अस्सलामुअलैकुम! आज हम एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करेंगे Namaz Ke Faraiz: नमाज़ के फ़राइज़! ये वो अनिवार्य कार्य हैं जिन्हें हर मुसलमान को अदा करना है। अगर इनमें से कोई भी रह जाए, तो हमारी नमाज़ अधूरी मानी जाएगी। आइए, जानते हैं ये फ़राइज़ क्या हैं और उनका महत्व क्या है। नमाज़ के फ़राइज़: Namaz Ke Faraiz – एक फ़र्ज़ रह गया, तो नमाज़ नहीं होगी क़ुबूल!

क्या आप जानते हैं कि नमाज़ में कुल 13 फ़राइज़ हैं? इनमें से 7 फ़राइज़ नमाज़ से पहले और 6 नमाज़ के दौरान पूरी करने होते हैं। यह सभी फ़राइज़ हमारी नमाज़ को क़ुबूल होने और अल्लाह की रहमत पाने के लिए बेहद जरूरी हैं। जानिए इन फ़राइज़ के बारे में! Namaz Ke Faraiz

नमाज़ के फ़राइज़ Namaz Ke Faraiz - एक फ़र्ज़ रह गया, तो नमाज़ नहीं होगी क़ुबूल!
नमाज़ के फ़राइज़ Namaz Ke Faraiz – एक फ़र्ज़ रह गया, तो नमाज़ नहीं होगी क़ुबूल!

नमाज़ के फ़राइज़: Namaz Ke Faraiz 7 Hindi mein

नमाज़ के बाहर के 7 फ़राइज़: 7 Faraiz outside of Namaaz

  1. जिस्म का पाक होना (जिस्म का साफ होना)
  2. लिबास का पाक होना (कपड़ों का साफ होना)
  3. जगह का पाक होना (नमाज़ की जगह का साफ होना)
  4. सतर का ढका होना (शरीर का ढका होना)
  5. नमाज़ का वक्त होना (नमाज़ का सही वक्त)
  6. क़िबले की तरफ रुख करना (क़िबले की दिशा में होना)
  7. नीयत करना (दिल में इरादा करना)

नमाज़ के अंदर के 6 फ़राइज़: 6 Faraiz outside of Namaaz

  1. तासब्बुर (अल्लाह की सिफ़ात का ध्यान रखना)
  2. क़ियाम (खड़े होना)
  3. रुकू (झुकना)
  4. सजदा (सजदा करना)
  5. क़ौदा (बैठना)
  6. सलाम फेरना (अख़ीर में सलाम देना)

इन फ़राइज़ ‘Namaz Ke Faraiz ‘ को जानना और इन्हें सही तरीके से करना हमारे लिए ज़रूरी है, ताकि हम अपनी नमाज़ को अल्लाह की बारगाह में क़ुबूल करवा सकें।

