Search The Query
Search
  • Home
  • Islam
  • सोच नहीं माइंड सेट करो : Soch nahi Mindset karo

सोच नहीं माइंड सेट करो : Soch nahi Mindset karo

हेलो दोस्तों, Soch nahi Mindset karo गुलारी बुक्स पर आपका दिल से स्वागत है। आज हम एक ऐसी किताब की

गहराई में उतरने जा रहे हैं जो आपकी सोच को बदल सकती है और आपके जीवन को नई दिशा

दे सकती है। थिंकलेस डू मोर बाय पीटर होलिंस। यह किताब उन लोगों के लिए एक गेम

सोच नहीं माइंड सेट करो : Soch nahi Mindset karo

चेंजर है जो अपने आलस, टालमटोल और परफेक्शन की जिद को पीछे छोड़कर कुछ बड़ा

करना चाहते हैं। क्या आपने कभी महसूस किया कि आप कोई काम शुरू करने से पहले इतना

ज्यादा सोचते हैं कि वह काम कभी शुरू ही नहीं होता। जैसे कि आप एक नया प्रोजेक्ट

लेना चाहते हैं। लेकिन यह सोच कर रुक जाते हैं कि यह तो परफेक्ट होना चाहिए। वरना

क्या फायदा? यह सोच आपको जकड़ लेती है और आप बस सोचते रहते हैं लेकिन कदम नहीं उठा

पाते। इसे ही इनर्शिया कहते हैं। एक तरह की मानसिक जड़ता या ठहराव जो आपको आगे

बढ़ने से रोकता है। लेकिन दोस्तों इसका इलाज इतना आसान है कि आप सुनकर हैरान रह

जाएंगे। बस अपने स्टैंडर्ड्स को थोड़ा कम कर लीजिए। जी हां, इतना साधारण। आइए इसे

समझते हैं। कल्पना करें कि आप कुछ नया सीखना चाहते हैं। जैसे कि पेंटिंग करना,

गिटार बजाना या कोई नया बिजनेस शुरू करना। अगर आप यह सोच लें कि पहली बार में ही

आपको माइकल एंजेलो जैसी पेंटिंग बनानी है या जमी हैंड्रिक्स की तरह गिटार बजाना है,

तो आप शायद कभी ब्रश उठाएंगे ही नहीं ना ही गिटार के तार छुएंगे। क्यों? क्योंकि

आपको लगेगा कि आप अभी तैयार नहीं हैं। आपको लगेगा कि जब तक आप परफेक्ट नहीं

सोच नहीं माइंड सेट करो : Soch nahi Mindset karo

होंगे तब तक कोशिश करने का कोई मतलब नहीं। लेकिन अगर आप अपने स्टैंडर्ड्स को थोड़ा

नीचे लाएं जैसे कि बस एक छोटा सा डूडल बनाएं या गिटार पर एक साधारण धुन ट्राई

करें तो आप शुरुआत तो करेंगे। और दोस्तों शुरुआत ही सबसे बड़ी जीत है। एक बार गति

मिल गई तो आगे बढ़ना आसान हो जाता है। यह ऐसा है जैसे साइकिल चलाना शुरू करना। पहला

पैडल मारना सबसे मुश्किल होता है। लेकिन एक बार गति पकड़ ली तो आप आसानी से चले

जाते हैं। अब मान लीजिए आपको एक बड़ा टास्क करना है। जैसे कि 10 पेज की एक

रिपोर्ट लिखना। अगर आप सोचेंगे कि यह रिपोर्ट इतनी शानदार होनी चाहिए कि हर कोई

दंग रह जाए तो वह टास्क आपको पहाड़ की तरह लगेगा। आप सोच-सच कर थक जाएंगे और

प्रोक्रेस्टिनेशन यानी टालमटोल शुरू हो जाएगा। आप कहेंगे कल से शुरू करूंगा या

थोड़ा और रिसर्च कर लूं फिर लिखूंगा। लेकिन अगर आप यह सोें कि बस पहला पैराग्राफ लिखना है। चाहे वह कितना भी रफ

