इस्लाम में वित्र नमाज़ “Witr Namaz Ka Tarika” एक बहुत अहम इबादत है, जिसे हर मुसलमान को सही तरीके से अदा करना चाहिए। लेकिन अक्सर लोग इस नमाज़ के सही तरीक़े को लेकर कन्फ्यूज़ रहते हैं। अगर आप भी यह जानना चाहते हैं कि वित्र नमाज़ कैसे पढ़ी जाती है, कितनी रकात होती है, कौन-कौन सी दुआएं पढ़नी चाहिए—तो यह आर्टिकल आपके लिए है। इसे मुकम्मल पढ़ें और बार-बार पढ़ने लायक इस मालूमात को दूसरों तक भी पहुँचाएँ।

वित्र नमाज़ कितनी रकात होती है?
वित्र नमाज़ तीन रकात होती है और यह ईशा की फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है। इसे पढ़ना वाजिब है, यानी इसे छोड़ना ठीक नहीं। हदीस में आता है कि हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया:
Witr Namaz Ka Tarika
“वित्र नमाज़ को मत छोड़ो, क्योंकि यह हक़ (सही) है।” (सुनन इब्ने माजा 1178)
Witr Namaz Ka Tarika वित्र नमाज़ पढ़ने का सही तरीक़ा
➡️ पहली और दूसरी रकात:
- निय्यत करें: “मैं तीन रकात वित्र नमाज़ अल्लाह के लिए पढ़ने की निय्यत करता हूँ, मुँह मेरा काबा शरीफ की तरफ़, अल्लाहु अकबर।”
- तकबीर-ए-तहरीमा कहें: “अल्लाहु अकबर”
- सुरह फातिहा पढ़ें, फिर कोई सुरह (जैसे सुरह इख़लास, सुरह फलक या सुरह नास) पढ़ें।
- रुकू और सजदा करें, फिर दूसरी रकात के लिए खड़े हो जाएं।
- दूसरी रकात में भी वही पढ़ें जो पहली में पढ़ा था, और फिर तीसरी रकात के लिए खड़े हो जाएं।
➡️ तीसरी रकात:
- सुरह फातिहा और कोई सुरह पढ़ें।
- फिर रुकू में जाने से पहले तकबीर कहें (अल्लाहु अकबर) और हाथ ऊपर उठाकर दुआ-ए-क़ुनूत पढ़ें।
दुआ-ए-क़ुनूत (जो तीसरी रकात में पढ़ी जाती है)
اللهم انا نستعينك ونستغفرك ونؤمن بك ونتوكل عليك ونثني عليك الخير و نشكرك ولا نكفرك ونخلع ونترك من يفجرك
👉 हिंदी में:
“ऐ अल्लाह! हम तुझसे मदद माँगते हैं, तुझसे मग़फ़िरत चाहते हैं, तुझपर ईमान रखते हैं और तुझपर भरोसा करते हैं, तेरी तारीफ़ करते हैं और तेरा शुक्र अदा करते हैं, तेरा इंकार नहीं करते, और उन लोगों से किनारा करते हैं जो तेरा हुक्म नहीं मानते।”
📌 अगर किसी को दुआ-ए-क़ुनूत याद न हो तो वो तीन बार “रब्बना आतिना फ़िद्दुनिया हसनत…” पढ़ सकता है।
क्या वित्र नमाज़ में एक सलाम फेरा जाता है या दो?
📌 जमात में पढ़ने पर: इमाम एक सलाम फेरता है (तीनों रकात को जोड़कर पढ़ता है)।
📌 अकेले पढ़ने पर: दो सलाम भी फेरे जा सकते हैं, लेकिन बेहतर एक सलाम से पढ़ना है।
वित्र नमाज़ कब तक पढ़ सकते हैं? Witr Namaz Ka Tarika
वित्र नमाज़ ईशा की नमाज़ के बाद से लेकर फज्र से पहले तक पढ़ सकते हैं। हदीस में आता है कि “जो शख़्स तहज्जुद पढ़ता है, वह वित्र नमाज़ आख़िर में पढ़े।”
📌 अगर कभी वित्र छूट जाए तो?
