बिस्मिल्लाह हिर रहमान निर रहीम
शुरुआत अल्लाह के नाम से जो बे-हद मेहरबान और रहम करने वाला है।
सूरह अल-फातिहा कुरान की पहली सूरह है और इसे कुरान का मुकद्दिमा भी कहा जाता है। इस सूरह की बहुत ज्यादा अहमियत है और इसे हर नमाज़ में पढ़ा जाता है। “Surah Fatiha” यह अल्लाह की हम्द, उसकी रहमत और रहनुमाई का ज़िक्र करती है। इसे “उम्मुल-किताब” यानि किताब की मां भी कहा जाता है क्योंकि इसमें इस्लाम की बुनियादी तालीमात मौजूद हैं। Surah Fatiha hindi mein
Surah Fatiha In Hindi : सूरह अल-फातिहा का मफ़हूम
अल्हम्दु लिल्लाहे रब्बिल आलमीन
तमाम तारीफें उस अल्लाह के लिए हैं जो सारे जहानों का मालिक है।
यह आयत हमें ये सिखाती है कि अल्लाह के लिए तारीफ करना सबसे पहला काम है। अल्लाह न सिर्फ़ हमारे बल्कि तमाम मखलूकात का रब्ब है, वो हर एक को बनाता, पालता और हिफाज़त करता है। उसकी रहमत हर मखलूक पर छाई रहती है।
अर-रहमान-रहीम
बेहद मेहरबान और हमेशा रहम करने वाला।
अल्लाह के दो अहम अस्मा का यहां ज़िक्र है – अर-रहमान और रहीम। अर-रहमान का मतलब है कि अल्लाह इस दुनिया में सब पर रहमत करता है, चाहे वो मोमिन हो या गैर-मोमिन। रहीम का मतलब है कि वो आखिरत में सिर्फ मोमिनों पर खास रहम करेगा। अल्लाह की रहमत उसकी सबसे बड़ी खासियतों में से एक है। Full Namaz : Step By Step in Hindi best Translation
मालिकी यौमिद्दीन
बदले के दिन का मालिक।
यहां अल्लाह को क़यामत के दिन का मालिक बताया गया है, जब हर इंसान को उसके अमल का हिसाब देना होगा। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमारी जिंदगी का एक हिसाब होगा और अल्लाह की अदालत में कोई भी चीज़ छुपी नहीं रह सकती।
इय्याका नाबुदु वा इय्याका नस्तईन
हम सिर्फ़ तेरी इबादत करते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं।
यहां हमें इखलास और तवक्कुल सिखाया जा रहा है। सिर्फ़ अल्लाह ही हमारी इबादत और मदद का हकदार है। यह आयत हमें इस बात की याद दिलाती है कि हम अपनी ताकत या किसी और पर भरोसा नहीं कर सकते, अल्लाह ही हमारी हर ज़रूरत को पूरा करने वाला है। अगर आप मुस्लमान है तो आप इसे भी पढ़ें तक़दीर पर ईमान
इह्दिनस सिरातल मुस्तकीम
हमें सीधे रास्ते पर चला।
यह दुआ हर मुसलमान की ज़रूरत है। हम अल्लाह से मांगते हैं कि वो हमें सही राह दिखाए, जो उसे पसंद हो और जिसके जरिए हम उसकी रज़ा हासिल कर सकें।
सिरातल लज़ीना अन’अम्ता अलैहिम ग़ैरिल मग़दूबे अलैहिम वलद्दालीन
उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने इनाम किया, न कि उन लोगों का जिन पर तेरा ग़ज़ब हुआ और न ही जो गुमराह हुए।
यहां अल्लाह से मांग की जा रही है कि हमें ऐसे लोगों के रास्ते पर चलाए जिन पर अल्लाह का इनाम हुआ, जैसे कि पैगंबर, सिद्दीक़, शहीद और नेक लोग। साथ ही, हमें उन लोगों के रास्ते से बचाने की दुआ की गई है जिन पर अल्लाह का ग़ज़ब हुआ और जो गुमराह हो गए। इसमें यह सिखाया गया है कि हमें गलत राह से बचना चाहिए और अल्लाह की रहनुमाई में चलना चाहिए। Surah Al-Fatiha in Arabic
सूरह फातिहा की अहमियत : Surah Fatiha Ki Ahmiyat?
