Reality Of Indian Premier League | IPL का नशा नोजवान का नास?
ताअरुफ़ (परिचय)
आज का दौर एक ऐसे फ़ितनों से भरा हुआ है जिसमें मुसलमान नौजवान दीन और दुनिया के असल मक़ासिद को छोड़कर लाहो-लाअब और फ़ुज़ूल मशग़लों में डूबते जा रहे हैं। इन्हीं मशग़लों में से एक है IPL यानी इंडियन प्रीमियर लीग — जो एक क्रिकेट टूर्नामेंट है, मगर अब ये सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि शोहरत, शहवत, सट्टा, और गुनाह का अड्डा बन चुका है।
इस मक़ाले में हम क़ुरआन और हदीस की रोशनी में यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्या IPL जैसी तफ़रीहात हक़ीक़त में एक मुसलमान के लिए जाइज़ हैं? क्या यह वाक़ई नोजवानों के लिए एक सरगर्मी है या हौसलों और हयात की तबाही?
IPL की हक़ीक़त: सिर्फ़ खेल या गुमराही का ज़रिया?
IPL की शुरुआत साल 2008 में हुई और चंद सालों में यह टूर्नामेंट दुनिया के सबसे मुनाफ़ा कमाने वाले खेलों में से बन गया। मगर इसके साथ-साथ IPL ने अपने साथ लाया: Reality Of Indian Premier League
- फ़ुज़ूल तफ़रीह और वक़्त की तबाही
- शर्टलेस डांस और बेहयाई
- सट्टेबाज़ी और हराम कमाई
- दीन से ग़फ़लत और नमाज़ों की तबाही
- तस्कीन नहीं बल्कि तशवीश (घबराहट)
क़ुरआन की रोशनी में खेल और लाहो-लाअब
अल्लाह तआला फ़रमाते हैं:

— (Surah Al-An’am: 32)
इस आयत से साफ़ ज़ाहिर होता है कि दुनियावी खेलों में मशग़ूल होना एक असली मक़सद नहीं, बल्कि महज़ एक दिल बहलाव है।
हदीस की रोशनी में तफ़रीह और खेल
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“हर खेल गुनाह है सिवाय तीन के: तीरंदाज़ी, घोड़े की सवारी और अपनी बीवी के साथ खेलना।”
— (तIRMIZI)
इस हदीस से ये बात सामने आती है कि इस्लाम उन खेलों को पसंद करता है जो जिस्मानी सलाहियतों को बेहतर बनाएँ, दीन के फ़ायदे में हों या घर-परिवार के रिश्तों को मज़बूत करें, ना कि ऐसे खेल जो इंसान को बेहयाई और गफ़लत की तरफ ले जाएँ। Reality Of Indian Premier League
IPL का नशा और नौजवानों की तबाही
आज IPL को देखा जाए तो ये सिर्फ़ एक खेल नहीं बल्कि: Reality Of Indian Premier League
- 8 बजे से 12 बजे रात तक TV के सामने बैठ जाना
- नमाज़ें छोड़ देना या जल्दबाज़ी में पढ़ना
- टीमों का जुनून और तास्सुब
- बेटिंग (सट्टा), Fantasy Cricket जैसे हराम धंदे
- डांस और म्यूज़िक के शो
ये तमाम चीज़ें इंसान को अख़लाकी और रूहानी तौर पर नष्ट कर देती हैं।
IPL और हराम कमाई
IPL के ज़रिए पैसे कमाते हैं। अल्लाह तआला फ़रमाते हैं:

“ऐ ईमान वालों! “
— (Surah Al-Ma’idah: 90)
इस आयत में साफ़ तौर पर जुए और हराम तरीक़ों से बचने का हुक्म है, जबकि IPL की कमाई और खेल का एक बड़ा हिस्सा इसी हराम में डूबा है।
IPL की तबाही का असर: नमाज़, तिलावत और इल्म से दूरी
जो वक़्त एक मुसलमान को: Reality Of Indian Premier League
- कुरआन की तिलावत में लगाना चाहिए,
- नमाज़ को बेहतर करने में देना चाहिए,
- इल्म हासिल करने में लगाना चाहिए,
वही वक़्त वो IPL देखने, टीम बदलने, रन गिनने और बेकार की गुफ़्तगू में ज़ाया कर देता है।
मुसलमान का मक़सद क्या है?
क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं:
“और मैंने इंसान और जिन्न को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।”
— (Surah Adh-Dhariyat: 56)
जबकि IPL हमें इबादत से हटाकर ग़फ़लत, शैतानी मज़ाक़ और हराम की तरफ़ ले जाता है।
हलाल तफ़रीह और खेल क्या हैं?
इस्लाम तफ़रीह से मना नहीं करता, मगर शरई हदूद में रहकर:
- बग़ैर बेहयाई के
- बग़ैर सट्टे और हराम के
- बग़ैर नमाज़ों की कुर्बानी के
तफ़रीह का मक़सद दिल को राहत देना है, ना कि दीन से ग़ाफिल बनाना।
नौजवानों से पैग़ाम
नौजवानों को चाहिए कि:
- अपने वक़्त को कीमती समझें
- हर उस चीज़ से दूर रहें जो दीन से ग़ाफिल करे
- IPL और उस जैसी हर फ़ुज़ूल तफ़रीह से अपने आप को महफ़ूज़ रखें
- अपने दिल में ये एहसास पैदा करें कि अल्लाह मुझे देख रहा है
- मस्जिदों को आबाद करें, न कि IPL स्टेडियमों को इन्हें भी पढ़ें ..
- आसान तरीका Arabic सीखने का
- नमाज़ की रकात कितनी होती हैं?
बिलकुल! नीचे दी गई हैं वो “7 वजहें” जो इस टाइटल “IPL की खौफनाक सच्चाई: 7 वजहें क्यों ये नशा बना नोजवानों की तबाही” को मुकम्मल बनाती हैं। ये वजहें इस्लामिक नजरिए, समाजिक असर, और असल ज़िन्दगी की हकीकतों पर आधारित हैं:
🧠 1. वक़्त की बर्बादी (Time Wastage)
IPL के मैच 3-4 घंटे तक चलते हैं ये कीमती वक़्त जिसे तालीम, तिजारत या इबादत में लगाया जा सकता था, सिर्फ एक तफ़रीह में जाया हो रहा है।
क़ुरान में है:
(Surah Al-Mu’minun: 3)
🔞 2. बेहयाई और फुज़ूल म्यूज़िक का प्रचार
IPL में चीयरलीडर कल्चर, तेज़ म्यूज़िक, और फुज़ूल तफ़रीह को प्रमोट किया जाता है। ये सब नौजवानों में हया और शर्म को खत्म करता है, जो इस्लाम की बुनियादी तालीम है।
हदीस:
(सहीह बुख़ारी)
🧪 3. जुआ और सट्टेबाज़ी की लत (Gambling Addiction)
IPL के दौरान ऑनलाइन बेटिंग ऐप्स और सट्टेबाज़ी का चलन बढ़ जाता है। लाखों नौजवान इसमें पैसे लगाते हैं और तबाही का रास्ता चुनते हैं।
क़ुरान:
(Surah Al-Ma’idah: 90)
💸 4. तालीमी नुकसान और गिरते ग्रेड्स
IPL के कारण स्टूडेंट्स पढ़ाई में दिलचस्पी खो बैठते हैं। फ़ाइनल एग्ज़ाम के मौसम में भी मैच को तरजीह दी जाती है, जिससे नतीजों पर बुरा असर पड़ता है।
📵 5. मोबाइल और सोशल मीडिया का बेहिसाब इस्तेमाल
IPL मैचों से जुड़े memes, reels, highlights, fantasy leagues—ये सब मिलकर नौजवानों को screen addiction में डाल देते हैं, जिससे उनका असली जिंदगी से रिश्ता कमजोर हो जाता है।
🛑 6. ग़फ़लत और नमाज़ों की पाबंदी में कोताही
IPL का शौक इतना हावी हो जाता है कि लोग नमाज़ के औकात भूल जाते हैं। कभी मैच के बीच में नमाज़ छोड़ दी जाती है, तो कभी पूरी तरह कज़ा हो जाती है।
👎 7. झूठी उम्मीदें और Celebrity Worship
IPL प्लेयर्स को हीरो समझकर नौजवान उनकी नकल करने लगते हैं—उनके हेयर स्टाइल, कपड़े, lifestyle तक। ये अंधी मुहब्बत उन्हें अस्ल role model यानी पैग़म्बर ﷺ और सहाबा से दूर कर देती है।
ख़ुलासा (नतीजा)
IPL का नशा एक ख़तरनाक जहर है जो नौजवानों की अक़्ल, दीन, इमान और ज़िन्दगी को बरबाद कर रहा है। इस्लाम हमें सिखाता है कि:
- वक़्त को ज़ाया ना करें
- हराम से बचें
- इबादत को तरजीह दें
- दीन और दुनिया का सही बैलेंस रखें
दुआ
“ऐ अल्लाह! हमें फ़ुज़ूल कामों से महफूज़ रख, हमारे दिलों में दीन की महब्बत पैदा कर, और हमें हिदायत अता फ़रमा। आमीन!”
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