Sahih Bukhari Hadith No. 2 Arabic Text (حدیث عربی میں)
حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ يُوسُفَ،———- الْوَحْىُ فِي الْيَوْمِ ———– جَبِينَهُ لَيَتَفَصَّدُ عَرَقًا.
Hindi Translation (हदीस का हिंदी अनुवाद): Sahih Bukhari Hadith No. 2
उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) से रिवायत है “Sahih Bukhari ” कि अल-हारिस बिन हिशाम (रज़ी अल्लाहु अन्हु) ने अल्लाह के रसूल (ﷺ) से पूछा, “ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ), आप पर वही किस तरह आती है?” तो अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फ़रमाया, “कभी-कभी वही मेरे पास घंटी की आवाज़ की तरह आती है, और यह वही की सबसे कठिन सूरत होती है। जब यह खत्म होती है तो मुझे याद रह जाता है कि जो कुछ मुझसे कहा गया। और कभी-कभी फ़रिश्ता इंसान की सूरत में मेरे पास आता है और मुझसे बात करता है, और मैं जो वह कहता है उसे समझ लेता हूँ।” हज़रत आयशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) ने कहा, “मैंने देखा है कि बहुत सर्दी के दिन भी जब आप (ﷺ) पर वही उतरती थी, तो वही खत्म होने पर आपके माथे से पसीने की बूंदें टपक रही होती थीं।”
वही के आने का तरीका
इस्लाम में वही (अल्लाह की तरफ से भेजा गया संदेश) का मसला एक अहम और रूहानी विषय है। यह इंसान और उसके रब के बीच एक खास रिश्ता बयान करता है। वही, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर कई तरीकों से नाज़िल हुई। कुरआन और हदीस में इसके तरीके और मिसालें वाजेह तौर पर बयान की गई हैं। आइए, वही के आने के तरीकों को समझने के लिए तीन हिस्सों में बात करते हैं।
1. वही के मआनी और इसका मकसद
वही अरबी ज़बान का लफ्ज़ है, जिसका मतलब है “खुफिया पैग़ाम”। यह अल्लाह तआला का अपने पैग़म्बरों को दिया गया एक खास संदेश होता है, जो रहनुमाई और दीन के पैग़ाम को इंसानों तक पहुंचाने के लिए भेजा जाता है।
माहिर उलमा का नजरिया:
- इमाम राग़िब इस्फहानी (रहमतुल्लाह अलैहि) ने लिखा है कि वही का मकसद ऐसा पैग़ाम है, जो सीधे तौर पर नबी के दिल में डाला जाता है या अल्फाज में बयान किया जाता है।
- इमाम नववी (रहमतुल्लाह अलैहि) के मुताबिक, वही का असल मकसद अल्लाह की तरफ से हिदायत और रहमत को अपने बंदों तक पहुंचाना है।
कुरआन-ए-पाक में अल्लाह फरमाते हैं:
2. वही के आने के तरीके
वही कई तरीकों से नाज़िल हुई। इन्हें तीन अहम हिस्सों में बांटा जा सकता है:
2.1 ख्वाब के जरिए वही
नुबूवत से पहले, नबी-ए-करीम (ﷺ) को सच्चे ख्वाब आते थे। हदीस में इसे “रुईया-सादिक़ा” कहा गया है। ये ख्वाब नुबूवत के शुरुआती दिनों में वही का एक जरिया था।
- मिसाल: हदीस-ए-पाक में आता है: “नुबूवत की शुरुआत सच्चे ख्वाबों से हुई। जो ख्वाब आप देखते, वह सुबह की रोशनी की तरह सच्चा होता।”
(सहीह बुखारी)
2.2 फरिश्ते के जरिए वही
सबसे आम और मशहूर तरीका यही था कि जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) अल्लाह का पैग़ाम लेकर आते। कभी वह इंसानी शक्ल में आते, तो कभी असली शक्ल में।
- मिसाल: हदीस जब्रईल (मशहूर हदीस) में बताया गया है कि जिब्रईल इंसानी शक्ल में आकर नबी (ﷺ) से दीन के मसाइल पूछते थे।
- कुरआन-ए-मजीद में फरमाया गया: “उसने इसे बहुत ताक़तवर और बरतर फरिश्ते के ज़रिए तुम्हारे दिल तक पहुँचाया।”
(संदर्भ: जिब्रईल अलैहिस्सलाम के माध्यम से वही का नाज़िल होना।)
(सूरह अश-शुअरा: 193-194)
2.3 दिल में डाला गया पैग़ाम
कभी-कभी अल्लाह का पैग़ाम नबी के दिल में सीधे तौर पर डाला जाता था। इसे “इल्हाम” कहा जाता है।
- मिसाल: नबी (ﷺ) ने फरमाया: “अल्लाह की तरफ से मुझ तक ऐसे पैग़ाम आते हैं, जो सीधे मेरे दिल में उतार दिए जाते हैं।”
(मुस्नद अहमद)
2.4 परदा (हिजाब) के पीछे से बात
कुछ खास मौकों पर अल्लाह तआला ने सीधे तौर पर परदे के पीछे से बात की।
- मिसाल: हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) के साथ कोहे-तूर पर हुई बातचीत। कुरआन में फरमाया गया: अल्लाह ने मूसा से बेपर्दा होकर और बिलकुल वाजेह अंदाज़ में कलाम किया।”
(संदर्भ: हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और अल्लाह के बीच कोहे-तूर पर हुई बातचीत।)
(सूरह अन-निसा: 164)
2.5 शदीद आवाज़ के साथ वही
कभी वही एक तेज़ आवाज़ या घंटी की गूंज के साथ आती थी, जिसे नबी (ﷺ) सुनते थे। यह तरीका सबसे कठिन होता था।
