1. प्रस्तावना

Roza Rakhne Ki Dua रमज़ान का महीना मुसलमानों के लिए एक बरकतों और रहमतों से भरा हुआ समय है। इस दौरान रोज़ा रखना न केवल अल्लाह की इबादत का ज़रिया है बल्कि इंसान को सब्र, तक़वा और खुदा की नेमतों का एहसास भी कराता है। रोज़ा रखने और खोलने की दुआएं इस इबादत को मुकम्मल बनाती हैं। यह दुआएं न केवल अल्लाह की रज़ामंदी हासिल करने का ज़रिया हैं, बल्कि इबादत में खालिसियत और बरकत भी लाती हैं।


2. रोज़ा रखने की दुआ (Roza Rakhne Ki Dua)

रोज़ा रखने से पहले जो नियत की जाती है, वह एक अहम हिस्सा है। यह नियत हमारी इबादत को मुकम्मल और अल्लाह के सामने पेश करती है।

Roza Rakhne Ki Dua In Hindi

हिंदी तर्जुमा:


“मैं कल के रोज़े की नियत की। मतलब: रमज़ान के महीने के कल के रोज़े की

भाई, जब हम ये बोलते हैं ना कि “मैंने कल के रोज़े की नियत की,” तो ऐसा लगता है जैसे अल्लाह से एक वादा कर रहे हों। मतलब, कल का पूरा दिन हम सिर्फ अल्लाह के लिए जिएंगे। ना सिर्फ खाने-पीने से दूर रहेंगे, बल्कि अपनी ज़ुबान, आंखें और दिल को भी पाक रखने की कोशिश करेंगे।

रोज़ा सिर्फ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, ये सब्र, तक़वा और अल्लाह की मोहब्बत को महसूस करने का एक ज़रिया है। जब हम नियत कर लेते हैं, तो दिल में एक सुकून सा आ जाता है—जैसे हम कोई खास मेहमान बन गए हों, और अल्लाह हमें अपनी रहमतों से नवाज़ने वाला हो।

कभी सोचा है कि ये छोटा सा जुमला “मैंने रोज़े की नियत की” कितना ताक़तवर है?
ये हमारे पूरे दिन का रुख़ बदल देता है।
जहां आम दिनों में हमें ग़ुस्सा आ सकता था, वहां हम कहेंगे, “अरे, मैं रोज़े से हूं, अल्लाह के लिए सब्र करूंगा।”
जहां बेकार बातें होती थीं, वहां अब हम कहेंगे, “छोड़ो यार, अल्लाह के ज़िक्र में वक्त लगाएं।”

कुरआन भी कहता है:
“अल्लाह ने रोज़े को तुम्हारे ऊपर फ़र्ज़ किया है ताकि तुम्हारे अंदर तक़वा पैदा हो।”
📖 (सूरह अल-बक़रह 2:183)

यानी, रोज़ा सिर्फ रुकने का नाम नहीं, बल्कि खुद को बदलने का मौका है।

तो जब हम नियत करें, तो बस लफ्ज़ ना कहें—दिल से महसूस करें कि हम अल्लाह के कितने करीब जा रहे हैं। ये सिर्फ एक इबादत नहीं, एक सफर है—जो हमें अल्लाह की रहमत और माफी की तरफ ले जाता है।

अल्लाह हमें रोज़े का हक़ अदा करने की तौफीक़ दे। आमीन! 🤲

दुआ (अरबी में):

Iftar Ki Dua: Roza Rakhne ki Dua or Roza Kholne ki dua
Roza Rakhne or Kholne ki Dua

इस दुआ का महत्व:
यह दुआ अल्लाह से मदद मांगने और अपनी नियत को पुख्ता करने के लिए पढ़ी जाती है। इससे इंसान का दिल रोज़े के लिए तैयार हो जाता है और अल्लाह की रज़ा हासिल होती है।


3. रोज़ा खोलने की दुआ (Roza Kholne Ki Dua)

इफ्तार के वक्त की दुआ का अपना एक खास महत्व है। इस वक्त अल्लाह अपने बंदों की दुआएं कबूल फरमाते हैं।