क्यों ना हो तो आप काम शुरू कर देंगे। और एक बार शुरू कर लिया तो आधा काम हो गया।

हमारा दिमाग फिनिश लाइन को देखने में ज्यादा दिलचस्पी लेता है। लेकिन जब वह फिनिश लाइन बहुत दूर दिखती है तो डर लगने

लगता है। इस डर को हराने का सबसे आसान तरीका है अपने पहले कदम को इतना छोटा और

आसान बना लें कि उसे करना मजबूरी बन जाए। उदाहरण के लिए अगर आप एक्सरसाइज शुरू करना

चाहते हैं तो यह मत सोचिए कि आपको रोज 1 घंटे जिम में पसीना बहाना है। बस यह सोचिए

सोच नहीं माइंड सेट करो : Soch nahi Mindset karo

कि 5 मिनट की स्ट्रेचिंग करनी है। 5 मिनट इतना तो कोई भी कर सकता है। और जब आप 5

मिनट की स्ट्रेचिंग कर लेंगे तो हो सकता है आपको लगे कि अरे थोड़ा और कर लूं। यही

वह जादू है जो इनर्शिया को तोड़ता है। पूर्णतावाद यानी परफेक्शनिज्म हमारी

प्रगति का सबसे बड़ा दुश्मन है। हम सोचते हैं कि हर चीज में हमें तुरंत परफेक्ट

होना चाहिए।

 लेकिन सच्चाई यह है कि परफेक्शन कोई एक पल में नहीं आता। वह आता

है धीरे-धीरे बार-बार कोशिश करने से, गलतियां करने से और उनसे सीखने से। पहली

ड्राफ्ट हमेशा खराब होती है। पहली कोशिश हमेशा औसत होती है और पहला कदम हमेशा

थोड़ा डगमगाता है। लेकिन अगर आप इसे स्वीकार कर लें और खुद को यह इजाजत दें कि

शुरुआत में आपका काम औसत हो सकता है तो आप इनर्शिया को हरा सकते हैं। सोचिए एक बच्चा

जब चलना सीखता है तो क्या वह पहली बार में बिना गिरे दौड़ने लगता है? नहीं ना? वह

गिरता है, रोता है, फिर उठता है, फिर गिरता है और धीरे-धीरे चलना सीखता है। अगर

वह यह सोच ले कि जब तक बिना गिरे नहीं चल सकता, तब तक कोशिश ही नहीं करेगा, तो वह

कभी चलना ही नहीं सीखेगा। हमारी जिंदगी में भी यही माइंडसेट चाहिए। हमें यह समझना

होगा कि शुरुआत में गिरना, गलतियां करना और औसत काम करना पूरी तरह सामान्य है। यह

सीखने का हिस्सा है। कई बार हम सोचते हैं कि अगर हम कम स्टैंडर्ड्स रखेंगे तो हमारा

काम बेकार होगा। लेकिन यह बिल्कुल गलत है। शुरुआत करना ही किसी भी टास्क का सबसे

मुश्किल हिस्सा होता है। और अगर आप उस हिस्से को आसान बना लें तो आगे का सफर

अपने आप सुगम हो जाता है। जब आप लिखना शुरू करते हैं तो धीरे-धीरे आप एडिट कर

सकते हैं। जब आप एक्सरसाइज शुरू करते हैं तो आपकी स्टैमिना धीरे-धीरे बढ़ती है। जब

आप कोई नया बिजनेस शुरू करते हैं तो धीरे-धीरे आप उसे बेहतर बनाते हैं। लेकिन

अगर आप बस यह सोचते रहें कि शुरुआत ही परफेक्ट होनी चाहिए तो आप शायद कभी शुरू

ही नहीं करेंगे। इसलिए अगली बार जब भी आपको लगे कि आप किसी काम को करने में बहुत

ज्यादा प्रेशर महसूस कर रहे हैं तो बस अपने स्टैंडर्ड्स को थोड़ा कम कर लें।

अपने टारगेट को छोटा बनाएं। काम को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ लें और सबसे

जरूरी बात खुद को परफेक्ट होने का बोझ ना डालें। आपको बस शुरुआत करनी है। चाहे वह

शुरुआत कितनी भी छोटी क्यों ना हो। एक बार आप गति में आ गए तो इनर्शिया अपने आप खत्म

