“जानें तस्बीह की नमाज़ का तरीका और इसकी फज़ीलत! इस ख़ास इबादत के जरिए आप अपने सारे गुनाह माफ़ करवा सकते हैं—पहले, आख़िरी, छोटे, बड़े, जान-बूझकर और अनजाने में हुए। रोज़ाना, हफ्ते, या ज़िंदगी में एक बार अदा करके अल्लाह की क़ुरबत हासिल करें! Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Tarika“
सलातुल तस्बीह की नमाज़ एक विशेष इबादत है जिसे पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) ने अपनी उम्मत को तौबा और माफ़ी के लिए उपदेश दी है। Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Tarika यह नमाज़ अल्लाह तआला से अपने गुनाहों की माफ़ी और रहमत मांगने का एक अहम ज़रिया है। इस इबादत के ज़रिए इंसान अल्लाह की तस्बीह (अल्लाह की तारीफ़) करते हुए उसके करीब पहुंचता है। इस लेख में हम सलातुल तस्बीह पढ़ने का तरीका, इसके फ़ायदे, और इसकी शरई दलील को विस्तार से समझेंगे।
सलातूल तसबीह की नमाज क्या है?
सलातुल तस्बीह की नमाज़ एक विशेष इबादत है जिसे पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) ने अपनी उम्मत को गुनाहों की माफी और अल्लाह तआला से क़ुरबत (नज़दीकी) हासिल करने के लिए सिखाई है। इस नमाज़ में एक ख़ास तस्बीह (अल्लाह की तारीफ) को नमाज़ के हर रुक्न (जैसे कि रुकू, सज्दा आदि) में एक निश्चित संख्या में पढ़ा जाता है। यह नमाज़ चार रकातों में अदा की जाती है और इसमें कुल 300 बार तस्बीह पढ़ी जाती है।
तस्बीह के अल्फाज़:
तस्बीह English mein:
Subhan Allah, Wal Hamdu Lillah, La Ilaha Illallah, Allahu Akbar Ki Ahamiyat
इस तस्बीह का मतलब है:
- सुभान अल्लाह: अल्लाह पाक है।
- वल-हम्दु लिल्लाह: सारी तारीफें अल्लाह के लिए हैं।
- वला इलाहा इल्लल्लाह: अल्लाह के सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं।
- वल्लाहु अकबर: अल्लाह सबसे बड़ा है।
सलातुल तस्बीह एक खास इबादत है, जिसे इंसान को कभी-कभी अपनी जिंदगी में अदा करना चाहिए। इसका मकसद अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगना और अपने रब की तरफ पूरी तवज्जो के साथ रुजू करना है। Salatul Tasbeeh Ki Namaz Namaz Ka Tarika
सलातुल तस्बीह पढ़ने के क्या फायदे हैं? | Salatul Tasbih Namaz Ka Tarika Aur Fazeelat!
हदीस की रौशनी में सलातुल तस्बीह:
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब (रज़ि.) से फ़रमाया: “ऐ अब्बास, मेरे चचा, क्या मैं तुम्हें न दूँ, क्या मैं तुम्हें न बख़्शूँ, क्या मैं तुम्हें न पेश करूँ, क्या मैं तुम्हारे लिए दस चीज़ें न बताऊँ? अगर तुम उन पर अमल करोगे तो अल्लाह तुम्हारे पहले और आख़िरी, पुराने और नए, अनजाने और जान-बूझकर किए गए, छोटे और बड़े, छुपे और खुले गुनाह माफ़ कर देगा।”
वह दस चीज़ें ये हैं: तुम्हें चार रकात नमाज़ अदा करनी चाहिए। हर रकात में “सूरत अल-फातिहा” और एक दूसरी सूरत पढ़नी है। पहली रकात की तिलावत पूरी करने के बाद खड़े होकर पंद्रह बार यह तस्बीहें पढ़ो: “सुभान अल्लाह” (अल्लाह पाक है), “अलहम्दु लिल्लाह” (सारी तारीफ अल्लाह के लिए है), “ला इलाहा इल्लल्लाह” (अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं), “अल्लाहु अकबर” (अल्लाह सबसे बड़ा है)। फिर रुकू करो और रुकू में दस बार यही तस्बीह पढ़ो। फिर रुकू से उठकर खड़े हो जाओ और दस बार तस्बीह पढ़ो। फिर सजदा करो और सजदे में दस बार तस्बीह पढ़ो। फिर सजदे से सिर उठाकर दस बार तस्बीह पढ़ो। फिर दूसरा सजदा करो और उसमें भी दस बार तस्बीह पढ़ो। इस तरह हर रकात में ये तस्बीहें पढ़नी हैं।