नमाज़ के बाहर के 7 फ़राइज़: Namaz Ke Faraiz 7 Hain

  1. Jism Ka Pak Hona (जिस्म का पाक होना)
    नमाज़ के लिए सबसे पहला फर्ज़ यह है कि शरीर पाक और साफ हो। अगर जिस्म पर कोई नापाक चीज़ हो, जैसे पेशाब या खून का निशान, तो उसे धोकर साफ करना ज़रूरी है ताकि नमाज़ क़ुबूल हो सके।
  2. Libas Ka Pak Hona (लिबास का पाक होना)
    जिस तरह जिस्म का पाक होना फर्ज़ है, उसी तरह कपड़ों का भी पाक होना ज़रूरी है। अगर कपड़ों पर कोई नापाक चीज़ लगी हो, तो उसे हटाना अनिवार्य है ताकि आपकी नमाज़ सही हो।
  3. Jagah Ka Pak Hona (जगह का पाक होना)
    जिस जगह पर नमाज़ पढ़ी जा रही है, वह भी पाक होनी चाहिए। अगर नमाज़ की जगह पर कोई नापाकी मौजूद हो, तो इसे पहले साफ करना फर्ज़ है ताकि नमाज़ का सवाब पूरा मिले।
  4. Satar Ka Pak Hona (सतर का ढका होना)
    नमाज़ के दौरान शरीर का वह हिस्सा जो छिपाना फर्ज़ है (जैसे मर्दों के लिए नाभि से घुटनों तक और औरतों के लिए पूरा शरीर, सिवाय चेहरा, हाथ और पांव के) उसे ढक कर रखना चाहिए।
  5. Namaz Ka Waqt Hona (नमाज़ का वक्त होना)
    नमाज़ को उसके मुअय्यन वक्त पर पढ़ना फर्ज़ है। हर नमाज़ का एक तयशुदा वक्त होता है, और वक्त के अंदर ही नमाज़ अदा करनी होती है। वक्त के बाहर नमाज़ अदा करने से वह नमाज़ क़ुबूल नहीं मानी जाएगी।
  6. Qibla Rukh Hona (क़िबले की तरफ रुख होना)
    नमाज़ के दौरान क़िबले की तरफ मुँह करना ज़रूरी है, यानी कि मक्का शरीफ़ की दिशा में। यह फर्ज़ है ताकि आपकी नमाज़ सही तरीके से पूरी हो सके। Namaz Ke Faraiz
  7. Niyat Karna (नियत करना)
    नमाज़ शुरू करने से पहले दिल में यह इरादा करना कि आप कौन सी नमाज़ अदा कर रहे हैं। नीयत के बगैर नमाज़ मुकम्मल नहीं होती है।

इन फराज़ का पूरा करना नमाज़ की क़ुबूलियत के लिए ज़रूरी है।

नमाज़ के अंदर के 6 फ़राइज़: Namaz Ke Faraiz 6 Hain

1. क़याम (खड़ा होना)

सबसे पहला फ़र्ज़ है क़याम। Namaz Ke Faraiz क़याम का मतलब है सीधा खड़े रहना, अपने दोनों पैरों पर। यहाँ हम अपने आप को अल्लाह के सामने पेश करते हैं – एक पूरे एहतिराम और इबादत के साथ। याद रखिए, क़याम के बग़ैर नमाज़ मुकम्मल नहीं हो सकती। नमाज़ का तरीका सिखें

क़याम का मतलब है सीधे खड़े होना। जब हम नमाज़ की शुरुआत करते हैं, तो यह अल्लाह के सामने खड़े होने का समय है। कुरान में अल्लाह फरमाता है: Namaz Ke Faraiz in Quran

“अल्लाह के सामने खड़े रहो।” (कुरान, 2:238)

इससे यह पता चलता है कि नमाज़ की शुरुआत में खड़ा होना अनिवार्य है। यह हमें एक अदब और इबादत के साथ अल्लाह के सामने पेश करता है।

क़याम (खड़ा होना)

शारीरिक फ़ायदा:
क़याम के दौरान खड़े रहने से शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है। यह पैरों की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और ऊर्जा का संचार करता है।

2. क़िराअत (कुरान की तिलावत)

क़िराअत का मतलब है कुरान की तिलावत करना। नमाज़ में सूरह फातिहा और एक अन्य सूरह की तिलावत की जाती है। यह हमें अल्लाह के शब्दों से जोड़ती है और इबादत के दौरान हमारी नीयत को सच्चाई से भर देती है। हज़रत इब्न मसऊद रज़ि. से रिवायत है: Namaz Ke Faraiz in Hadith

“रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: ‘कोई भी नमाज़ उस व्यक्ति की नहीं होती जिसमें फातिहा न पढ़ी जाए।'” (सहीह बुखारी)

यह दिखाता है कि क़िराअत का न होना नमाज़ को अधूरा कर देता है। Namaz Ke Faraiz In Hadees

क़िराअत (कुरान की तिलावत)

शारीरिक फ़ायदा:
क़िराअत करते समय बोलने और गुनगुनाने से गले की मांसपेशियों को व्यायाम मिलता है। यह मानसिक ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है और तनाव को कम करता है। Namaz Ke Faraiz

3. रुकू (झुकना)

