Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein

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Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein

{ اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ: हमें सीधा रास्ता दिखा।}
इस आयत में, अल्लाह तआला की ज़ात और उसकी सिफ़ात की पहचान के बाद, उसकी इबादत और उसकी मददगारी का ज़िक्र किया गया है। अब यहाँ से बंदों को यह दुआ सिखाई जा रही है कि वे यूं अर्ज़ करें:
“ऐ अल्लाह! (अज़्ज़ व जल), तूने अपनी तौफ़ीक़ से हमें सीधा रास्ता दिखा दिया है, अब हमारी इस रास्ते की तरफ़ हिदायत में इज़ाफ़ा फरमा और हमें इस पर मज़बूत क़दमों के साथ क़ायम रख।”

सिरात-ए-मुस्तक़ीम का मतलब: Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein

सिरात-ए-मुस्तक़ीम का मतलब है “अकीदों का सीधा रास्ता,” जिस पर तमाम अंबिया अलैहिमुस्सलाम चले।
या इससे मुराद “इस्लाम का सीधा रास्ता” है, जिस पर सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम), बुजुर्गाने-दीन और औलिया-ए-किराम (रहमतुल्लाह अलैहिम) चले।
जैसा कि अगली आयत में बयान किया गया है। यह रास्ता अहल-ए-सुन्नत का है, क्योंकि अब तक तमाम औलिया-ए-किराम (रहमतुल्लाह अलैहिम) सिर्फ इसी मस्लक-ए-अहल-ए-सुन्नत में गुज़रे हैं।
अल्लाह तआला ने इन्हीं के रास्ते पर चलने और इन्हीं के साथ होने का हुक्म दिया है।

फरमान-ए-बारी तआला:

और हज़रत अनस से रिवायत है:
सैयदुल मुरसलीन (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया: Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein

(इब्न माजा, किताबुल फितन, बाबुस्सुवादुल आज़म, 4/327, अल-हदीस: 3950)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत:

नबी-ए-अकरम (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया: Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein

सहाबा-ए-किराम (رضي الله عنه) ने अर्ज़ की:


इरशाद फ़रमाया:

(तिर्मिज़ी, किताबुल ईमान, बाबु मा जा फी इफ्तिराक…, 4/291-292, अल-हदीस: 2650)


हिदायत हासिल करने के वसीले: Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein

याद रहे कि अल्लाह तआला ने हिदायत हासिल करने के बहुत से वसीले अता फ़रमाए हैं। इनमें से कुछ यह हैं:

  1. इंसान की ज़ाहिरी और बातिनी सलाहियतें:
    जिन्हें इस्तेमाल करके इंसान हिदायत हासिल कर सकता है।
  2. आसमानों और ज़मीनों की निशानियां:
    जो अल्लाह तआला की कुदरत और वहदानियत की दलील देती हैं। इन पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करके इंसान हिदायत पा सकता है।
  3. अल्लाह तआला की नाज़िल की हुई किताबें:
    तौरात, इंजील, ज़बूर, और क़ुरान मजीद। क़ुरान मजीद नाज़िल होने से पहले की किताबें हिदायत का सबब थीं और अब क़ुरान मजीद लोगों के लिए हिदायत का सबसे बड़ा वसीला है।
  4. अल्लाह तआला के भेजे हुए खास बंदे:
    यानी अंबिया कराम और मुरसलीन-ए-एज़ाम (अलैहिमुस्सलाम), जो अपनी-अपनी क़ौमों के लिए हिदायत का वसीला थे।
    हमारे नबी, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), क़यामत तक आने वाले तमाम इंसानों के लिए हिदायत का वसीला हैं।

आयत “اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ” से मिलने वाले हुक्म: Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein

इस आयत से तीन अहम बातें मालूम होती हैं:

  1. हर मुसलमान को अल्लाह तआला से सीधे रास्ते पर कायम रहने की दुआ मांगनी चाहिए।
    सीधा रास्ता मंज़िल-ए-मक़सूद तक पहुंचा देता है, जबकि टेढ़ा रास्ता मक़सूद तक नहीं पहुंचाता।
    अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है कि अक़्ल वाले इस तरह दुआ मांगते हैं:
    “اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ” (हमें सीधा रास्ता दिखा)।”

और हज़रत अनस (رضي الله عنه) फरमाते हैं: Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein
हज़ूर-ए-पुरनूर (ﷺ) अक्सर यह दुआ फ़रमाया करते थे:
“या मुकल्लिबल कुलूब, सब्बित क़ल्बी अला दीनिक।”

तो मैंने अर्ज़ की:

हज़ूर-ए-अकदस (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया:
“हाँ! बेशक दिल अल्लाह तआला की (शान के लायक) उंगलियों में से दो उंगलियों के बीच हैं, वह जैसे चाहता है उन्हें फेर देता है।”
(तिर्मिज़ी, किताबुल क़दर, बाबु मा जा अन्नल कुलूब…, 4/55, अल-हदीस: 2147)


सीखने योग्य बातें:

  1. इबादत के बाद दुआ में मशगूल होना चाहिए।
  2. सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि तमाम मुसलमानों के लिए दुआ मांगनी चाहिए, क्योंकि इस तरह दुआ ज़्यादा मक़बूल होती है।