अगर तुम इसे रोज़ाना अदा कर सकते हो तो करो; अगर नहीं कर सकते तो हफ्ते में एक बार; अगर हफ्ते में नहीं कर सकते तो महीने में एक बार; अगर महीने में नहीं कर सकते तो साल में एक बार; और अगर साल में भी नहीं कर सकते तो ज़िन्दगी में एक बार जरूर अदा कर लो।” (SUNAN ABU DAUD 1297) Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Tarika
सलातुल तस्बीह की फज़ीलत:
- यह नमाज़ गुनाहों को माफ़ करवाने का बेहतरीन जरिया है। Salatul Tasbeeh Ti Namaz Ka Tarika
- इसे पढ़ने से अल्लाह तआला से क़ुरबत और उसकी रहमत हासिल होती है।
- यह दुनियावी फ़ायदों के साथ-साथ आख़िरत के लिए भी बेहद सवाब (पुण्य) का कारण बनती है।
यह हदीस सलातुल तस्बीह की बेहतरीन फज़ीलत को दर्शाती है। इसके ज़रिए छोटे-बड़े गुनाहों की माफी मिलती है और अल्लाह के करीब इंसान पहुंचता है। इसे पढ़ने से न सिर्फ़ दुनिया में बरकत मिलती है बल्कि आख़िरत में भी यह हमारे लिए फ़ायदा साबित होगी। नमाज़ के बाद ये पढ़ें… तस्बीह पढ़ने का सही तरीका
सलातुल तस्बीह किस वक़्त पढ़ी जाए? | Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Time
सलातुल तस्बीह पढ़ने का कोई ख़ास वक्त मुकर्रर नहीं किया गया है, यह किसी भी वक्त पढ़ी जा सकती है। हालांकि, इसे दिन या रात के किसी भी वक्त पढ़ा जा सकता है जब शरई तौर पर नमाज़ पढ़ना जायज़ हो। मगर, बेहतर है कि इसे रात की ताहज्जुद के वक्त या दिन में जब वक्त मिले, पढ़ लिया जाए।
हदीस में आया है: “जिसे भी यह नमाज़ पढ़ने का मौका मिले, वह इसे पढ़े। अगर रोज़ाना नहीं पढ़ सके तो हफ्ते में एक बार पढ़ ले, अगर हफ्ते में भी न हो सके तो महीने में, अगर महीने में भी मुमकिन न हो तो साल में एक बार ज़रूर पढ़े।” (तिर्मिज़ी)
इससे साबित होता है कि यह नमाज़ किसी भी समय पढ़ी जा सकती है, लेकिन इसका उद्देश्य इख्लास और इमानदारी से अल्लाह से माफ़ी मांगना होना चाहिए।
सलातुल तस्बीह नमाज़ की नियत कैसे करें:
सलातुल तस्बीह नमाज़ की नियत करते समय आप दिल में इस बात का पक्का इरादा करें कि आप सलातुल तस्बीह की चार रकात नमाज़ अल्लाह की रज़ा के लिए पढ़ रहे हैं। नियत अल्लाह से मुखातिब होकर की जाती है, और यह आपकी दिली भावना होती है, जिसका ज़ुबानी करना ज़रूरी नहीं है, लेकिन आप चाहें तो इसे ज़ुबानी भी कर सकते हैं।
नियत का ज़ुबानी तरीका: Salatul Tasbeeh Ki Namaz ki Niyat
“मैं नीयत करता/करती हूँ चार रकात सलातुल तस्बीह नमाज़ पढ़ने की, अल्लाह के लिए, किबला रुख होकर।”
अरबी में नियत (अगर पढ़ना चाहें):
“नवैतु अं उसल्लिया लिल्लाहि तआला सलातुत-तस्बीह चार रकात, किबलह रुख होकर, अल्लाहु अकबर”
नियत करते वक्त सबसे अहम बात यह है कि आपका इरादा साफ़ हो और आपका ध्यान पूरी तरह अल्लाह तआला की तरफ हो। Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Tarika
नमाज़े तस्बीह कैसे पढ़ी जाए?
