’
यहाँ कुछ सुधार किए गए हैं, और बाकी को उसी अंदाज़ में रखा गया है:
सेला पहाड़: मस्जिद-ए-नबवी के सबसे नजदीक
आप सीधा इस पहाड़ की लोकेशन पर पहुँचेंगे। यह पहाड़ आज भी मदीना में है। और सिर्फ मदीना में ही नहीं, बल्कि मस्जिद-ए-नबवी का सबसे नज़दीक पहाड़ यही सेला पहाड़ है।
- मस्जिद-ए-नबवी से दूरी: यह पहाड़ मस्जिद-ए-नबवी से सिर्फ 500 मीटर दूर है।
- इतिहास और महत्व: यह दूरी किलोमीटर में भी नहीं, बल्कि सिर्फ मीटर में है। यहूदियों की तौरात में इसका जिक्र मिलता है।
तौरात और सेला पहाड़ का जिक्र
तौरात में सेला के लोगों को कहा गया है:
- पहाड़ पर चढ़ने का आदेश: “पहाड़ पर चढ़ो और खुशी के नारे लगाओ।”
- पहले से जानकारी: तौरात में यहूदियों को पहले ही बता दिया गया था कि मदीना में एक पैगंबर आने वाला है।
यहूदियों का मदीना की ओर पलायन
पैगंबर की प्रतीक्षा में यहूदियों का आगमन: Taurat ki bhavishyawaniyan
- यहूदियों को इस बात का पूरा अंदाजा था कि बहुत जल्द मदीना में एक पैगंबर आएगा।
- इसीलिए फलस्तीन से यहूदी मदीना और इसके आसपास शिफ्ट होना शुरू हुए।
रोमन युद्ध के बाद:
- यहूदी और रोमन एम्पायर की लड़ाई के बाद बड़ी संख्या में यहूदी मदीना और खैबर में बसने लगे।
- खैबर का मुख्यालय: खैबर को उन्होंने अपने व्यापार और ज्ञान का केंद्र बना लिया।
यहूदी और मदीना के अरबों के रिश्ते
मदीना के अरब यहूदियों से प्रभावित:
- मदीना के अरब यहूदियों के ज्ञान और व्यापार के तरीकों से प्रभावित थे।
- जैसे आज दुनिया यहूदियों के इंटेलिजेंस और बिजनेस से प्रभावित है।
यहूदियों की धमकी:
- यहूदी अक्सर कहते थे:
मदीना के अरबों का डर:
- यह बात पीढ़ी दर पीढ़ी मदीना के लोगों को बताई जाती रही।
- इस कारण मदीना वालों को यकीन हो गया कि जल्द ही एक पैगंबर आने वाला है।
इस्लाम का मदीना में प्रवेश
मसअब बिन उमैर का आगमन:
- अचानक एक दिन मक्का से मसअब बिन उमैर मदीना आए।
- उन्होंने मदीना के लोगों को इस्लाम की दावत दी और बताया:
“मक्का में एक अरब नबी का प्रकट होना हुआ है, लेकिन लोग उनके संदेश की अनदेखी कर रहे हैं।”
मदीना के लोगों की प्रतिक्रिया:
- यह सुनकर मदीना वालों को हैरानी हुई:
- उन्होंने तुरंत इस्लाम कबूल कर लिया।
यहूदियों का इंकार:
- यहूदियों ने इंकार कर दिया कि यही पैगंबर हैं।
- लेकिन कुछ यहूदियों ने इस्लाम कबूल किया और अपनी जान दी।
तौरात और मुहम्मद (ﷺ) का जिक्र:
- कुछ यहूदियों ने तौरात से साबित किया कि मुहम्मद (ﷺ) का जिक्र पहले से मौजूद था।
- हज़रत सलमान फारसी को भी एक क्रिश्चियन प्रीस्ट ने मदीना भेजा था।
यहूदियों की साजिशें और खैबर की जंग
पैगंबर को न मानने की जिद:
- यहूदियों ने पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) को न सिर्फ इंकार किया, बल्कि उनके खिलाफ साजिशें कीं।
खैबर की जंग:
- खैबर की जंग में यहूदियों की ताकत हमेशा के लिए खत्म कर दी गई।
- यहूदियों द्वारा सैकड़ों सालों में जमा किया गया मान मुसलमानों को मिल गया।
मक्का के लोगों पर असर:
- मक्का वालों को समझ आ गया कि खैबर के बाद अगली बारी उनकी है।
तौरात में मक्का का जिक्र:
- लेकिन उनकी ही किताब में लिखा है कि मक्का में खुदा का घर है।
साम 84 और यहूदी धर्मग्रंथ
धनाख और साम 84 का महत्व:
- यहूदियों की किताब धनाख के तीन हिस्से हैं:
- तौरात: मूसा अलेहिस्सलाम पर नाज़िल।
- नवियामन: अन्य पैगंबरों पर नाज़िल।
- खैटुएम: इसका हिस्सा The Book of Psalms है।
साम 84 का जिक्र:
- साम 84 में लिखा है:
- “कितनी हसीन है तेरे रहने की जगह, ऐ अजीम रब।”
- “उनका दिल ‘पिलग्रिमेज’ यानी हज की ओर होता है।”
- “जब वे मक्का की वादी के पास से गुजरते हैं, तो वह वादी चश्मों में बदल जाती है।”
निष्कर्ष
यहूदी और ईसाई धर्मग्रंथों में मक्का और मदीना का जिक्र स्पष्ट रूप से मिलता है। यहूदियों का इनकार, उनकी साजिशें, और खैबर की जंग इस्लामी इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं। साम 84 का उल्लेख और मक्का के महत्व को समझना आज भी प्रासंगिक है।
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