रुकू का मतलब है कमर को झुकाना। यह अल्लाह की अज़मत का एहसास करने का समय है। Namaz Ke Faraiz रुकू में हम अपने रब के सामने झुकते हैं और अपनी वास्तविकता को स्वीकार करते हैं। हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. से रिवायत है:

“रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: ‘रुकू में हम अपनी पीठ को सीधा रखते हैं और अपने हाथों को घुटनों पर रखते हैं।'” (सहीह मुस्लिम)

इसका मतलब है कि रुकू करते वक्त शरीर का संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

रुकू (झुकना)

शारीरिक फ़ायदा:
रुकू करते समय कमर और पीठ की मांसपेशियों को खींचने और खिंचाव देने का मौका मिलता है। यह रीढ़ की हड्डी के लिए लाभदायक होता है और पीठ दर्द को कम करता है। Namaz Ke Faraiz

4. सजदा (सिर को ज़मीन पर रखना)

सजदा का मतलब है सिर को जमीन पर रखना। सजदा सबसे नज़दीकी लम्हा है जब हम अल्लाह के साथ होते हैं। हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. से रिवायत है: Namaz Ke Faraiz

“रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया कि सजदा करने का लम्हा अल्लाह के सबसे करीब होने का है। जब हम अपने सिर को ज़मीन पर रखते हैं, तो यह न केवल एक इबादत है, बल्कि हमारे रब से गहरी नज़दीकी का अवसर भी है। सजदा में हम अपनी कमजोरी और अल्लाह की महानता को स्वीकार करते हैं, जो हमारे दिल में सुकून और तसल्ली लाता है। यह पल हमें अल्लाह की रहमत का एहसास कराता है और हमें इस्लामी शिक्षा की गहराई में ले जाता है।” (सहीह बुखारी)

सजदा करते समय हम अपनी ताकतों और घमंड को छोड़कर अपने रब के सामने पूरी तरह झुक जाते हैं।

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सजदा (सिर को ज़मीन पर रखना)

शारीरिक फ़ायदा:
सजदा करते समय सिर को जमीन पर रखने से रक्त संचार में सुधार होता है। यह मानसिक शांति प्रदान करता है और तनाव को कम करता है। इसके अलावा, यह गर्दन और कंधों की मांसपेशियों को राहत और सुकून पहुंचाता है।

5. क़अदा आख़िरा (आखिरी बैठना)

क़अदा आख़िरा का मतलब है नमाज़ का आखिरी बैठना। यह वह समय है जब हम अपनी इबादत का समापन करते हैं। हज़रत इब्न उमर रज़ि. से रिवायत है:

“रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: ‘क़अदा आख़िरा में हम अल्लाह से अपनी नमाज़ को क़ुबूल करने की दुआ करते हैं।'” (सहीह मुस्लिम)

यह समय हमें अल्लाह की रहमत की उम्मीद दिलाता है।

क़अदा आख़िरा (आखिरी बैठना)

शारीरिक फ़ायदा:
क़अदा आख़िरा में बैठने से पैरों और कमर को विश्राम मिलता है। यह ध्यान केंद्रित करने और मानसिक शांति प्राप्त करने का समय है।

6. खुरूज बिसनुई (नमाज़ से बाहर आना)

खुरूज बिसनुई का मतलब है नमाज़ को समाप्त करना। यह वह लम्हा है जब हम अपनी नमाज़ को पूरा करते हैं और अल्लाह की दया का शुक्र अदा करते हैं। हज़रत जाबिर रज़ि. से रिवायत है:

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: ‘जब तुम नमाज़ मुकम्कमल करलो तो परवरदिगार की रहमत और उसकी बरकत का शुक्र अदा करो।'” (सुनन अबू दाऊद)

इसका मतलब है कि हमें नमाज़ के बाद अल्लाह का धन्यवाद करना चाहिए।

खुरूज बिसनुई (नमाज़ से बाहर आना)

शारीरिक फ़ायदा:
नमाज़ समाप्त करने के बाद, एक गहरी सांस लेना और आराम करना शरीर को ताज़गी और ऊर्जा प्रदान करता है। यह मानसिक और शारीरिक रूप से रीचार्ज करने का एक तरीका है।

इन फ़राइज़ “Namaz Ke Faraiz” को अदा करने से न केवल हमारी धार्मिकता मजबूत होती है, बल्कि यह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद साबित होता अगर आर्टिकल समझ नहीं आया तो इस विडियो को देखें ज़रूर समझ आएगा!

