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Lautna Hoga Book: लौटना होगा – एक तन्हा आवाज़ की दास्तां

परिचय: lautna hoga book

lautna hoga book
lautna hoga book

कभी-कभी किताबें सिर्फ़ शब्दों का गुच्छा नहीं रह जातीं — वे हमारी ज़िन्दगी का आईना बन जाती हैं, हमारी खामोशियों को आवाज़ दे जाती हैं। “लौटना होगा” वही किताब है जो लिखने वाले के भीतर छिपे सवालों और दर्द को ऐसा बयान करती है कि दिल रुक-सा जाता है। इस लेख में हम उसी खामोश, उसी जलते हुए पन्नों और अनकहे जज़्बातों के पास खड़े होकर सुनने की कोशिश करेंगे।


सवाल नहीं, सवाल पूछने वालों से दिक़्क़त

किताब में एक अहेम मुतरज्ज़िम (statement) है: “मुझे सवालों से नहीं है; कोई भी दिक़्कत नहीं सवाल पूछने वालों से है।” यह वाक्य केवल नाराज़गी नहीं है — यह दूरी, लालच और उस डर का इज़हार है जो हम तब महसूस करते हैं जब हमारे अंदर की जख्म-ए-आम को कोई सवालों की रोशनी में खोल देता है।

lautna hoga book

जो लोग सवाल पूछते हैं, अक्सर वे सही मक़सद से नहीं, बल्कि आँकने, जाँचना या घिरा देने के लिए करते हैं। सवालों की वह भीड़ किसी की तह तक पहुँचने की बजाय उसकी ज़ज़्बातों को फिर से ज़हर दे देती है। किताब की यह बात हर उस दिल को छू जाती है जो अक्सर बेखबर रहना चाहता है पर समाज की निगाहों में जकड़ा रहता है।


ख़ामोशी — कभी हमारी ताक़त तो कभी हमारी सज़ा

“ख़ामोशी” का जिक्र इस किताब में बार-बार आता है। ख़ामोशी न केवल मौन है; यह अनुभवों का भंडार, डर का सन्नाटा और कई बार आत्म-इज़हार का सबसे बड़ा ज़रिया बन जाती है। lautna hoga book



ख़ामोशी में छिपी चीज़ें धुएँ की तरह फैल जाती हैं — नज़र तो नहीं आतीं पर महक है, दहशत है। लेखक ने ख़ामोशी को किसी ‘कमज़ोरी’ की तरह नहीं, बल्कि एक जज़्बाती, कभी-कभी आत्म-रक्षा बनाने वाले कवच की तरह पेश किया है।


पन्नों पर आग — लिखते हुए जलना

किताब की एक ताक़तवर तस्वीर यह है कि लेखक ने अपने जज़्बातों को पन्नों पर उतारा, और फिर उन पन्नों को आग दे डालने की बात की। यह आग कोई जिस्मानी आग नहीं — यह वह आग है जो इंसान के अंदर जलती है जब उसने बहुत कुछ देखा, सहा और सह लिया हो।

पन्नों की आग का मतलब है — पुरानी यादों, अफ़्साने और जख्मों को जलाकर नया एहसास पैदा करना। पर साथ ही यह आग भयभीत भी कर देती है — क्या जो जलाकर राख कर दिया जाए, वह फिर लौट कर नहीं आएगा? क्या हमारी यादें, हमारी गलतियाँ, हमारी मोहब्बतें, बस राख बन कर हवा में उड़ जाएँगी?


“अगर मेरे अंदर से ख़त्म करनी है तो उसमें से पहाड़ निकाल दो” — दर्द की गूँज

यह मिसरा किताब की सबसे कर्कश और दिल-धड़काने वाली पंक्तियों में से एक है। यह वाक्य उस काफ़िराने दर्द की तरह है जो इंसान के भीतर जमा हो कर कभी-कभी भूकंप बन जाता है। लेखक कहता है — मेरे अंदर इतनी चीज़ें हैं कि अगर तुम सब कुछ मिटाना चाहते हो, तो सिर्फ़ सतह नहीं, जड़ें निकाल दो।

यह बात सिर्फ़ मनफियत नहीं कहते — यह एक बुलंद कहना है कि दर्द की गहराई को समझे बिना किसी को बदलना या चुप कर देना आसान नहीं।


आत्महत्या का जिक्र — अँधेरे में पुकार

किताब में आत्महत्या का जिक्र सीधे तौर पर नहीं, मगर अंदाज़ों में है। गुमनाम और अकेला इंसान जब कहता है कि ‘‘किसे नहीं है ये भरोसा कि सब बदलेगा एक दिन’’, तो यह वह टूटान है जो कई पाठकों के दिलों को झकझोर देती है।



यहां ज़रूरी है कि हम इस हिस्से को केवल साहित्यिक अन्दाज़ में न लें — बल्कि एक चेतावनी के रूप में भी देखें। जब कोई इंसान इतनी बेहद मायूस महसूस करे कि उसे उम्मीद नज़र न आए, तो मित्रता, मदद और पेशेवर सहारा ज़रूरी हो जाता है।


किताब का मुज्मिरात — लौटना, क्या और क्यों?

“लौटना होगा” का लफ्ज़ शायद किसी के लौटने की दुआ हो, या खुद से एक वादा — लौट कर फिर से जीना, लौट कर फिर से सोंचना । किताब दर्द को सामने रखती है पर हिम्मत भी साथ में देती है — हर टूटन के बाद, हर राख के बाद, अगर चाहो तो नया सफ़र शुरू किया जा सकता है। lautna hoga book

लेखक की आवाज़ सख़्त है और कभी-कभी कोमल भी; वह चाहती है कि हम सवालों के पीछे छिपी नहीं, बल्कि सामने आई इंसानियत को देखें।


अन्तिम अल्फ़ाज़

इस किताब का सबसे बड़ा करिश्मा यह है कि वह चुप्पी में बोलती है, और बोलते-बोलते हमें हमारी टूटन की असल वजह दिखा देती है। यदि आप वह पढ़ना चाहते हैं जो अक्सर अनसुना रह जाता है — उन आवाज़ों को, जो कहती हैं “लौटना होगा” — तो यह किताब आपका स्वागत करती है।

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