दुआ (Roza Kholne Ki Dua In English):

हिंदी तर्जुमा:

“ऐ अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा, तुझ पर ईमान लाया, तुझ पर भरोसा किया और तेरी दी हुई रोज़ी से रोज़ा खोला।”

इस दुआ का महत्व:
यह दुआ रोज़ा खत्म करते हुए अल्लाह का शुक्र अदा करने और अपनी इबादत को कबूल करवाने का एक वसीला है। यह दुआ अल्लाह से बरकत और रहमत मांगने का भी ज़रिया है।

दुआ पढ़ने का सही तरीका:

  • दुआ को पढ़ने और समझने का तरीका बताएं।
  • उदाहरण:
    • 1. साफ नियत के साथ दुआ करें
      दुआ करने से पहले अपनी नियत को साफ करें। दिल में यह यकीन रखें कि आप सिर्फ अल्लाह से मदद मांग रहे हैं, और वही आपकी दुआ सुनने वाला है।

      2. बिस्मिल्लाह से शुरुआत करें
      हर अच्छे काम की तरह दुआ पढ़ने से पहले “बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम” कहें। इससे आपकी दुआ अल्लाह के नाम से शुरू होती है, और उसमें बरकत आती है।

      3. अरबी में दुआ याद न हो तो तर्जुमा पढ़ें
      अगर दुआ का अरबी टेक्स्ट याद न हो, तो उसके हिंदी या अपनी भाषा में तर्जुमा पढ़ें।
      तर्जुमा पढ़ने से आप दुआ के मायने को समझ पाएंगे।
      अल्लाह आपकी दिल की बात को समझते हैं, चाहे आप अपनी भाषा में ही क्यों न दुआ करें।

      4. तवज्जो और दिल से मांगे
      दुआ पढ़ते वक्त दिल से और पूरी तवज्जो के साथ अल्लाह से मांगें। यह यकीन रखें कि अल्लाह आपकी दुआ को जरूर सुनेंगे।
      उदाहरण:
      अगर आप रोज़ा रखने की दुआ पढ़ रहे हैं, तो यह समझें कि आप अल्लाह से रमज़ान के रोज़े की नेमतें और सवाब मांग रहे हैं। इसे दिल से महसूस करें।

इफ्तार के वक्त के आदाब (Etiquettes of Iftar)

इफ्तार के वक्त मुसलमानों के लिए कुछ खास सुन्नतें और आदाब हैं, जिनका पालन करने से न केवल अल्लाह की रज़ामंदी हासिल होती है, बल्कि यह वक्त दुआओं की कबूलियत और बरकतों से भरपूर होता है। आइए जानते हैं इफ्तार के दौरान के सुन्नत और आदाब:


1. खजूर और पानी से रोज़ा खोलना सुन्नत है

  • रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इफ्तार के लिए खजूर को प्राथमिकता दी है।
    • अगर खजूर न हो, तो पानी से रोज़ा खोलना सुन्नत है।
  • इसका मकसद यह है कि रोज़ा खोलने के लिए हलकी और प्राकृतिक चीज़ों का इस्तेमाल किया जाए।

हदीस: Roza Rakhne Ki Dua
“रसूल अल्लाह (स.अ.व) ताज़ा खजूरों से रोज़ा खोलते थे। अगर ताज़ा खजूर न होती, तो सूखी खजूर का इस्तेमाल करते। और अगर वह भी न होती, तो पानी पी लेते।” (अबू दाऊद)


2. इफ्तार के वक्त जल्दबाजी ना करें

  • सूरज के पूरी तरह डूब जाने के बाद ही रोज़ा खोलें।
  • समय से पहले रोज़ा खोलने से परहेज करें।
  • लेकिन, इफ्तार में बेवजह देरी भी न करें, क्योंकि इफ्तार में जल्दी करना भी सुन्नत है।