हो जाएगा। अब बात करते हैं मोटिवेशन की। क्योंकि यह एक ऐसी चीज है जिसके बारे में

हम सभी सोचते हैं। हम अक्सर मानते हैं कि किसी काम को शुरू करने के लिए पहले हमें

मोटिवेशन चाहिए। जब हमें मोटिवेटेड फील होगा तभी हम वह काम करेंगे। लेकिन

दोस्तों, यह एक बहुत बड़ा मिथक है। असल में मोटिवेशन का जन्म एक्शन से होता है।

जी हां, आपने सही सुना। अगर आप बिना मोटिवेशन के भी बस पहला कदम उठा लें, तो

धीरे-धीरे मोटिवेशन अपने आप आने लगेगा। जब आप किसी काम में डूब जाते हैं तो आपका

दिमाग उसमें इनवॉल्व हो जाता है और वह आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने लगता

है। उदाहरण के लिए मान लीजिए आपको एक मोटी किताब पढ़नी है लेकिन आपका मन बिल्कुल

नहीं कर रहा। आप सोच रहे हैं कि जब मूड बनेगा तब पढूंगा। लेकिन अगर आप बस यह तय

करें कि सिर्फ दो पेज पढ़ने हैं तो आप शुरू तो करेंगे और जैसे ही आप पढ़ना शुरू

करेंगे आपका दिमाग उस कहानी या कांसेप्ट में घुस जाएगा। फिर आपको लगेगा अरे दो पेज

और पढ़ लूं। यही जादू है। यह प्रिंसिपल हर चीज पर लागू होता है। चाहे वह एक्सरसाइज

हो, पढ़ाई हो, कोई नया स्किल सीखना हो या ऑफिस का कोई प्रोजेक्ट। अगर आप शुरुआत कर

लेंगे तो मोटिवेशन अपने आप आ जाएगा। मोटिवेशन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह

एक टेंपरेरी चीज है। आप किसी मोटिवेशनल वीडियो या स्पीच को देखकर जोश में आ सकते

सोच नहीं माइंड सेट करो : Soch nahi Mindset karo

हैं। लेकिन वह जोश ज्यादा देर नहीं टिकता। एक-द दिन बाद आप फिर वही सुस्ती महसूस

करने लगते हैं। अगर आप सिर्फ मोटिवेशन के भरोसे रहेंगे तो आप बार-बार रुक जाएंगे।

लेकिन अगर आप एक्शन लेने की आदत बना लें तो आप बिना मोटिवेशन के भी अपने टारगेट्स

को अचीव कर सकते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है वर्कआउट। बहुत से लोग सोचते हैं

