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Overthinkers की Problem – एक गहराई से तज़किरा


Overthinkers की Problem – एक गहराई से तज़किरा

इंसान का ज़ेहन (mind) अल्लाह की सबसे अजी़म नेमतों में से एक है। इसी ज़ेहन के सहारे इंसान तफ़क्कुर (सोचना), तदब्बुर (गहराई से ग़ौर करना) और फ़ैसले लेता है। लेकिन जब यही ज़ेहन हद से ज़्यादा सोचना शुरू कर देता है तो वो इंसान को एक अजीब सी क़ैद (prison) में डाल देता है। इस हालात को हम आजकल Overthinking कहते हैं।

Overthinking क्या है?

Overthinking का मतलब है – किसी भी मामूली सी बात पर इतना ग़ौर करना, इतना सोचना कि वो इंसान की ज़िन्दगी और सुकून छीन ले। यह सोच सोच कर खुद को थकाने का नाम है।

उदाहरण के तौर पर –

  • अगर किसी ने आपको मैसेज करके जवाब नहीं दिया, तो ओवरथिंकर सौ तरह की तर्ज़ुमानियाँ (interpretations) करने लगेगा।
  • अगर किसी मीटिंग में उसकी राय को नज़रअंदाज़ किया गया, तो वो सोच सोच कर अपनी अहमियत पर शक़ करने लगेगा।

यानी मामूली बातें भी उनके लिए गहरी चोट जैसी बन जाती हैं।


Overthinkers की Problems

1. ख़्वाहिश और हक़ीक़त के दरमियान फ़ासला

Overthinkers अक्सर अपनी ज़िन्दगी को एक आदर्श (perfect) अंदाज़ में देखना चाहते हैं। जब हक़ीक़त उनसे टकराती है, तो वो उसे स्वीकार नहीं कर पाते। दिल में एक बेचैनी (restlessness) और दिमाग़ में उलझन (confusion) पैदा हो जाती है।

2. हर लम्हा शक़ करना

ओवरथिंकर हर बात में शक़ करने लगते हैं।

  • “क्या मैंने सही कहा?”
  • “वो नाराज़ तो नहीं हो गया?”
  • “अगर मैंने ये फ़ैसला लिया तो आगे क्या होगा?”

ये शक़ उनकी ज़िन्दगी से इत्मिनान (peace of mind) छीन लेता है।

3. सुकून की कमी

सोचते सोचते उनकी रातों की नींद उड़ जाती है। जिस वक़्त वो आराम करना चाहते हैं, उसी वक़्त उनका ज़ेहन तेज़ी से दौड़ने लगता है। नतीजा ये कि जिस्म थक जाता है लेकिन दिमाग़ चैन से नहीं बैठता।

4. जज़्बाती (emotional) बोझ

Overthinking इंसान को जज़्बाती तौर पर कमज़ोर कर देता है। छोटी-सी तकलीफ़ भी उन्हें बहुत बड़ी नज़र आने लगती है। वो अक्सर रोने लगते हैं या अकेलेपन (loneliness) में घिर जाते हैं।


Overthinkers की सोच का साइकल (Cycle)

  1. एक छोटी सी घटना हुई।
  2. दिमाग़ ने उस पर फ़ौरन ग़ौर करना शुरू किया।
  3. सोचते-सोचते “अगर- मगर” की दुनिया बना ली।
  4. नतीजा – कोई भी हक़ीक़त सामने नहीं आई, बस बेचैनी बढ़ती गई।

यह साइकल बार-बार चलता है, और इंसान अपनी ज़ेहनी सलामती (mental health) खोने लगता है।


क्यों होते हैं लोग Overthinker?

  1. गुज़रे हुए तजुर्बात (past experiences) – अगर किसी ने ज़िन्दगी में बहुत मुश्किलें देखी हों, तो उनका दिमाग़ हर नए हालात में उसी दर्द को ढूंढने लगता है।
  2. ना-इतमिनानी (insecurity) – अपनी क़ाबिलियत (ability) और अहमियत पर शक़ करना।
  3. भविष्य का डर – आने वाले कल की फ़िक्र में डूब जाना।
  4. कमज़ोर इरादा – जल्दी फ़ैसला न ले पाना और बार-बार सोचते रहना।

Overthinking के नतीजे

  • रूहानी असर: अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल) कम हो जाता है।
  • जिस्मानी असर: सरदर्द, नींद की कमी, हार्टबीट का तेज़ होना।
  • जज़्बाती असर: ग़म, उदासी और डिप्रेशन।
  • मुआशरती असर: रिश्तों में दूरी, दोस्तों से अलगाव।

Overthinkers के लिए हल (Solutions)

1. तवक्कुल अलल्लाह (Allah पर भरोसा)

कुरआन में आता है: “जो अल्लाह पर भरोसा करता है, अल्लाह उसके लिए काफ़ी है।”
जब इंसान अल्लाह की तदबीर (planning) पर भरोसा करता है, तो उसका दिल सुकून पाता है।

2. लिहाज़ रखना (Boundaries बनाना)

हर मसले पर गहराई से सोचने की ज़रूरत नहीं। कुछ चीज़ें छोड़ देना ही बेहतर है।

3. लिख डालो (Journaling)

जो बातें दिमाग़ में घूम रही हैं, उन्हें काग़ज़ पर लिख लो। इससे दिमाग़ हल्का हो जाता है।

4. ज़िक्र और नमाज़

ज़िक्र-ए-इलाही (remembrance of Allah) दिल को सुकून देता है। नमाज़ पढ़ने से इंसान के जज़्बात और सोच पर क़ाबू आता है।

5. फ़ैसला लेने की आदत डालना

Overthinkers अक्सर फ़ैसला लेने से डरते हैं। छोटी-छोटी बातों पर फ़ौरन फ़ैसला लेना शुरू करो। धीरे-धीरे दिमाग़ मज़बूत हो जाएगा।


एक ओवरथिंकर की दास्तान

अहमद नाम का एक नौजवान हर छोटी बात पर सोचता रहता था। किसी दोस्त ने बात न की तो उसे लगता कि “वो मुझसे नफ़रत करता है।” कोई काम बिगड़ गया तो वो सोचता कि “मैं नाकाम हूँ।”

लेकिन जब उसने अल्लाह पर भरोसा करना शुरू किया, नमाज़ में रो-रो कर दुआएँ कीं और अपनी सोच को काग़ज़ पर उतारना शुरू किया, तो उसका बोझ हल्का होता चला गया। धीरे-धीरे उसने समझा कि ज़िन्दगी में हर चीज़ कंट्रोल नहीं की जा सकती।


नसीहत

ओवरथिंकिंग इंसान की सबसे बड़ी दुश्मन है।

  • यह इंसान को उस दर्द में डाल देती है जो हक़ीक़त में मौजूद ही नहीं होता।
  • यह ख़ुशियों को छीन लेती है और इंसान को ग़म और तन्हाई में धकेल देती है।

अगर आप भी Overthinker हैं, तो याद रखें –

  • हर चीज़ का हल आपके पास नहीं होगा।
  • अल्लाह की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता।
  • अपनी सोच को काबू में रखना भी एक इबादत है।

ख़ुलासा (Conclusion)

Overthinking एक ज़ेहनी बिमारी जैसी है जो इंसान की ज़िन्दगी से सुकून छीन लेती है। लेकिन इसका इलाज मौजूद है – तवक्कुल, ज़िक्र, नमाज़, और अपनी सोच को लिहाज़ में रखना।

जो लोग इस जाल से निकल आते हैं, उनकी ज़िन्दगी आसान और दिल पर हल्की हो जाती है। इसलिए आज ही से फ़ैसला कीजिए कि सोच पर क़ाबू आपको रखना है, न कि सोच आपको क़ैद कर ले।


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