3. इफ्तार से पहले अल्लाह से दुआ मांगें

  • इफ्तार का वक्त दुआ कबूल होने का खास समय होता है। इस समय अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को सुनते हैं।
  • इफ्तार से ठीक पहले अपनी ज़िंदगी, परिवार, और उम्मत-ए-मुस्लिमा के लिए दुआ करें।
  • अपनी दुआ में शुक्राना पेश करें और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगें।

4. इफ्तार में हलकी और सादा चीज़ें खाएं

  • इफ्तार को सादा और हल्का रखें ताकि ज्यादा खाने से इबादत में सुस्ती न आए।
  • खजूर, पानी, और हल्के स्नैक्स के बाद मगरीब की नमाज़ अदा करें, फिर खाना खाएं।

5. दूसरों के लिए इफ्तार का इंतज़ाम करें

  • अगर मुमकिन हो, तो गरीबों और ज़रूरतमंदों के लिए इफ्तार का इंतज़ाम करें।
  • इफ्तार कराना एक बड़ी नेकी और सवाब का काम है।

हदीस:
“जो किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराएगा, उसे भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना रोज़ा रखने वाले को मिलेगा, बगैर उसके सवाब में कोई कमी किए।” (तिर्मिज़ी)


6. बिस्मिल्लाह कहकर और दुआ के साथ इफ्तार करें

  • इफ्तार से पहले बिस्मिल्लाह कहें और रोज़ा खोलने की दुआ पढ़ें।
  • यह न केवल इफ्तार को मुकम्मल करता है, बल्कि अल्लाह की नेमतों के लिए शुक्राना भी अदा करता है।

4. इन दुआओं को पढ़ने के फायदे

  • रूहानी क़रीबी: इन दुआओं से अल्लाह के साथ एक गहरा रिश्ता कायम होता है।
  • सब्र और शुकर: रोज़ा रखने और खोलने की दुआएं इंसान को सब्र सिखाती हैं और अल्लाह की नेमतों का एहसास कराती हैं।
  • नियत में खालिसियत: दुआ पढ़ने से इबादत में खालिसियत आती है, जो कि इबादत का सबसे अहम पहलू है।
  • बरकत और रहमत: यह दुआएं अल्लाह की रहमतों और बरकतों को हासिल करने का ज़रिया हैं।

5. नतीजा (निष्कर्ष)

रोज़ा रखने और खोलने की दुआएं रमज़ान की इबादत को मुकम्मल बनाती हैं। यह दुआएं न केवल हमारी नियत को अल्लाह के सामने पेश करती हैं, बल्कि हमें रूहानी तौर पर मजबूत भी बनाती हैं। रमज़ान के दौरान इन दुआओं को याद करना और उन्हें पूरे एहसास के साथ पढ़ना, अल्लाह की रज़ा हासिल करने का बेहतरीन तरीका है।


अगर यह जानकारी आपको फायदेमंद लगी हो, तो इसे दूसरों के साथ शेयर करें और उन्हें भी रमज़ान के इस पाक महीने में दुआओं की अहमियत बताएं। और ज़्यादा इस्लामी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर विज़िट करें।

बरकतों भरे रमज़ान के लिए अल्लाह से दुआ है कि वह हम सबकी इबादत को कबूल फरमाए। आमीन।

Author

  • Islamichindi.com के मुसन्निफ़ इस्लामी मालूमात, क़ुरआन-ओ-हदीस और तारीख़ के माहिर हैं। बरसों से इस्लामी तालीमात को सहीह और मुसद्दक़ तरीके़ से अवाम तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। इनका मक़सद है के आम ज़बान में लोगों तक दीन-ए-इस्लाम की हक़ीक़ी तालीमात पहुँचाई जाएँ।

    View all posts

Sher Mohammad Shamsi

Islamichindi.com के मुसन्निफ़ इस्लामी मालूमात, क़ुरआन-ओ-हदीस और तारीख़ के माहिर हैं। बरसों से इस्लामी तालीमात को सहीह और मुसद्दक़ तरीके़ से अवाम तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। इनका मक़सद है के आम ज़बान में लोगों तक दीन-ए-इस्लाम की हक़ीक़ी तालीमात पहुँचाई जाएँ।

0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights