क़यामत की 10 बड़ी निशानियाँ: Qayamat kab aayegi-क्या हम आखिरी समय के करीब हैं?
क़यामत की 10 बड़ी निशानियाँ: Qayamat kab aayegi-क्या हम आखिरी समय के करीब हैं?

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क़यामत की 10 बड़ी निशानियाँ: Qayamat kab aayegi?

क्या आप जानते हैं कि क़यामत की कुछ ख़ास निशानियाँ हमें चेतावनी देती हैं “Qayamat kab aayegi” कि हम एक बड़े बदलाव के करीब हैं? इस ब्लॉग में हम चर्चा करेंगे उन 10 प्रमुख निशानियों की, जो न सिर्फ़ धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा हैं, बल्कि समाज में हो रहे परिवर्तनों का भी संकेत देती हैं। qayamat kab aayegi date

क्या यह सच है कि मुसलमानों और यहूदियों के बीच एक अंतिम संघर्ष होने वाला है? क्या हम खुशबू वाली बारिशों के इंतज़ार में हैं, जो ज़मीन को पवित्र करेंगी? आइए, हम इन सवालों का जवाब ढूंढें और जानें कि कैसे ये निशानियाँ हमें अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाने का एक मौका देती हैं। इस लेख में, हम न केवल इन निशानियों का विश्लेषण करेंगे, बल्कि यह भी समझेंगे कि हम कैसे एक बेहतर समाज की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। Qayamat kab aayegi

इस सफर में हमारे साथ रहें और जानें कि क्या क़यामत का समय वाकई करीब है! Qayamat kab aayegi?

  1. Qayamat kab aayegi निशानी?

Dajjal ka zahoor: Ek maseeha (Antichrist) jo fitna aur bhram failayega.

Dajjal ka Zahoor Qayamat ki sabse badi aur khatarnak nishaniyon mein se ek hai. Islam mein Dajjal ko ek aise fitna aur fasaad ka sabab mana gaya hai, jo insaniyat ke liye sabse bada imtihaan hoga. Dajjal ka zahoor Islam ke mutabiq duniya ke aakhri waqt mein hoga, jab log deen se door hote jaayenge aur duniya ke dhoke mein ulajh jaayenge.

कब और कैसे दज्जाल का ज़हूर होगा?

हदीस के मुताबिक़, दज्जाल का ज़हूर उस वक़्त होगा जब दुनिया फिटना, ज़ुल्म और गुमराही से भर चुकी होगी। लोग अल्लाह की इबादत छोड़कर दुनिया के लालच में खो जाएंगे। यह वक़्त ऐसा होगा जब लोग सही और ग़लत के बीच फर्क़ नहीं कर पाएंगे। उसी दौर में दज्जाल निकलेगा ताकि लोगों को और भी गुमराह कर सके।

कहां से निकलेगा?

हदीसों में बताया गया है कि दज्जाल पूर्व की ओर से निकलेगा, कुछ रिवायात में उसका खासतौर पर खुरासान (जो आज के ईरान और अफगानिस्तान के आस-पास का इलाका है) से आना बताया गया है। उसके साथ बहुत से लोग होंगे, खासकर वो लोग जो कमजोर ईमान वाले होंगे। वह पूरी दुनिया में घूमेगा और अपने झूठे दावों के साथ लोगों को बहकाएगा।

दज्जाल का क्या मकसद होगा?: Qayamat kab aayegi

दज्जाल का मकसद होगा लोगों को गुमराह करना। वह अपने आप को मसीहा (उद्धारकर्ता) के तौर पर पेश करेगा और दावे करेगा कि वो ईश्वर है। वो झूठे चमत्कार दिखाएगा, जैसे मरे हुए लोगों को जिंदा करना, बारिश बरसाना, और खेतों को उपजाऊ करना। उसकी ये ताक़तें अल्लाह की तरफ से उसे दी जाएंगी ताकि लोगों की परख हो सके कि कौन उसके झूठे दावों पर यकीन करता है और कौन अपने ईमान पर क़ायम रहता है।

दज्जाल की शख्सियत

दज्जाल की पहचान की कई निशानियां हदीसों में दी गई हैं: Qayamat kab aayegi?