- मिसाल: हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) फरमाती हैं: “कभी-कभी वही घंटी की आवाज़ की तरह आती थी, और यह तरीका आप (ﷺ) पर सबसे भारी होता।”
(सहीह बुखारी)
3. वही के असरात और नबी (ﷺ) की कैफियत
जब वही नाज़िल होती थी, तो नबी (ﷺ) की हालत में एक खास तब्दीली देखी जाती थी। यह अल्लाह के कलाम की शिद्दत और वजन को बयान करता है।
- हज़रत ज़ैद बिन साबित (रज़ियल्लाहु अन्हु):
उन्होंने बयान किया कि जब वही आती, तो नबी (ﷺ) का जिस्म भारी हो जाता। अगर आप ऊंटनी पर सवार होते, तो वह बैठ जाती।
(मुस्नद अहमद) - हज़रत उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु):
उन्होंने कहा: “हमने महसूस किया कि जब वही नाज़िल होती, तो नबी (ﷺ) का चेहरा गुलाबी हो जाता और उनके चेहरे से पसीने की बूंदें टपकने लगतीं, चाहे मौसम सर्दी का ही क्यों न हो।”
(सहीह मुस्लिम)
कुरआन का बयान:
नतीजा
वही का आना न केवल एक रूहानी अनुभव था, बल्कि यह इंसानों के लिए अल्लाह की रहमत और हिदायत का सबूत भी था। इसके अलग-अलग तरीके इस बात की गवाही देते हैं कि अल्लाह ने इंसानों तक अपना पैग़ाम पहुंचाने में हर मुमकिन तरीका अपनाया। नबी-ए-करीम (ﷺ) पर वही के जरिए आने वाला कुरआन-ए-मजीद आज तक रहनुमाई और रोशनी का ज़रिया बना हुआ है।
Itihasik Sandarbh (इतिहासिक संदर्भ)
इस हदीस में हज़रत आयशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) ने रसूल अल्लाह (ﷺ) पर नाज़िल होने वाली वही के तरीके को बयान किया है। इसमें दो प्रकार के wahi का ज़िक्र है, एक घंटी जैसी आवाज़ से आने वाली wahi, जो सबसे कठिन होती थी, और दूसरी इंसानी रूप में फ़रिश्ते के आने की। यह हमें बताता है कि wahi का अनुभव आसान नहीं होता था और इसके दौरान शरीरी तकलीफ भी महसूस होती थी। Sahih Bukhari 2
Rochak Baat: Wahi ka Shiddat Bhara Tajurba
Is hadith se ek rochak baat yeh hai ki Rasool Allah (ﷺ) par wahi ka aana kabhi buhut mushkil hota tha, khaaskar jab wahi ghanti ki awaaz ke tareeke se aati thi. Yeh tajurba unke liye sabse zyada shiddat wala hota tha, lekin wahi ke khatam hone ke baad unhein wahi ka har lafz yaad rehta tha.
Ek aur rochak baat yeh hai ki bohot thande dinon mein bhi wahi ke doraan Rasool Allah (ﷺ) ka peshani paseene se bhar jaata tha, jo is baat ka saboot tha ke wahi sirf zehni nahi, balki jismani asar bhi rakhti thi.
Hadith Se Milne Wale Sabak (हदीस से मिलने वाले सबक)
- Wahi ka Tareeqa: Wahi ka aana ek azeem aur khass tajurba tha, jo sirf Rasool Allah (ﷺ) par hota tha. Yeh tajurba kabhi shiddat se guzarta tha aur kabhi aasan tareeke se.
- Wahi ka Athar: Rasool Allah (ﷺ) par wahi ke nuzool ka asar unke jism par bhi hota tha, jaise ki buhut thande dinon mein bhi peshani se paseena tapakta tha.
- Risalat ka Azeem Farz: Is hadith se humein yeh maloom hota hai ke Allah ke Rasool (ﷺ) ne wahi ko samajhne aur phir uske mutabiq ummat tak pehunchane ka azeem zimma uthaya tha.
Related Hadith Links (संबंधित हदीस लिंक)
Sahih Bukhari “Is hadith mein Rasool Allah (ﷺ) ne wahi ke aane ka tareeqa bayan kiya hai, jo kabhi ghanti ki aawaz mein aur kabhi farishte ki shakl mein hoti thi. Is doraan, Rasool Allah (ﷺ) ko jismani shiddat ka bhi samna karna padta tha.”
Sahih Bukhari :- Is tarah aap ka hadith ka unique aur samajhne mein aasaan format tayyar ho jata hai, jo Hindi aur Urdu dono ke samajhne walon ke liye faydemand hoga.
Aam Sawal (आम सवाल)
Wahi ka aana kitna mushkil hota tha?
Rasool Allah (ﷺ) par wahi ka aana kabhi-kabhi buhut shiddat ka hota tha, jaise ghanti ki aawaz, jo unke liye sabse zyada mushkil hota tha. Is doraan unke jismani halat bhi tabdeel hoti thi.
Wahi ke doraan Rasool Allah (ﷺ) ka tajurba kya hota tha?
Kabhi wahi ghanti ki aawaz ke tareeke se aati thi, aur kabhi farishta insani shakl mein aata tha. Dono halat mein, Rasool Allah (ﷺ) wahi ko yaad kar lete the.
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