Fajar Ki Namaz Ka Tarika: फजर की नमाज़ इस्लाम में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह दिन की पहली नमाज़ है, और इसका सही तरीके से पढ़ना हमारे दिन की शुरुआत अल्लाह की इबादत से करता है। इस आर्टिकल में हम फजर की नमाज़ का तरीका, नीयत, रकातों की संख्या, पढ़ने की दुआ और जरूरी सावधानियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। Fajar Ki Namaz Ka Tarika मर्द और औरतों के लिए पूरी गाइड
Fajar Ki Namaz Ka Tarika – मर्द और औरतों के लिए पूरी गाइड
1. फजर की नमाज़ की रकातें
फजर की नमाज़ कुल मिलाकर चार रकात होती है: Fajar Ki Namaz Ka Tarika
- 2 रकात सुन्नत-ए-मुअक्कदा (जो अत्यंत महत्व रखती है और उसे नियमित रूप से पढ़ना चाहिए)
- 2 रकात फर्ज़ Fajar Ki Namaz Ka Tarika
सुन्नत-ए-मुअक्कदा को छोड़ना सही नहीं माना जाता। इसे नियमित रूप से पढ़ना नबी मुहम्मद (ﷺ) का तरीका रहा है।
2. फजर की नमाज़ की नीयत कैसे करें
नीयत को दिल में करना काफी है, लेकिन इसे ज़बानी कहना बेहतर समझा जाता है। जब फजर की सुन्नत या फर्ज़ रकात शुरू करने लगें, तो नीयत इस प्रकार करें: Fajar Ki Namaz Ka Tarika Aur Niyat
सुन्नत की नीयत: Fajar Ki Namaz Ka Tarika
“मैं अल्लाह की रज़ा के लिए Fajar (फजर) की दो रकात सुन्नत ‘Sunnat’ पढ़ने की नीयत करता/करती हूँ।”
फर्ज़ की नीयत: Fajar Ki Namaz Ka Tarika
नीयत करते समय, अल्लाह की रज़ा और उपस्थिति का ध्यान रखें।
3. फजर की नमाज़ का तरीका – कदम-ब-कदम मार्गदर्शन
(क) तकबीर-ए-तहरीमा से शुरू करें
फजर की नमाज़ की शुरुआत तकबीर-ए-तहरीमा से होती है। इसके लिए:
- अल्लाहु अकबर’ कहते हुए दोनों हाथों को कानों के बराबर तक उठाएं, फिर हाथों को नाभि के नीचे बांध लें।
- मर्द तकबीर-ए-तहरीमा के वक्त दोनों हाथ कंधों तक उठाते हैं।
- औरतें हाथ उठाते समय अपने हाथों को छाती के करीब रखती हैं।
- दोनों हाथों को कंधों तक उठाते हुए ‘अल्लाहु अकबर’ कहें और फिर हाथों को सीने के पास बांध लें।
हाथ बांधने का तरीका:
- मर्दों के लिए सुन्नत है कि वे अपना दायां हाथ बाएं हाथ के ऊपर नाभि के नीचे बांधें।
- औरतें अपने हाथों को छाती पर बांधती हैं, यानी दायां हाथ बाएं हाथ पर छाती के पास रखती हैं।
(ख) सना पढ़ें
तकबीर के बाद सना पढ़ें:
- “सुब्हानक अल्लाहुम्मा …………. व-ला इलाहा ग़ैरुका। पूरी सना”
- सना पढ़ने से दिल में अल्लाह की तारीफ होती है और ध्यान इबादत पर केंद्रित होता है।
(ग) सूरह फातिहा और दूसरी सूरह पढ़ें
- सूरह फातिहा (अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन…) पढ़ें। इसे हर रकात में पढ़ना अनिवार्य है।
- इसके बाद कोई दूसरी छोटी सूरह, जैसे सूरह इखलास (कुल हुवल्लाहु अहद…) पढ़ें।
(घ) रुकू करें
- “अल्लाहु अकबर” कहते हुए रुकू में जाएं।
- रुकू में जाते ही “सुब्हाना रब्बिय-ल-अज़ीम” तीन बार कहें।
- रुकू करते वक्त पीठ सीधी होनी चाहिए और नजर नीचे पैरों के बीच पर होनी चाहिए।
- मर्द रुकू में कमर को बिल्कुल सीधा रखते हैं और हाथों को घुटनों पर पकड़ते हैं।
- औरतें रुकू में हल्का झुकती हैं और अपने हाथों को घुटनों पर रखती हैं, लेकिन मर्दों की तरह सीधा झुकने की बजाय हल्की झुकी रहती हैं। Fajar Ki Namaz Ka Tarika
(ङ) क़ौमा – रुकू के बाद खड़े होना
- रुकू से उठते हुए कहें, “समीअल्लाहु लिमन हमिदह”।
- फिर पूरी तरह खड़े होकर कहें, “रब्बना लकल-हम्द”।
(च) सजदा करें
- “अल्लाहु अकबर” कहते हुए सजदा में जाएं।
- सजदा में जाते ही “सुब्हाना रब्बिय-ल-आ’ला” तीन बार कहें।
- सजदा करते समय माथा, नाक, दोनों हथेलियाँ, दोनों घुटने और दोनों पैर की उंगलियाँ ज़मीन को छूनी चाहिए।
- मर्द सज्दा करते समय कोहनियों को घुटनों से हटाकर रखते हैं और पेट को जांघों से दूर रखते हैं।
- औरतें सज्दा करते समय अपने हाथों को शरीर के पास रखती हैं और पेट को जांघों से मिलाकर सिमट कर सज्दा करती हैं।
(छ) जुलूस – सजदा के बाद बैठना
- सजदा के बाद “अल्लाहु अकबर” कहते हुए बैठें। इसे जुलूस कहते हैं।
- इस दौरान आप “रब्बिघफिर ली” भी पढ़ सकते हैं।
(ज) दूसरा सजदा करें