अगर कभी वित्र नमाज़ क़ज़ा हो जाए तो अगले दिन सूरज निकलने के बाद और ज़ुहर से पहले तक इसे दो रकात नफ़्ल की तरह अदा कर सकते हैं।
वित्र नमाज़ क्यों पढ़ी जाती है? जानिए इसकी अहमियत और फज़ीलत
इस्लाम में वित्र नमाज़ एक बहुत अहम इबादत है, जिसे हर मुसलमान को अदा करना चाहिए। यह नमाज़ ईशा की फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है और इसे वाजिब माना गया है। यानी इसे छोड़ना सही नहीं है। लेकिन सवाल यह उठता है कि वित्र नमाज़ क्यों पढ़नी चाहिए और इसकी क्या फज़ीलत (महत्त्व) है? आइए जानते हैं!
1️⃣ वित्र नमाज़ अल्लाह की पसंदीदा इबादत है
हदीस शरीफ में आता है कि रसूलुल्लाह ﷺ वित्र नमाज़ की बहुत पाबंदी फरमाते थे और उन्होंने इसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लिया था। हदीस में आया है:
“बेशक अल्लाह ताक़ (वित्र) को पसंद करता है, इसलिए ऐ अहले कुरआन, वित्र पढ़ो।” (सुनन अबू दाऊद 1416)
इससे पता चलता है कि अल्लाह तआला को वित्र नमाज़ बहुत पसंद है, और जो इसे पढ़ता है, उसे अल्लाह की ख़ास रहमत मिलती है।
2️⃣ गुनाहों की माफ़ी और जन्नत की बशारत
जो शख़्स वित्र नमाज़ अदा करता है, उसके छोटे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। हदीस में आता है:
“जो शख़्स रात की नमाज़ (तहज्जुद और वित्र) को ज़िंदा रखे, उसके पिछले गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।” (मुस्लिम शरीफ 757)
यानी यह नमाज़ सिर्फ़ एक इबादत ही नहीं, बल्कि गुनाहों की माफ़ी और जन्नत की बशारत पाने का बेहतरीन ज़रिया भी है।
3️⃣ यह रात की सबसे मुकम्मल इबादत है
इस्लाम में रात की इबादत का बहुत बड़ा दर्जा है। वित्र नमाज़, तहज्जुद के बाद पढ़ी जाने वाली सबसे अहम इबादत मानी जाती है। हदीस में आता है:
“जो शख़्स तहज्जुद पढ़ता है, उसे वित्र नमाज़ आख़िर में पढ़नी चाहिए।” (बुखारी 998)
अगर कोई शख़्स तहज्जुद नहीं पढ़ता, तब भी उसे वित्र नमाज़ ज़रूर पढ़नी चाहिए, क्योंकि यह रात की इबादत को मुकम्मल कर देती है।
4️⃣ क़यामत के दिन नूर बनेगी
क़यामत के दिन हर इंसान को रोशनी (नूर) की ज़रूरत होगी, और जो लोग वित्र नमाज़ पढ़ते हैं, उनके लिए यह नूर का सबब बनेगी।
📌 अल्लाह तआला हमें वित्र नमाज़ की पाबंदी करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए, आमीन! 🤲
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वित्र नमाज़ की अहमियत क्यों है?
- अल्लाह से क़ुर्बत: यह इबादत इंसान को अल्लाह के क़रीब लाती है।
- गुनाहों की माफ़ी: वित्र पढ़ने से छोटे गुनाह माफ हो जाते हैं।
- रात की बर्कतें: वित्र पढ़ने से रात की बरकतें नसीब होती हैं।
- क़यामत के दिन नूर: हदीस में आता है कि “वो लोग जो वित्र नमाज़ पढ़ते हैं, उनके लिए क़यामत के दिन नूर होगा।” Witr Namaz Ka Tarika
वित्र नमाज़ की इस्लामिक तारीख़ और इससे जुड़ी कहानी
इस्लाम में वित्र नमाज़ की बहुत अहमियत है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे एक इस्लामिक तारीख़ और कहानी भी मौजूद है? आइए, जानते हैं कि यह नमाज़ कब से शुरू हुई और इसकी इस्लामिक हिस्ट्री क्या कहती है।
➤ वित्र नमाज़ का हुक्म कब और कैसे आया?
इस्लाम में वित्र नमाज़ का हुक्म हज़रत मुहम्मद ﷺ के ज़माने में दिया गया। यह नमाज़ शुरू से ही मुसलमानों के लिए एक अहम इबादत रही है।
📌 हदीस में आता है कि जब इस्लाम का पहला दौर था और सहाबा किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) नमाज़ पढ़ते थे, तो उन्हें रात में ज्यादा इबादत करने की ताकीद की गई। शुरुआत में रात की नमाज़ (तहज्जुद) फ़र्ज़ थी, लेकिन बाद में इसे नफ़्ल कर दिया गया और वित्र नमाज़ को वाजिब कर दिया गया।
📖 हदीस में आता है:
“रात की नमाज़ दो-दो रकात है, और जब तुम्हें डर हो कि सुबह का वक़्त हो जाएगा, तो एक रकात वित्र पढ़ लो।” (बुखारी 990)
इससे पता चलता है कि वित्र नमाज़ को रात की इबादत का हिस्सा बनाया गया था ताकि मुसलमान अल्लाह के करीब रहें और उनकी रात की इबादत मुकम्मल हो जाए।
➤ एक खास वाक़िया: जब सहाबा ने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा
एक बार सहाबा किराम ने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा कि “या रसूलुल्लाह! हमें रात की इबादत का बेहतरीन तरीक़ा बताइए।”
तो हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया:
“तहज्जुद पढ़ो और उसके बाद वित्र को आख़िरी नमाज़ बनाओ, क्योंकि यह अल्लाह की पसंदीदा इबादत है।” (सुनन अबू दाऊद 1416)
यही वजह है कि नबी-ए-पाक ﷺ और उनके सहाबा इस नमाज़ की बहुत पाबंदी करते थे और इसे अल्लाह से क़रीब होने का ज़रिया मानते थे।
➤ वित्र नमाज़ का एक खास अजूबा वाक़िया
📌 एक बार हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक शख़्स को देखा कि वह ईशा की नमाज़ पढ़कर चला गया और वित्र नहीं पढ़ा।
तो उन्होंने फ़रमाया:
“वो शख़्स तो अधूरी नमाज़ पढ़कर गया!”
इसका मतलब यह है कि अगर कोई मुसलमान ईशा के बाद वित्र नमाज़ नहीं पढ़ता, तो उसकी रात की इबादत मुकम्मल नहीं होती। यही वजह है कि इस नमाज़ को छोड़ना सही नहीं माना जाता।
➤ वित्र नमाज़ और क़यामत की एक हदीस
हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“क़यामत के दिन सबसे पहले बंदे की फ़र्ज़ नमाज़ का हिसाब होगा, फिर अगर उसमें कमी होगी तो अल्लाह फरमाएगा: मेरे बंदे के पास नफ़्ल (और वित्र) नमाज़ें हैं?” (अबू दाऊद 864)
यानी अगर किसी की फ़र्ज़ नमाज़ में कमी होगी, तो वित्र जैसी नफ़्ल नमाज़ें उसे पूरा कर देंगी।
वित्र नमाज़ छोड़ना नहीं चाहिए!
इस्लामी तारीख़ से यह साफ़ साबित होता है कि वित्र नमाज़ एक बहुत अहम इबादत है और इसे छोड़ना सही नहीं है। यह न सिर्फ़ अल्लाह के क़रीब करने वाली नमाज़ है, बल्कि क़यामत के दिन यह रोशनी (नूर) भी बनेगी।
📌 तो आइए! हम सब इस नमाज़ की पाबंदी करें और इसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएं।
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अहम सवाल-जवाब (FAQs)
❓ अगर वित्र नमाज़ छूट जाए तो क्या करें?
✅ सुबह फज्र के बाद दो रकात नफ़्ल की तरह पढ़ लें।
❓ क्या वित्र नमाज़ में दुआ-ए-क़ुनूत ज़रूरी है?
✅ हाँ, लेकिन अगर याद न हो तो “रब्बना आतिना” पढ़ सकते हैं।
❓ क्या वित्र नमाज़ को जोड़कर पढ़ सकते हैं?
✅ हाँ, तीनों रकात एक साथ एक सलाम से पढ़ सकते हैं।
नतीजा:
वित्र ‘Witr Namaz Ka Tarika‘ नमाज़ इस्लाम में बहुत अहम है और इसे छोड़ना ठीक नहीं। इसे पढ़ने से अल्लाह की रहमत और बरकतें मिलती हैं। उम्मीद है कि यह तहरीर आपको वित्र नमाज़ को सही तरीक़े से पढ़ने में मदद देगी।
अगर आपको यह मालूमात पसंद आई हो तो इसे सेव करें, बार-बार पढ़ें और दूसरों तक पहुँचाएँ ताकि सबको सही इल्म मिले। अल्लाह हम सबकी इबादत क़ुबूल फरमाए, आमीन! 🤲
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