फतवा किसे कहते हैं ?
इस्लामी समाज में “फतवा” एक बेहद अहम और गूढ़ शब्द है, जो इस्लामिक शरीअत के अनुसार किसी मसले पर धार्मिक फैसला या राय देने के लिए इस्तिमाल किया जाता है। इसका महत्व सिर्फ इस्लामिक स्कॉलर्स और मुफ्तियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आम लोगों के जीवन में भी एक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है।
इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि फतवा क्या है, फतवा किसे कहते हैं, इसका धार्मिक और ऐतिहासिक हवाला क्या है, और यह कैसे जारी किया जाता है। साथ ही, मोहम्मद साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दौर में फतवे की किरदार पर भी चर्चा करेंगे।
फतवा शब्द का अर्थ
फतवा शब्द अरबी भाषा से निकला है और उर्दू तथा हिंदी में भी इसी रूप में इस्तिमाल होता है। इसका असल अरबी शब्द है “फतवा” (فتوى), जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘राय‘, ‘फैसला‘, या ‘उत्तर‘। जब भी कोई धार्मिक मसला (मुद्दा) या प्रश्न सामने आता है, जिसके बारे में व्यक्ति को इस्लामिक शरीअत के अनुसार जानकारी चाहिए, तो मुफ्ती द्वारा जारी किया गया धार्मिक फैसला फतवा कहलाता है। फतवा क्या है हिंदी
- मसला (مسئلہ): यह शब्द ‘मुद्दा’ या ‘प्रश्न’ के अर्थ में इस्तेमाल होता है। किसी खास धार्मिक या सामाजिक सवाल का समाधान ढूंढने के लिए मुफ़्ती से सवाल किया जाता है। जब मुफ़्ती इस सवाल पर शरीअत के मुताबिक़ फैसला देते हैं, तो यह फतवे की शक्ल में आता है।
- मसवादा (مسودہ): इसका अर्थ है ‘लिखित मसौदा’। फतवा आमतौर पर लिखित रूप में जारी किया जाता है, जिससे यह एक स्थायी और प्रमाणिक दस्तावेज़ बन जाता है।
फतवे की प्रक्रिया में मुफ़्ती किसी धार्मिक मुद्दे या प्रश्न का समाधान कुरआन, हदीस और इस्लामिक फ़िक़्ह (शरीअत का विधिक अध्ययन) के आधार पर करते हैं। इस प्रक्रिया में मुफ्ती को मसले की गंभीरता, समाजिक संदर्भ और शरीअत की शिक्षा को ध्यान में रखना पड़ता है। फतवा क्या है समझें
फतवा क्या है?
फतवा एक धार्मिक और कानूनी राय है, जो इस्लामी शरीअत के मुताबिक़ दी जाती है। इसे आमतौर पर इस्लामी स्कॉलर या मुफ़्ती द्वारा जारी किया जाता है। फतवा क्या है और आसान से समझें यह किसी खास मसले पर शरई (इस्लामी कानून) के आधार पर दी जाने वाली राय होती है। फतवे का उद्देश्य इस्लामी कानून के मुताबिक किसी मुद्दे का सही और सटीक हल प्रस्तुत करना होता है।
फतवा अक्सर उन मामलों में जारी किया जाता है जहाँ व्यक्ति या समुदाय को किसी विशेष समस्या या सवाल पर इस्लामी दृष्टिकोण जानने की जरूरत होती है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी व्यक्ति को यह पता करना है कि ब्याज पर कर्ज लेना इस्लाम में जायज़ है या नहीं, तो वह मुफ्ती से सवाल करेगा, और मुफ्ती इस मुद्दे पर फतवा जारी करेंगे।
फतवा की विशेषताएं:
- धार्मिक और कानूनी राय: फतवा केवल एक राय नहीं होती, बल्कि यह शरीअत के मुताबिक धार्मिक और कानूनी दिशा निर्देश होता है।
- मुफ़्ती द्वारा जारी: फतवा जारी करने का हक सिर्फ मुफ़्ती को होता है, जो इस्लामी शास्त्रों और शरीअत का गहन अध्ययन कर चुके होते हैं।
- अनिवार्य नहीं, लेकिन मार्गदर्शक: फतवा कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं होता, लेकिन यह इस्लामिक दृष्टिकोण से पालन करने योग्य होता है।
फतवे की ऐतिहास
फतवे की इजाद इस्लामी इतिहास के प्रारंभिक दिनों से होती है। जब इस्लामी समाज में नए सामाजिक और धार्मिक मसले सामने आते थे, तब मुफ़्ती से फतवे के ज़रिए इनका समाधान पूछा जाता था। इस्लाम की स्थापना के समय से ही फतवे का धार्मिक और सामाजिक मामलों में प्रमुख स्थान रहा है।