सलातुल तस्बीह की नमाज़ चार रकातों में पढ़ी जाती है, जिसमें हर रकात में 75 बार एक ख़ास तस्बीह पढ़ी जाती है।
तस्बीह के शब्द:
यह तस्बीह हर रकात में इस तरीके से पढ़ी जाती है:
- सना के बाद, सूरह फ़ातिहा और कोई दूसरी सूरह पढ़ने के बाद 15 बार तस्बीह।
- रुकू में जाने के बाद 10 बार तस्बीह।
- रुकू से उठकर (समीअल्लाहु लिमन हामिदह) कहने के बाद 10 बार तस्बीह।
- सिज्दा में जाते वक्त 10 बार तस्बीह।
- सिज्दा से उठकर बैठने के बाद 10 बार तस्बीह।
- दूसरे सिज्दा में फिर 10 बार तस्बीह।
हर रकात में कुल 75 बार तस्बीह पढ़ी जाती है। इस तरह चार रकातों में यह कुल 300 बार पढ़ी जाती है।
नमाज़े तस्बीह की दलील | Salatul Tasbeeh Ki Namaz Daleel
सलातुल तस्बीह की दलीलें हदीसों में मौजूद हैं। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इसे पढ़ने का तजुर्बा करवाया और अपनी उम्मत को इसे पढ़ने की तालीम दी। हज़रत अबू दाऊद (रह.) की हदीस में इसकी स्पष्ट हिदायत मिलती है।
हदीस में फरमाया गया: “जिसे भी इस नमाज़ का अमल मिले, वह इसे ज़रूर करे ताकि उसके तमाम गुनाह माफ़ हो जाएं।” (अबू दाऊद)
यह दलील साबित करती है कि नमाज़े तस्बीह शरई तरीके से मुनासिब और फायदेमंद है, और यह इबादत हमारे गुनाहों के लिए एक बहुत बड़ा ज़रिया है।
सलातुल तस्बीह को जमाअ़त से पढ़ना | Salatul Tasbeeh Ko Jamat Se Padhna
सलातुल तस्बीह को जमाअ़त के साथ पढ़ना शरई तौर पर मकरूह नहीं है, लेकिन हदीसों में इस नमाज़ को तन्हाई में पढ़ने की ज़्यादा तवज्जो दी गई है। इमाम ग़ज़ाली (रह.) ने भी इस बात को अहमियत दी है कि यह नमाज़ खुदा के साथ एक व्यक्तिगत बातचीत है, इसलिए इसे तन्हा और इख्लास के साथ पढ़ना बेहतर है।
फिर भी अगर कोई इसे जमात के साथ पढ़े, तो उसकी इजाज़त है, मगर इससे जुड़ी मख़सूस हिदायतें नहीं मिली हैं। इसीलिए, इखलास और तन्हाई में पढ़ना ज़्यादा मुफीद समझा जाता है।
कुछ ज़रूरी मसाइल | Kuch Zaruri Masaail
सलातुल तस्बीह से जुड़े कुछ अहम मसाइल जिनका ख्याल रखना ज़रूरी है:
- नमाज़ के दौरान भूलने का मसला: अगर तस्बीह भूल जाएं तो नमाज़ तोड़ने की ज़रूरत नहीं है। भूल जाने पर जितनी तस्बीह याद आ जाए, उतनी ही पढ़ें। नमाज़ का मकसद अल्लाह की इबादत है और भूलने पर माफी मांगकर आगे बढ़ना बेहतर है।
- तस्बीह की गिनती पूरी करना: अगर तस्बीह की संख्या पूरी न हो पाए, तो भी नमाज़ सही मानी जाएगी, मगर कोशिश करें कि हर रकात में तस्बीह पूरी पढ़ी जाए।
- यह नमाज़ काबिले सिफारिश है: यह नमाज़ सिफारिशी तौर पर पढ़ी जाती है। अगर कोई इसे पढ़ता है, तो उसे अल्लाह तआला से माफ़ी की उम्मीद रखनी चाहिए और गुनाहों से तौबा करनी चाहिए।
निष्कर्ष
सलातुल तस्बीह की नमाज़ गुनाहों की माफी और अल्लाह से करीब होने का बेहतरीन जरिया है। इसकी तस्बीह और नमाज़ के तौर-तरीकों को सही तरीके से अपनाकर हमें इसे अपनी ज़िन्दगी में शामिल करना चाहिए। हदीस और क़ुरआन में इसकी अहमियत साफ तौर पर मिलती है। यह इबादत न सिर्फ़ इस दुनिया में हमारे गुनाहों को धोती है बल्कि आख़िरत में भी हमें नजात दिलाती है।
इस प्रकार, सलातुल तस्बीह की नमाज़ को एक खास तरीके से पढ़कर इंसान अपने गुनाहों से माफी मांग सकता है और अल्लाह की रहमत के दरवाज़े अपने लिए खोल सकता है।
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