- फिर से “अल्लाहु अकबर” कहकर दूसरा सजदा करें और “सुब्हाना रब्बिय-ल-आ’ला” तीन बार पढ़ें।
(झ) दूसरी रकात में जाएं
- दूसरा सजदा पूरा करने के बाद “अल्लाहु अकबर” कहते हुए खड़े हो जाएं और दूसरी रकात शुरू करें।
- दूसरी रकात में भी सूरह फातिहा और कोई छोटी सूरह पढ़ें।
(ञ) अंत में तशह्हुद बैठें
- दूसरी रकात के बाद बैठकर तशह्हुद (अत-तहियात) पढ़ें:
- “अत-तहियातु लिल्लाहि —पूरी पढ़ें –अब्दुहू व रसूलुह।“
- मर्द तशह्हुद में बाएं पैर पर बैठते हैं और दायां पैर खड़ा रखते हैं।
- औरतें तशह्हुद में दोनों पैरों को दाईं तरफ मोड़ कर बैठती हैं और दोनों को पीछे की तरफ रखती हैं।
- बाद इसके दरूद इब्राहिमी
- फिर बाद इसके दुआ
(ट) सलाम फेरें
- तशह्हुद के बाद, दाएं कंधे की ओर “अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह” कहें और फिर बाएं कंधे की ओर भी यही कहें।
- सलाम फेरने से नमाज़ पूरी होती है।
इन फर्ज़ों और तरीके से औरतों और मर्दों की नमाज़ में फर्क होता है, जो इस्लामी तालीमात में बताया गया है।
4. फजर की सुन्नत और फर्ज़ रकातों में क्या अंतर है?
फजर की सुन्नत रकातों में केवल सूरह फातिहा और दूसरी छोटी सूरह पढ़नी होती है। इसमें तशह्हुद के अलावा दरूद शरीफ और कोई खास दुआ पढ़ना आवश्यक नहीं है। Fajar Ki Namaz Ka Tarika
फर्ज़ रकातें अल्लाह के हुक्म के अनुसार पढ़नी होती हैं और इसे छोड़ना गुनाह समझा जाता है। फर्ज़ रकातें इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा हैं।
5. फजर की नमाज़ के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें
- फजर की नमाज़ सुबह के समय होती है और इसका समय सुबह के पहले उजाले से शुरू होकर सूरज निकलने से पहले तक रहता है।
- सुन्नत रकातों को हमेशा नियमित रूप से पढ़ें।
- फजर की नमाज़ पढ़ते समय दिल में खशूअ (अल्लाह की याद) और खज़ूअ (अल्लाह के सामने झुकना) का एहसास बनाए रखें।
6. फजर की नमाज़ के फायदें
- फजर की नमाज़ पढ़ने से दिन की शुरुआत अल्लाह की याद से होती है, जिससे दिनभर का वक्त बरकतों से भर जाता है।
- फजर की नमाज़ अल्लाह के करीब लाने और उसकी रहमत पाने का बेहतरीन माध्यम है।
- इसे पढ़ने से दिल और आत्मा को सुकून मिलता है और यह इबादत इंसान के दिल में अल्लाह का खौफ और उसके लिए मोहब्बत पैदा करती है।
इस गाइड का उद्देश्य यह था कि फजर की नमाज़ “Fajar Ki Namaz Ka Tarika” को सरल तरीके से समझाया जाए ताकि इसे पढ़ने में कोई कठिनाई न हो। अल्लाह हम सबकी इबादत को कबूल करे।
FAQs: मर्द और औरतों के लिए पूरी गाइड
फजर की नमाज़ कितनी रकअत होती है?
फजर की नमाज़ कुल 4 रकअत होती है:
2 रकअत सुन्नत-ए-मुअक्कदा
2 रकअत फर्ज़
फजर की नमाज़ का सही समय कब होता है?
फजर की नमाज़ का समय सुबह-सादिक (फज्र की पहली रोशनी) से सूरज निकलने तक होता है। सूरज निकलने के बाद यह नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती।
मर्द और औरतों के नमाज़ पढ़ने के तरीके में क्या फर्क है?
मर्द रुकू और सजदा में ज्यादा झुकते हैं, जबकि औरतें संयम और सादगी के साथ कम झुकती हैं।
औरतें अपने हाथ अपने सीने के करीब बांधती हैं, जबकि मर्द नाभी के नीचे।
फजर की नमाज़ में कौन सी सूरतें पढ़नी चाहिए?
पहले रकअत में सूरत-अल-फातिहा के बाद सूरत-अल-काफिरून पढ़ना सुन्नत है।
दूसरी रकअत में सूरत-अल-फातिहा के बाद सूरत-अल-इख्लास पढ़ी जा सकती है।
क्या फजर की सुन्नत नमाज़ के बिना फर्ज़ पढ़ सकते हैं?
फजर की सुन्नत-ए-मुअक्कदा बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन अगर समय कम हो तो फर्ज़ नमाज़ को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
फजर की नमाज़ में किस तरह की गलतियां आम होती हैं?
समय खत्म होने के करीब नमाज़ पढ़ना।
तिलावत में ध्यान न देना।
सजदा या रुकू सही तरीके से न करना।
फजर की नमाज़ के बाद कौन सी दुआ पढ़नी चाहिए?
फजर की नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ी जा सकती है:
“अल्लाहुम्मा अजिरनी मिन अन-नार” (हे अल्लाह, मुझे जहन्नम की आग से बचा)।
क्या आप इस गाइड को और विस्तार से जानना चाहेंगे? 😊
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