अरब में शुरुआती दौर में, इस्लामी राज्य के प्रमुख और इस्लामी न्यायिक प्रणाली का मुख्य स्तंभ फतवा था। जैसे-जैसे इस्लामी साम्राज्य फैलता गया, फतवा जारी करने की परंपरा भी अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचलित होती गई। इसका इस्तेमाल मुख्यतः धार्मिक, सामाजिक, कानूनी और व्यक्तिगत मामलों में होता था।
मोहम्मद साहब (सल्ल०) के दौर में फतवा
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय में फतवे की अहमियत बहुत ज्यादा थी। उस समय, फतवे का मतलब केवल एक धार्मिक राय नहीं होता था, बल्कि यह इस्लामिक कानून और शरीअत के नियमों को लागू करने का एक ज़रिया भी था। पैगंबर मोहम्मद (सल्ल०) ने स्वयं बहुत से मुद्दों पर फतवा जारी किया, जिससे इस्लामी कानून की नींव रखी गई।
मोहम्मद साहब (सल्ल०) के समय में फतवा आमतौर पर किसी विवादित या असमंजसपूर्ण स्थिति में जारी किया जाता था। उदाहरण के लिए, जब किसी मसले का हल कुरआन में स्पष्ट नहीं होता था, तो पैगंबर मोहम्मद (सल्ल०) हदीस (उनके कथन और कर्म) के आधार पर फैसला करते थे। यही फैसले बाद में फतवे के रूप में सामने आए और इस्लामी कानून का हिस्सा बने।
अहम बात
फतवा जारी करने वाले शख्स को मुफ़्ती कहा जाता है। मुफ़्ती को इस्लामी शरीअत, कुरआन, हदीस और फ़िक़्ह का गहरा ज्ञान होता है। मुफ़्ती का काम यह है कि वह किसी मसले या सवाल पर शरीअत के अनुसार सही और न्यायोचित राय दे।
मुफ़्ती का फैसला इस्लामी समाज में एक गाइडलाइन के रूप में देखा जाता है। हालाँकि फतवा अनिवार्य नहीं होता, लेकिन इसे धार्मिक जिम्मेदारी के तहत देखा जाता है, और बहुत से मुसलमान इसे अपने जीवन में अमल करते हैं। फतवा का मकसद यह होता है कि किसी व्यक्ति या समुदाय को इस्लामी कानून के मुताबिक सही दिशा दिखायी जाए, ताकि वह अल्लाह की मरज़ी के अनुसार अपने जीवन के फैसले कर सके।
5 FAQ’s
- फतवा क्यों जारी किया जाता है?
फतवा किसी खास धार्मिक, सामाजिक या कानूनी मसले पर शरीअत के अनुसार राय या फैसला देने के लिए जारी किया जाता है। यह उन सवालों के जवाब के रूप में आता है, जहाँ व्यक्ति को इस्लामी कानून का सही मार्गदर्शन चाहिए होता है। - क्या फतवा बाइंडिंग होता है?
फतवा कानूनी रूप से बाइंडिंग नहीं होता, लेकिन इसे धार्मिक दृष्टिकोण से मान्यता दी जाती है। इसका पालन करना धार्मिक जिम्मेदारी के तहत होता है। - कौन फतवा जारी कर सकता है?
फतवा केवल मुफ़्ती (धार्मिक विद्वान) द्वारा जारी किया जा सकता है। मुफ़्ती को इस्लामी कानून, शरीअत, कुरआन और हदीस का गहन अध्ययन होता है। - फतवा जारी करने के लिए क्या प्रक्रिया होती है?
फतवा जारी करने की प्रक्रिया में सबसे पहले सवाल किया जाता है, फिर मुफ़्ती कुरआन, हदीस और फ़िक़्ह के आधार पर उस सवाल का अध्ययन करते हैं और उसके बाद फतवे के रूप में अपनी राय या फैसला देते हैं। - क्या फतवा के विरुद्ध कोई अपील की जा सकती है?
फतवा एक धार्मिक राय है, इसलिए इसके विरुद्ध कानूनी अपील नहीं की जा सकती। हालांकि, व्यक्ति किसी और मुफ़्ती से राय ले सकता है या दूसरे मुफ्ती से मशविरा कर सकता है।
इस लेख में हमने विस्तार से चर्चा की कि फतवा क्या है, फतवा किसे कहते हैं, और इसका इस्लामिक कानून और शरीअत में क्या महत्व है। उम्मीद है कि इस जानकारीपूर्ण ब्लॉग से पाठक फतवे की प्रकृति और उसकी धार्मिक भूमिका को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे।
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