कि पहले जिम जाने का मूड बने फिर जाएंगे। लेकिन अगर वे सिर्फ 5 मिनट की स्ट्रेचिंग

से शुरू करें तो उनका शरीर और दिमाग उस प्रोसेस में लग जाएगा। फिर उन्हें खुद ब

खुद लगेगा कि थोड़ा और कर लिया जाए। यही प्रिंसिपल हर काम पर लागू होता है। जब आप

किसी काम को शुरू करते हैं तो आपकी एनर्जी उस दिशा में शिफ्ट होने लगती है और

मोटिवेशन अपने आप पैदा हो जाता है। कभी ऐसा हुआ है कि आपने किसी काम को बहुत आलस

में शुरू किया लेकिन करने के बाद मजा आने लगा। इसका कारण यही है कि एक्शन लेने के

बाद आपका दिमाग उसी दिशा में ट्यून हो जाता है। शुरुआत में आपको बोरियत महसूस हो

सकती है। लेकिन अगर आप उसे जारी रखते हैं तो वह काम धीरे-धीरे इंटरेस्टिंग लगने

लगता है। यह एक साइकोलॉजिकल फैक्ट है कि जब हम किसी एक्टिविटी में इनवॉल्व हो जाते

हैं, तो हमारा माइंड उसे पूरा करने की दिशा में काम करने लगता है। इसका एक और

बड़ा फायदा यह है कि जब आप एक्शन लेना शुरू करते हैं तो आपके अंदर का सेल्फ डाउट

और अनिश्चितता धीरे-धीरे कम होने लगती है। जब आप सिर्फ सोचते रहते हैं कि कोई काम

कितना मुश्किल है तो वह और भी बड़ा लगता है। लेकिन जब आप उसे शुरू कर देते हैं तो

आपको एहसास होता है कि वह उतना कठिन नहीं था जितना आपने सोचा था। एक्शन लेना आपकी

सेल्फ इमेज को भी बदल सकता है। अगर आप हमेशा सोचते हैं कि आप एक आलसी इंसान हैं

तो आप उसी तरह बर्ताव करेंगे। लेकिन अगर आप सिर्फ 5 मिनट का एक्शन ले लें तो आप

अपने बारे में एक नई कहानी बना सकते हैं। मैं वह इंसान हूं जो बिना मोटिवेशन के भी

काम शुरू कर सकता है। यह सोच आपको और ज्यादा करने के लिए प्रेरित करती है।

मोटिवेशन के लिए एक्शन क्यों जरूरी है? इसे साइकिल की तरह देख सकते हैं। जब आप

कोई एक्शन लेते हैं तो आपको छोटा सा रिजल्ट मिलता है। यह रिजल्ट आपके कॉन्फिडेंस को बढ़ाता है। कॉन्फिडेंस

बढ़ने से आपको और ज्यादा करने की प्रेरणा मिलती है और यह सर्कल चलता रहता है।

धीरे-धीरे यह मोटिवेशन बढ़ता जाता है और आप अपनी जिंदगी में बड़े बदलाव ला सकते

हैं। आसान शब्दों में कहें तो अगर आप मन ना होने के बावजूद किसी काम को शुरू कर

देंगे तो कुछ ही देर में आपको उसमें इंटरेस्ट आने लगेगा और जब आप बार-बार ऐसा

करेंगे तो मोटिवेशन का इंतजार करना ही भूल जाएंगे। एक्शन से ही मोटिवेशन पैदा होगा।

अब बात करते हैं रिस्क की। रिस्क का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में एक डर सा पैदा

होता है। हमें लगता है कि अगर हमने कोई बड़ा कदम उठाया और वह गलत साबित हुआ तो हम

मुसीबत में पड़ जाएंगे। यह डर हमें नए अवसरों से दूर रखता है। लेकिन दोस्तों,

रिस्क सिर्फ खतरा नहीं है। यह ग्रोथ का एक जरिया भी है। जब हम रिस्क को एक डरावनी

चीज की बजाय सीखने और आगे बढ़ने के मौके के रूप में देखते हैं, तो हमारी जिंदगी

सोच नहीं माइंड सेट करो : Soch nahi Mindset karo

पूरी तरह बदल सकती है। सोचिए अगर कोई बच्चा साइकिल चलाना सीखना चाहता है तो उसे

गिरने का रिस्क होता है। अगर वह सिर्फ इस डर से कोशिश ही ना करे कि वह गिर सकता है

तो वह कभी साइकिल चलाना नहीं सीखेगा। लेकिन जब वह रिस्क लेता है, गिरता है,

सोच नहीं माइंड सेट करो-2

उठता है और फिर से कोशिश करता है, तो एक दिन वह बिना गिरे आराम से साइकिल चला सकता

है। यही प्रिंसिपल हमारी पूरी जिंदगी में लागू होता है। हम में से ज्यादातर लोग

कंफर्ट ज़ोन में रहना पसंद करते हैं क्योंकि वहां कोई रिस्क नहीं होता। लेकिन

कंफर्ट ज़ोन में रहने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि आप कभी ग्रो नहीं करते। जब आप

कोई नया स्किल सीखते हैं, कोई नया बिजनेस शुरू करते हैं या कोई नया चैलेंज लेते

हैं, तो उसमें रिस्क तो होता है, लेकिन साथ ही सीखने और आगे बढ़ने के मौके भी

होते हैं। रिस्क लेने का मतलब यह नहीं कि आप बिना सोचे समझे कोई बड़ा कदम उठा लें।

इसका मतलब है कि आप कैलकुलेटेड रिस्क लें। यानी पहले सिचुएशन को अच्छे से एनालाइज

करें। फायदे और नुकसान को समझें और फिर एक सोचा समझा डिसीजन लें। जब आप इस तरह रिस्क

लेते हैं तो आपके फेल होने के चांसेस कम हो जाते हैं और सक्सेस के चांसेस बढ़ जाते

हैं। रिस्क को एंब्रेस करने का एक और बड़ा फायदा यह है कि यह आपको मानसिक रूप से

मजबूत बनाता है। जब आप बार-बार छोटे-छोटे रिस्क लेते हैं और उनसे सीखते हैं, तो

आपके अंदर किसी भी चुनौती का सामना करने की ताकत आती है। आपका दिमाग फेलियर को एक

सीखने की प्रक्रिया मानने लगता है ना कि ऐसी चीज जिससे डरना चाहिए। अगर आप अपनी

प्रोफेशनल लाइफ में देखें तो जितने भी बड़े एंटरप्रेन्यर्स या लीडर्स हैं उन्होंने कभी ना कभी बड़ा रिस्क लिया है।

सोच नहीं माइंड सेट करो : Soch nahi Mindset karo

स्टीव जॉब्स ने रिस्क लिया और एप्पल बनाया। एलॉन मस्क ने रिस्क लिया और टेस्ला

स्पेसcex जैसी कंपनियां खड़ी की। हर बड़ी सफलता के पीछे कोई ना कोई रिस्क जरूर होता

है। इसी तरह पर्सनल लाइफ में भी अगर हम हमेशा सेफ खेलने की कोशिश करेंगे तो हम

अपनी फुल पोटेंशियल तक नहीं पहुंच पाएंगे। उदाहरण के लिए अगर कोई इंसान किसी से अपने

दिल की बात कहने से डरता है क्योंकि उसे रिजेक्शन का डर है तो वह कभी अपनी

फीलिंग्स को एक्सप्रेस नहीं कर पाएगा। लेकिन अगर वह रिस्क लेता है तो या तो उसे

सक्सेस मिलेगी या फिर रिजेक्शन से कुछ नया सीखकर वह आगे बढ़ेगा। रिस्क लेने का मतलब

यह नहीं कि आप हमेशा जीतेंगे। कई बार आप फेल भी होंगे। लेकिन यही फेलियर्स आपको

सिखाएंगे कि अगली बार चीजों को और बेहतर कैसे करना है। दुनिया के सक्सेसफुल लोग कई

बार फेल हुए हैं। लेकिन उन्होंने हर फेलियर से सीखा और अगली बार बेहतर किया। अगर आप रिस्क से डरते हैं तो सबसे पहले

अपनी सोच को बदलें। रिस्क को एक खतरे की तरह ना देखें बल्कि इसे एक अवसर की तरह

लें। जब भी कोई नया मौका आए तो सिर्फ यह मत सोचें कि इसमें क्या गलत हो सकता है।

यह भी सोचें कि अगर यह सही हो गया तो आपको कितना फायदा होगा। यह सोच आपको प्रोएक्टिव

बनाएगी और आप ज्यादा से ज्यादा मौकों को हासिल कर पाएंगे। रिस्क लेने का एक और

फायदा यह है कि यह आपकी क्रिएटिविटी और प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स को बढ़ाता है।

जब आप किसी नए चैलेंज को स्वीकार करते हैं तो आपको अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना

पड़ता है। आपको नए सॉलशंस ढूंढने पड़ते हैं जिससे आपकी सोचने की क्षमता बढ़ती है

सोच नहीं माइंड सेट करो-2

और आप ज्यादा कॉन्फिडेंट बनते हैं। इसलिए अगली बार जब कोई रिस्की मौका आए तो सिर्फ

डर की वजह से उसे ठुकराएं नहीं। सोच समझकर एनालाइज करें और अगर लगे कि यह रिस्क लेने

लायक है तो जरूर लें।

google.com, pub-6056994737841975, DIRECT, f08c47fec0942fa0

Latest Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *