Kunde Ki Niyaz क्यों की जाती है और इसका असली मकसद क्या है? आइए, हज़रत गौस-ए-आज़म की इस खूबसूरत रस्म के पीछे छुपे रहस्यों को समझते हैं!

Kunde Ki Niyaz: कुंदे की नियाज़ कब होती है?
“कुंदे की नियाज़” आमतौर पर इस्लामी कैलेंडर के महीने रबी-उस-सानी (ربيع الثاني) की 11 तारीख को की जाती है। यह तारीख हज़रत गौस-ए-आज़म अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के विसाल (इंतकाल) की याद में मुन्तख़ब की गई है। इसलिए इसे “ग्यारहवीं शरीफ” (گیارہویں شریف) भी कहा जाता है।
इस खास दिन, मुसलमान हज़रत गौस-ए-आज़म की तालीमात और उनकी रूहानी खिदमतों को याद करते हैं। लोग उनके लिए ईसाल-ए-सवाब की नीयत से खाना पकाते हैं और इसे गरीबों और जरूरतमंदों में तकसीम करते हैं। इस अमल का मकसद अल्लाह की रज़ा हासिल करना और इंसानियत के लिए मोहब्बत और हमदर्दी का पैगाम देना है।
हालांकि, Kunde Ki Niyaz केवल 11 तारीख तक ही सीमित नहीं है। अगर कोई इस तारीख को नहीं कर पाता, तो वह अपनी सहूलत के हिसाब से किसी भी दिन कर सकता है। इसका असल मकसद हज़रत गौस-ए-आज़म की मोहब्बत में अल्लाह की राह में गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना है।
यह दिन मुसलमानों के लिए इबादत, दुआ और इंसानियत की खिदमत का खास मौका है।
Kunde Ki Niyaz: कुंदे की नियाज़
कुंदे की नियाज़” यानी अल्लाह को अपने लिए कुंदे में कुछ अर्पण करने का एक विशेष आदत है। इस्लामी सभ्यता में, कुंदे की नियाज़ एक महत्वपूर्ण आयाम है जिसमें अल्लाह के लिए गरीबों और कमज़ोरों के लिए भोजन, आराम और नई कपड़े जैसी चीज़ें दी जाती हैं। यह आमतौर पर मुस्लिम समुदाय में बड़े सम्मान और प्रेम के साथ किया जाता है। कुंदे की नियाज़ एक सादा और मानवीय सेवा है जो इस्लामी शिक्षाओं के तहत की जाती है, जो मानवता के सिद्धांतों की रोशनी में की जाती है।
kunde ki niyaz: किसके नाम से होती है ?
कुंदे की नियाज़” आमतौर पर हज़रत गौस-ए-आज़म अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के नाम से की जाती है। यह नियाज़ उनकी इल्मी और रूहानी खिदमतों को याद करते हुए अल्लाह की राह में की जाने वाली एक इबादत है। मुस्लिम समाज में, हज़रत गौस-ए-आज़म का मुकाम बहुत बुलंद है और उन्हें “गौस-ए-आज़म” यानी मदद करने वालों का सरदार कहा जाता है।
कुंदे की नियाज़ में विशेष दुआएं पढ़ी जाती हैं और गरीबों को खाना खिलाने का इंतजाम किया जाता है। यह अमल न केवल रूहानी बरकतों का जरिया है बल्कि इसे लोगों के बीच मोहब्बत और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए भी किया जाता है।
यह नियाज़ इस बात की तालीम देती है कि हम अपने बड़ों के मकाम और उनकी तालीमात को याद रखते हुए, समाज के जरूरतमंद तबके की मदद करें। इसके जरिए इंसानियत और इबादत दोनों का बेहतरीन तालमेल देखने को मिलता है। हज़रत गौस-ए-आज़म के नाम से की जाने वाली यह नियाज़, दीन और दुनिया दोनों में बरकत और सवाब का जरिया बनती है।
कुंदे की नियाज़ की कहानी
कुंदे की नियाज़ की कहानी हज़रत गौस-ए-आज़म अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की जिंदगी से जुड़ी हुई है। हज़रत गौस-ए-आज़म इस्लाम के बड़े आलिम और वली थे, जिनकी रूहानी ताकत और करामात का ज़िक्र पूरी दुनिया में किया जाता है। उनकी जिंदगी इबादत, इल्म और इंसानियत की मिसाल है।
कहते हैं कि हज़रत गौस-ए-आज़म ने हमेशा जरूरतमंदों और गरीबों की मदद की। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अल्लाह की राह में खर्च कर दी और इंसानियत को इल्म और मोहब्बत का पैगाम दिया। कुंदे की नियाज़ उन्हीं की याद में की जाती है। इस नियाज़ में एक बड़े बर्तन, जिसे “कुंदा” कहा जाता है, में खाना बनाकर गरीबों और जरूरतमंदों में तकसीम किया जाता है।
इस कहानी का मकसद यह है कि इंसान अपने दिल में दूसरों के लिए हमदर्दी और मोहब्बत पैदा करे। कुंदे की नियाज़ सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि यह इंसानियत के उसूलों को ज़िंदा रखने का तरीका है। यह अमल हमें यह सीख देता है कि हम अपने बड़ों की तालीमात को याद रखते हुए दूसरों की मदद करें और अल्लाह की रज़ा हासिल करें। kunde ki niyaz kyu karte hai
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कुंदे की नियाज़ क्यों करते हैं?