Namaz Ke Faraiz || नमाज़ के अंदर के 6 फ़राइज़

निष्कर्ष

तो दोस्तों, ये थे नमाज़ के फ़राइज़ Namaz Ke Faraiz हर फ़र्ज़ में अल्लाह का एक ख़ास पैगाम छुपा है! हमें चाहिए कि हम हर फ़र्ज़ को पूरे ध्यान और इख़लास के साथ अदा करें ताकि अल्लाह हमारी इबादत को क़ुबूल फरमाए।

इन Namaz Ke Faraiz को अदा करना हर मुसलमान के लिए जरूरी है। नमाज़ की हर एक अदा में अल्लाह का एक खास संदेश छिपा है। हमें चाहिए कि हम इन फ़राइज़ को पूरे ध्यान और इख्लास के साथ अदा करें ताकि अल्लाह हमारी इबादत को क़ुबूल फरमाए।

अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करें और हमारी चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें। अल्लाह हमें नमाज़ के इन फ़राइज़ को सही तरीके से अदा करने की तौफ़ीक़ दे।

जज़ाकअल्लाह ख़ैर!

FAQs

1. नमाज़ के फ़राइज़ क्या हैं?

नमाज़ के फ़राइज़, या अनिवार्य चीज़ें, वो क्रियाएं हैं जो नमाज़ को सही और स्वीकार्य बनाने के लिए जरूरी हैं। इनमें शामिल हैं:
जिस्म का पाक होना: नमाज़ से पहले वुडू (अवशुद्धि) करना ज़रूरी है।
लिबास का पाक होना: नमाज़ पढ़ने के लिए साफ़ और पाक कपड़े पहनना चाहिए।
जगह का पाक होना: नमाज़ के लिए एक साफ़ जगह चुनें।
सतर का पाक होना: नमाज़ के दौरान शरीर के जरूरी हिस्सों को ढककर रखना।
नमाज़ का वक्त होना: नमाज़ का समय निश्चित होना चाहिए।
क़िबला रुख होना: क़िबला की दिशा में मुँह करके नमाज़ पढ़नी चाहिए।
नियत करना: नमाज़ में दिल से इरादा करना।

2. क्या नमाज़ के फ़राइज़ को छोड़ने से नमाज़ क़बूल नहीं होती?

जी हाँ, अगर नमाज़ के फ़राइज़ में से कोई एक फ़र्ज़ भी छोड़ दिया जाए, तो नमाज़ पूरी तरह से क़बूल नहीं होती। यह बात इस्लामिक शिक्षाओं में महत्वपूर्ण है। नमाज़ का सही तरीके से अदा किया जाना अनिवार्य है, और फ़राइज़ को न निभाने से इबादत का दर्जा कम हो जाता है।

3. क्या नमाज़ के फ़राइज़ का ज्ञान रखना जरूरी है?

हाँ, नमाज़ के फ़राइज़ का ज्ञान रखना हर मुसलमान के लिए बहुत ज़रूरी है। इससे ना केवल नमाज़ के सही तरीके का पता चलता है, बल्कि यह भी समझ में आता है कि अल्लाह की इबादत कैसे की जानी चाहिए। इस ज्ञान से हम अपनी इबादत को बेहतर बना सकते हैं और अल्लाह की रहमत को हासिल कर सकते हैं।

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  • Islamichindi.com के मुसन्निफ़ इस्लामी मालूमात, क़ुरआन-ओ-हदीस और तारीख़ के माहिर हैं। बरसों से इस्लामी तालीमात को सहीह और मुसद्दक़ तरीके़ से अवाम तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। इनका मक़सद है के आम ज़बान में लोगों तक दीन-ए-इस्लाम की हक़ीक़ी तालीमात पहुँचाई जाएँ।

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Sher Mohammad Shamsi

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