  1. उसकी एक आंख खराब होगी, यानी वह एक आंख से अंधा होगा।
  2. उसके माथे पर “काफ़िर” लिखा होगा, जिसे सिर्फ़ सच्चे मोमिन ही पढ़ सकेंगे।
  3. वो बहुत ज़्यादा चालाक और बोलने में माहिर होगा, और लोगों को अपने झूठे चमत्कारों से धोखा देगा।

दज्जाल से कैसे बचें?

हदीस में बताया गया है कि दज्जाल के फितने से बचने के लिए सबसे अहम चीज़ है मज़बूत ईमान। जो लोग सच्चे मोमिन होंगे, वो दज्जाल के झूठ और उसके फरेब से महफूज रहेंगे। इसके अलावा, हदीस में सूरह अल-कहफ़ की कुछ आयतें पढ़ने की ताकीद की गई है, जो दज्जाल के फितने से हिफ़ाज़त का ज़रिया हैं।

“हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का प्रकट होना दज्जाल के फितने के अंत की सबसे बड़ी निशानी मानी जाती है। वह आसमान से उतरेंगे, और अपने हाथों से दज्जाल को खत्म करके उसकी तबाही और गुमराही का हमेशा के लिए खात्मा कर देंगे।”

दज्जाल का फितना इंसानियत के लिए एक बड़ा इम्तिहान होगा। इसका मकसद लोगों को उनके ईमान की परख में डालना है। वो अपने झूठे दावों से दुनिया में फरेब फैलाएगा, लेकिन मज़बूत ईमान रखने वाले उसकी हकीकत को पहचान लेंगे और उससे महफूज रहेंगे।

Yajooj aur Majooj ke nikalna: Gog aur Magog ke log, jo fitna aur tabahi machayenge.

2. Qayamat kab aayegi – दूसरी निशानी?

याजूज और माजूज (Gog aur Magog) की कहानी इस्लामिक इतिहास में एक बहुत महत्वपूर्ण और रहस्यमयी हिस्सा है। ये दो कौमें क़ुरआन और हदीस में ज़िक्र की गई हैं, जो क़यामत के करीब बड़ी तबाही और फितना फैलाने वाली होंगी। आइए पहले इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नज़र डालते हैं।

इतिहास में याजूज और माजूज

याजूज और माजूज का ज़िक्र सबसे पहले हज़रत ज़ुल-करनैन की कहानी में आता है, जो क़ुरआन की सूरह अल-कहफ (18:83-98) में बयान की गई है। हज़रत ज़ुल-करनैन एक नेक बादशाह थे, जिनका सफर तीन दिशाओं में हुआ। जब वह अपने सफर के दौरान एक ऐसी जगह पहुंचे जहां एक क़ौम थी, तो उन्होंने देखा कि वहां के लोग याजूज और माजूज से परेशान हैं, जो तबाही और ज़ुल्म मचाते थे। इन लोगों ने ज़ुल-करनैन से मदद मांगी। ज़ुल-करनैन ने अल्लाह के हुक्म से एक मजबूत दीवार बनाई ताकि याजूज और माजूज को रोका जा सके।

दीवार का जिक्र क़ुरआन में इस तरह है:
फिर जब वह दोनों पहाड़ों के दरमियान पहुंचा, तो उसने वहां एक ऐसी क़ौम को पाया, जो मुश्किल से कोई बात समझ पाती थी। उन्होंने ज़ुल-करनैन से अर्ज़ किया, ‘ऐ ज़ुल-करनैन!’याजूज और माजूज इस धरती पर फ़साद कर रहे हैं, तो क्या हम आपको कुछ माल देकर आपके लिए एक दीवार बना दें?’ Qayamat kab aayegi? in Quran (सूरह अल-कहफ 18:93-94)

याजूज और माजूज का निकला कब और कैसे होगा?