हज़रत गौस-ए-आज़म अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की याद में की जाती है। यह एक खास इबादत है, जो उनकी इल्मी और रूहानी खिदमतों को सराहने और अल्लाह की रज़ा हासिल करने के लिए की जाती है। हज़रत गौस-ए-आज़म इस्लाम के एक बड़े वली और आलिम थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी अल्लाह की राह में गुजार दी। उनकी तालीमात मोहब्बत, इंसाफ और इंसानियत का पैगाम देती हैं।
कुंदे की नियाज़ करने का मकसद यह है कि हम अपने दिल में दूसरों के लिए हमदर्दी और मोहब्बत पैदा करें। इसमें गरीबों और जरूरतमंदों को खाना खिलाया जाता है, जो न केवल इंसानियत की खिदमत है बल्कि अल्लाह के करीब होने का जरिया भी है।
यह नियाज़ हमें अपने बड़ों की तालीमात और उनकी जिंदगी से सबक लेने की तालीम देती है। यह रस्म हमें यह एहसास दिलाती है कि अल्लाह के वलियों से मुहब्बत करना और उनकी याद में दूसरों की मदद करना इबादत का हिस्सा है। कुंदे की नियाज़ बरकत, सवाब और रूहानी फायदों का जरिया है, जो अल्लाह की रज़ामंदी के साथ-साथ समाज में मोहब्बत और भाईचारे को बढ़ावा देती है।
कुंदे की नियाज़ की फ़ज़ीलत
इस्लाम में हर नेक अमल का मक़सद सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा हासिल करना होता है। कुंदे की नियाज़ एक ऐसा अमल है जिसे कुछ लोग इबादत और बरकत का ज़रिया मानते हैं, लेकिन इस बारे में क़ुरआन और सही हदीस में कोई तस्दीक़ नहीं मिलती।
इस्लाम हमें सादगी और तौहीद की तालीम देता है। किसी भी अमल की फ़ज़ीलत वही होती है जो नबी-ए-करीम ﷺ और सहाबा ने अपनाई हो। इबादत का सही तरीका वही है जो सुन्नत से साबित हो। अगर कोई भी अमल कुरआन और हदीस से साबित नहीं, तो उसे करना इस्लाम के असल उसूलों से हट सकता है।
असल फ़ज़ीलत इस बात में है कि हम अपनी इबादत को शिर्क और बिदअत से बचाते हुए सिर्फ़ अल्लाह के लिए करें। सच्चे दिल से तिलावत, तस्बीह, सदक़ा और इख़लास के साथ इबादत करने से ही अल्लाह की रहमत और बरकत नसीब होती है।
हमें चाहिए कि हम अपनी इबादत को क़ुरआन और सुन्नत की रोशनी में करें ताकि हमारी नेकियाँ क़बूल हों और हमें असली बरकत और सवाब हासिल हो।
कुंदे की नियाज़ से जुड़े 5 FAQs:
कुंदे की नियाज़ क्या है?
कुंदे की नियाज़ हज़रत गौस-ए-आज़म अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की याद में की जाती है। इसमें खाना बनाकर अल्लाह की राह में गरीबों और जरूरतमंदों में तकसीम किया जाता है।
कुंदे की नियाज़ कब की जाती है?
यह नियाज़ इस्लामी महीने रबी-उस-सानी की 11 तारीख को की जाती है, जिसे ग्यारहवीं शरीफ के नाम से जाना जाता है।
कुंदे की नियाज़ का मकसद क्या है?
इसका मकसद अल्लाह की रज़ा हासिल करना, हज़रत गौस-ए-आज़म की तालीमात को याद करना, और गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करना है।
क्या कुंदे की नियाज़ केवल 11 तारीख को ही कर सकते हैं?
नहीं, अगर 11 तारीख को संभव न हो, तो आप अपनी सहूलियत के अनुसार किसी भी दिन कुंदे की नियाज़ कर सकते हैं।
कुंदे की नियाज़ में क्या दुआ पढ़ी जाती है?
कुंदे की नियाज़ में हज़रत गौस-ए-आज़म के लिए ईसाल-ए-सवाब की नीयत से दुआ की जाती है और अल्लाह से बरकत व रहमत की फरमाइश की जाती है।
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