सूरह अल-फातिहा की पढ़ाई हर मुसलमान की जिंदगी का हिस्सा है। यह नमाज़ में हर रकाअत में पढ़ी जाती है और इसके बगैर नमाज़ मुकम्मल नहीं मानी जाती। हदीसों में सूरह फातिहा की बहुत फज़ीलत बताई गई है। एक हदीस में रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने फरमाया, “जब मेरा बन्दा सूरह फातिहा पढ़ता है, तो मैं उसका जवाब देता हूं।”
इस सूरह में अल्लाह की हम्दो-सना, उसकी रहमत, उसकी इबादत, और उसकी रहनुमाई की दुआ शामिल है। यह हमारे लिए एक मुकम्मल दुआ है जिसमें दुनिया और आखिरत की भलाई मांगी गई है। इसे भी ज़रूर पढ़ें …तहज्जुद की दुआ
सूरह फातिहा से सीखने वाले सबक: Surah Fatiha sikhen
- अल्लाह की तारीफ: हमें अपनी जिंदगी में अल्लाह की तारीफ को पहले रखना चाहिए। उसकी नेमतों का शुमार करना मुश्किल है, इसलिए हर हाल में उसकी तारीफ करनी चाहिए।
- रहमत की उम्मीद: अल्लाह अर-रहमान और रहीम है। वो हर हाल में हमारे साथ है और उसकी रहमत पर हमें हमेशा यकीन रखना चाहिए।
- अंजाम का ख्याल: क़यामत का दिन यकीनी है। हमें अपने अमल का हिसाब देना है, इसलिए हमें अपनी जिंदगी अल्लाह की मर्जी के मुताबिक गुजारनी चाहिए।
- इखलास और तवक्कुल: हमें अपनी इबादत में अल्लाह के लिए इखलास रखना चाहिए और मदद सिर्फ उसी से मांगनी चाहिए।
- सही रास्ते की दुआ: हर दिन हमें अल्लाह से सही रास्ते पर चलने की दुआ करनी चाहिए ताकि हम गुमराह न हों और उसकी रज़ा हासिल कर सकें।
सूरह अल-फातिहा के नाम और उनके मतलब
सूरह अल-फातिहा को कुरआन का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है। इसे कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जो इसके मतलब और मक़सद को बयान करते हैं। ये नाम इसकी फज़ीलत और अहमियत को समझाने में मदद करते हैं। आइए, इन नामों पर नज़र डालते हैं:
1. अल-फातिहा (الْفَاتِحَة)
इसका मतलब है “शुरुआत” या “इफ्तिताह”। यह सूरह कुरआन-ए-पाक की पहली सूरह है, इसलिए इसे अल-फातिहा कहा जाता है। यह इबादत की शुरुआत और अल्लाह से दुआ करने का सबसे पहला तरीका सिखाती है।
2. उम्मुल-किताब (أُمُّ الْكِتَاب)
इसका मतलब है “किताब की माँ”। इसे उम्मुल-किताब इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह पूरे कुरआन का निचोड़ है। इसमें अल्लाह की तारीफ, रहमत, इंसाफ, और इबादत का मक्सद बयान किया गया है।
3. अस-सबअल-मथानी (السَّبْعُ الْمَثَانِي)
इसका मतलब है “सात बार दोहराई जाने वाली आयतें”। इसे नमाज़ में हर रकअत में पढ़ा जाता है, जो इसकी अहमियत को दर्शाता है।
4. अल-हम्द (الْحَمْد)
इसका मतलब है “तारीफ”। इस सूरह की शुरुआत अल्लाह की तारीफ से होती है, इसलिए इसे अल-हम्द कहा जाता है।
5. अश-शिफा (الشِّفَاء)
इसका मतलब है “शिफा” या “इलाज”। इसे रूहानी और जिस्मानी बीमारियों के इलाज के लिए पढ़ा जाता है।
6. अस-सलाह (الصَّلَاة)
इसका मतलब है “नमाज़”। इसे अस-सलाह कहा गया क्योंकि यह नमाज़ का अहम हिस्सा है और बिना इसके नमाज़ मुकम्मल नहीं होती।
7. अद-दुआ (الدُّعَاء)
इसका मतलब है “दुआ”। यह सूरह अल्लाह से रहमत और मदद मांगने का बेहतरीन तरीका सिखाती है।
8. रुहुल-कुरआन (رُوحُ الْقُرْآن)
इसका मतलब है “कुरआन की रूह”। इसे कुरआन की जान कहा जाता है क्योंकि इसमें पूरी किताब का मकसद बयान किया गया है।
सूरह अल-फातिहा के ये नाम इसके मतलब और मक्सद को गहराई से समझाते हैं। हर नाम इस सूरह की खासियत और इसके जरिए मिलने वाली रहमतों को बयान करता है। यह सूरह हर मुसलमान के दिल के करीब है और इसे पढ़कर इन्सान अल्लाह से अपना रिश्ता मजबूत करता है।
नतीजा
सूरह अल-फातिहा एक ऐसी सूरह है जो हमें जिंदगी के हर पहलू में रहनुमाई देती है। यह अल्लाह की अज़मत, रहमत, और इंसान की जरूरतों को पूरा करने का तसव्वुर पेश करती है। इसकी हर आयत हमें ज़िंदगी के असल मकसद से वाकिफ कराती है। हमें चाहिए कि हम इस सूरह को सिर्फ जुबान से ही नहीं बल्कि दिल से भी समझें और अमल करें।
Surah Fatiha: FAQs
सूरह फातिहा की कितनी आयतें हैं?
सूरह फातिहा कुल 7 आयतों पर मुश्तमिल है, और इसे “सबअ मसायनी” (सात बार पढ़ी जाने वाली आयतें) भी कहा जाता है।
क्या सूरह फातिहा के बिना नमाज़ मुकम्मल मानी जाती है?
नहीं, सूरह फातिहा के बिना नमाज़ मुकम्मल नहीं होती। यह नमाज़ की हर रकाअत में पढ़ी जाती है और इसे छोड़ना नमाज़ को नाकाम कर देता है।
सूरह फातिहा का क्या मतलब है?
सूरह फातिहा का मतलब है “खोलने वाली” या “शुरूआत करने वाली,” क्योंकि यह कुरान की पहली सूरह है और हर नमाज़ की शुरुआत इसी से होती है।
सूरह फातिहा किस मकसद से पढ़ी जाती है?
सूरह फातिहा अल्लाह की तारीफ, उसकी रहमत की दुआ, और सही रास्ते पर चलने की रहनुमाई मांगने के लिए पढ़ी जाती है। यह हमारी दुआओं का निचोड़ है।
सूरह फातिहा की तिलावत का क्या फायदा है?
सूरह फातिहा पढ़ने से अल्लाह की रहमत और हिदायत हासिल होती है। यह न सिर्फ नमाज़ में बल्कि रोज़मर्रा की दुआओं में भी अहमियत रखती है, और इससे अल्लाह के करीब जाने का ज़रिया मिलता है।
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