हदीस और इस्लामिक तालीमात के मुताबिक, याजूज और माजूज का निकलना क़यामत के क़रीब होगा। फिलहाल, वो दीवार के पीछे बंद हैं, लेकिन एक समय ऐसा आएगा जब अल्लाह के हुक्म से यह दीवार टूट जाएगी और याजूज और माजूज दुनिया में निकल आएंगे।

हदीस में बताया गया है कि रोज़ाना याजूज और माजूज उस दीवार को खोदने की कोशिश करते हैं, लेकिन अल्लाह की मरज़ी से हर रात उनकी मेहनत बेकार हो जाती है। एक दिन वो दीवार तोड़ने में कामयाब हो जाएंगे और बाहर आकर दुनिया में तबाही फैलाएंगे।

याजूज और माजूज कौन हैं?

याजूज और माजूज इंसानों की ही दो बहुत बड़ी क़ौमें हैं, जो संख्या में बहुत ज़्यादा होंगी। हदीस में ज़िक्र है कि हर एक इंसान के मुक़ाबले में याजूज और माजूज के 999 लोग होंगे। इसका मतलब है कि जब वो बाहर निकलेंगे, तो वो इंसानों पर हावी हो जाएंगे और हर तरफ तबाही मचा देंगे।

कहां से निकलेंगे?

हदीसों के मुताबिक, याजूज और माजूज उत्तर की तरफ एक पहाड़ी इलाके के पीछे बंद हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि ये इलाका वर्तमान के कॉकसस पहाड़ों (Caucasus Mountains) या साइबेरिया में हो सकता है, लेकिन इसकी सही जगह का पता नहीं है। ये दीवार एक ऐसी जगह है, जो अभी तक इंसानी पहुंच से दूर है।

याजूज और माजूज का फितना

याजूज और माजूज का फितना सबसे बड़ा होगा। जब वो बाहर आएंगे, तो वो दुनिया में हर जगह फितना और फसाद मचाएंगे। वो इंसानों की फसलें और ज़मीनों को तबाह कर देंगे। वो हर जगह तबाही फैलाएंगे और लोग उनसे डरकर पहाड़ों और ऊंची जगहों पर भागेंगे। हदीस में आता है कि जब वो तबरिया झील (Sea of Galilee) से गुजरेंगे, तो उसका सारा पानी पी जाएंगे।

कैसे खत्म होगा याजूज और माजूज का फितना?

जब याजूज और माजूज का फितना बहुत बढ़ जाएगा, तब हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) और उनके साथी अल्लाह से मदद की दुआ करेंगे। अल्लाह उनकी दुआ क़ुबूल करेगा और एक खास बीमारी या कीड़े भेजेगा, जो याजूज और माजूज की गर्दनों में लग जाएंगे और वो सब के सब मर जाएंगे। इसके बाद दुनिया में अमन और चैन वापस आएगा।

याजूज और माजूज का फितना क़यामत के क़रीब का सबसे बड़ा इम्तिहान होगा। ये दो बड़ी क़ौमें, जो फिलहाल दीवार के पीछे बंद हैं, अल्लाह के हुक्म से निकाली जाएंगी और पूरी दुनिया में तबाही फैलाएंगी। इस्लामिक तालीमात में हमें इस बात की सीख दी गई है कि इस फितने से बचने का सबसे अच्छा तरीका मज़बूत ईमान और अल्लाह पर पूरा भरोसा है।

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3. Qayamat kab aayegi – तीसरी निशानी?

सूरज का मग़रिब से निकलना क़यामत की एक बहुत ही अहम और अजीब निशानी है, जो इंसानी समझ से परे है। यह वो पल होगा जब इंसानी सोच और साइंस के सारे क़ायदे उलट जाएंगे। आमतौर पर सूरज हमेशा मशरिक (पूर्व) से निकलता है और मग़रिब (पश्चिम) में डूबता है। लेकिन क़यामत के करीब, सूरज उल्टी दिशा से, यानी मग़रिब से निकलेगा, जो एक बहुत बड़ा और असाधारण वाकया होगा।

कब और कैसे होगा ये वाकया?