उन इनाम लोगों का रास्ता
यह वाक्य पिछली आयत की व्याख्या है कि सीधा रास्ता (सिरात-ए-मुस्तकीम) से तात्पर्य उन लोगों का रास्ता है जिन पर अल्लाह तआला ने इनाम किया।

अल्लाह तआला ने जिन पर अपना फ़ज़ल और इनाम फरमाया, उनके बारे में इरशाद है:

{صِرَاطَ الَّذِیْنَ اَنْعَمْتَ عَلَیْهِمْ} से मिलने वाले पाठ:

  1. बुजुर्गों के जिन अमल और रास्तों पर अल्लाह का इनाम हुआ, वही सीधा रास्ता है।
  2. इमाम फखरुद्दीन राज़ी (रह.) ने कहा है कि यह आयत इस बात का प्रमाण है कि अल्लाह की हिदायत पाने और सच्चे मार्ग पर चलने के लिए किसी “कामिल (पूर्ण) “एक योग्य मार्गदर्शक का होना आवश्यक है, जिससे इंसान उसकी सही दिशा-निर्देशों के साथ सही मार्ग पर चल सके।”

{غَیْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَیْهِمْ وَ لَا الضَّآلِّیْنَ: न कि उनका रास्ता जिन पर तेरा ग़ज़ब हुआ और न ही बहके हुए लोगों का।}

  • जिन पर अल्लाह का ग़ज़ब हुआ उनसे मुराद यहूदी हैं।
  • और जो गुमराह हुए उनसे मुराद ईसाई हैं।

इमाम फखरुद्दीन राज़ी (रह.) ने यह भी लिखा कि ग़ज़ब वालों से मतलब “बदअमल” लोग हैं और गुमराह वालों से मुराद “बदअक़ीदा” लोग हैं।

{وَلَا الضَّآلِّیْنَ} से जुड़े पाठ:

  1. हर मुसलमान को चाहिए कि अपने अक़ीदे और आमाल दोनों में यहूदियों और ईसाइयों से अलग रहे।
  2. उनके तौर-तरीकों, रिवाजों और फ़ैशन को अपनाने से बचना चाहिए।
  3. अपनी ज़िंदगी को क़ुरआन और सुन्नत के मुताबिक़ ढालने में ही कामयाबी है।

आमीन

  • “आमीन” का मतलब है: “हे अल्लाह! इसे कुबूल कर।”
  • यह क़ुरआन का हिस्सा नहीं है, लेकिन सूरह फातिहा के बाद इसे कहना सुन्नत है।
  • हन्फ़ी मसलक के मुताबिक़, नमाज़ में “आमीन” धीमी आवाज़ में कहा जाएगा।

शिक्षा:
हर मुसलमान को क़ुरआन की सही तिलावत और इसकी शिक्षाओं के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने की कोशिश करनी चाहिए।

6 FAQs on “Surah Fatiha Tafseer Hindi Mein | Sirat-e-Mustaqeem Aur Uski Ahmiyat”

सूरह फातिहा को क्यों ‘उम्मुल-किताब’ कहा जाता है?

सूरह फातिहा को ‘उम्मुल-किताब’ (किताब की माँ) इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह कुरान का सार है। इसमें इस्लामी अक़ीदा, इबादत और दुआ की खूबसूरती समाई हुई है।

सिरात-ए-मुस्तकीम’ का क्या मतलब है?

‘सिरात-ए-मुस्तकीम’ का मतलब है सीधा और सही रास्ता। यह अल्लाह के हुक्मों और नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बताए हुए तरीके पर चलने को दर्शाता है।

सूरह फातिहा का मुसलमानों की नमाज़ में क्या महत्व है?

सूरह फातिहा नमाज़ का अहम हिस्सा है। इसे हर रकअत में पढ़ा जाता है और बिना इसके नमाज़ मुकम्मल नहीं मानी जाती।

सूरह फातिहा में अल्लाह की कौन-कौन सी सिफतें बताई गई हैं?

सूरह फातिहा में अल्लाह की सिफतें जैसे रहमान (दया करने वाला), रहीम (मेहरबान) और मालिक-ए-यौम-ए-दीन (कयामत के दिन का मालिक) का ज़िक्र है।

नेमत वाले लोगों’ से क्या तात्पर्य है?

‘नेमत वाले लोग’ वे लोग हैं जो अल्लाह की रहमत और हिदायत से सरफ़राज़ हुए, जैसे नबी, सिद्दीक़, शहीद और नेक लोग।

सूरह फातिहा पढ़ने का क्या फायदा है?

सूरह फातिहा पढ़ने से अल्लाह से हिदायत मांगी जाती है। यह एक दुआ है जो इंसान को सीधा रास्ता दिखाने और गलत रास्तों से बचाने की ताकत देती है।

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  • Islamichindi.com के मुसन्निफ़ इस्लामी मालूमात, क़ुरआन-ओ-हदीस और तारीख़ के माहिर हैं। बरसों से इस्लामी तालीमात को सहीह और मुसद्दक़ तरीके़ से अवाम तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। इनका मक़सद है के आम ज़बान में लोगों तक दीन-ए-इस्लाम की हक़ीक़ी तालीमात पहुँचाई जाएँ।

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Sher Mohammad Shamsi

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