हदीसों के मुताबिक, यह वाकया उस वक्त होगा जब दुनिया बुरी तरह से गुमराही और फ़साद में डूब चुकी होगी। जब लोग अपनी गलतियों से तौबा का मौका गंवा देंगे, तब अल्लाह के हुक्म से सूरज मग़रिब से निकलेगा। ये क़ुदरत का वो इशारा होगा कि अब तौबा का दरवाजा बंद हो चुका है। हदीस में आता है कि जब सूरज पश्चिम से निकलेगा, तब कोई भी इंसान चाहे कितना ही रोए या गिड़गिड़ाए, उसकी तौबा कुबूल नहीं की जाएगी।

इस वाकये का मतलब क्या है?

सूरज का मग़रिब से निकलना सिर्फ एक कुदरती घटना नहीं होगी, बल्कि यह इंसानों के लिए एक बड़ा इशारा होगा कि अब उनके पास सुधारने का वक्त खत्म हो चुका है। यह घटना इस बात की तस्दीक करेगी कि क़यामत का वक्त अब बहुत करीब आ चुका है। इस दिन, लोग बड़े हैरत और खौफ में पड़ जाएंगे, क्योंकि यह कुदरत का एक अजीब और अनहोनी वाकया होगा जिसे पहले कभी नहीं देखा गया।

इसका इंसानी दिलों पर असर

यह वाकया इंसानों के दिलों में खौफ और घबराहट पैदा कर देगा। हदीस के मुताबिक, लोग अपनी जिंदगी के गुनाहों और गलतियों पर पछताएंगे, लेकिन उस वक्त तौबा के दरवाजे बंद हो चुके होंगे। अल्लाह ने यह निशानी इसलिए रखी है ताकि इंसान अपनी गुमराही को वक्त रहते पहचान लें और अपनी जिंदगी को सुधार लें, क्योंकि सूरज के पश्चिम से निकलने के बाद कोई भी पछतावा काम नहीं आएगा। दुनिया के 5 मशहूर मुस्लिम लीडर, जिन्हें साज़िश के तहत मिली सज़ा-ए-मौत | जानें उनकी पूरी कहानी

इंसानियत के लिए सीख

इस वाकये से हमें यह सबक मिलता है कि जिंदगी में तौबा और सुधार का वक्त हमेशा रहता है, लेकिन यह मौका हमेशा के लिए नहीं होता। हमें वक्त रहते अपने गुनाहों से तौबा करनी चाहिए और अल्लाह की तरफ रुख करना चाहिए, क्योंकि जब यह निशानी पूरी हो जाएगी, तब लौटने का कोई रास्ता नहीं बचेगा।

सूरज का मग़रिब से निकलना एक बहुत बड़ी और अनोखी निशानी होगी, जो इंसानियत को यह दिखाएगी कि क़यामत का वक्त अब बेहद करीब है। यह कुदरती घटना इंसानों के दिलों में खौफ और इबरत का सबब बनेगी, लेकिन उस वक्त तौबा की कोई गुंजाइश नहीं होगी।

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4. Qayamat kab aayegi – चौथी निशानी?

दाब्बत अल-अर्द क़यामत की उन बड़ी निशानियों में से एक है, जिसे देखकर इंसान की आंखें खुली की खुली रह जाएंगी। यह एक खास मख़लूक (जीव) होगी, जो ज़मीन से निकलेगी और इंसानों के बीच आकर एक अनोखी पहचान छोड़ेगी। इस अजीबो-गरीब वाकये का जिक्र क़ुरआन और हदीस में हुआ है, जो क़यामत के करीब इंसानियत को चौंका देगा।

कहां से निकलेगी दाब्बत अल-अर्द?

qayamat kab aayegi in islam: हदीसों के मुताबिक, यह अजीब मख़लूक धरती के किसी खास हिस्से से निकलेगी। कुछ रिवायतों में बताया गया है कि यह मक्का या सफा और मरवा के बीच से निकल सकती है। जब यह ज़मीन से बाहर आएगी, तो यह एक आम जानवर नहीं होगा, बल्कि इसका अंदाज़, कद-काठी और काम इंसानों के लिए अजीब और खौफनाक होंगे।

दाब्बत अल-अर्द का मकसद क्या होगा?

इस मख़लूक का काम लोगों के ईमान की पहचान करना होगा। यह उन लोगों को निशाना बनाएगी जो गुमराही और कुफ्र में डूब चुके होंगे। दाब्बत अल-अर्द लोगों पर निशान लगाएगी—कुछ रिवायतों के मुताबिक, वो मोमिन और काफ़िर के चेहरों पर अलग-अलग निशान छोड़ेगी ताकि साफ तौर पर मालूम हो सके कि कौन सच्चा ईमान वाला है और कौन नहीं।

क़ुरआन में इसका जिक्र इस तरह आता है:
“और जब क़यामत की घड़ी का हुक्म पूरा हो जाएगा, तो हम उनके लिए ज़मीन से एक जानवर निकालेंगे, जो उनसे बात करेगा कि लोग हमारी आयतों पर ईमान नहीं लाते थे। Quran mein Qayamat kab aayegi?” (सूरह अन-नमल, 27:82)

इस वाकये का असर

दाब्बत अल-अर्द का निकलना एक ऐसा वाकया होगा जिसे देखकर इंसान अपने ईमान के बारे में सोचेगा, लेकिन उस वक्त भी बहुत से लोग इतने गुमराह हो चुके होंगे कि वो इसे मज़ाक या कोई अजीब घटना समझकर नज़रअंदाज कर देंगे। इसका निकलना इस बात का पक्का इशारा होगा कि अब दुनिया अपने आखिरी वक्त में पहुंच चुकी है और तौबा के दरवाजे धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं।

दाब्बत अल-अर्द से सीख

इस वाकये से हमें ये सीख मिलती है कि दुनिया में ईमान की रोशनी बुझने से पहले हमें अपनी जिंदगी को सही रास्ते पर लाना चाहिए। यह मख़लूक सिर्फ़ एक निशानी है जो इंसानों के लिए आखिरी चेतावनी होगी।

दाब्बत अल-अर्द का निकला क़यामत के करीब होने का एक बड़ा संकेत होगा, जो लोगों के ईमान और गुमराही की पहचान करेगा। ये अजीब मख़लूक एक ऐसी घटना का हिस्सा बनेगी, जिससे दुनिया भर के लोग हैरान और परेशान हो जाएंगे, मगर तब तक सुधार का वक्त खत्म हो चुका होगा।

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5. Qayamat kab aayegi – पांचवीं निशानी?

नुज़ूल-ए-ईसा (अलैहिस्सलाम) क़यामत की निशानियों में से एक सबसे अहम और रहस्यमयी घटना होगी, जब हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) दोबारा इस दुनिया में तशरीफ लाएंगे। ये वाकया सिर्फ़ एक धार्मिक घटना नहीं होगी, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए एक नई शुरुआत का पैग़ाम होगा।

हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का मकसद क्या होगा?

हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का दोबारा आना एक बहुत ही खास मकसद के तहत होगा। वो क़यामत के करीब तब आएंगे, जब दुनिया दज्जाल के फितने में फंसी होगी और गुमराही अपने चरम पर होगी। ईसा (अलैहिस्सलाम) अल्लाह के हुक्म से दज्जाल को मारेंगे और इंसानियत को उस फितने से निजात दिलाएंगे। उनका मकसद दीन-ए-इस्लाम को एक बार फिर से कायम करना और इंसानियत को सही रास्ते पर लाना होगा।

कहां और कैसे होंगे नुज़ूल-ए-ईसा (अलैहिस्सलाम)?

हदीसों के मुताबिक, हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) दमिश्क के पूर्वी हिस्से में, एक सफेद मीनार पर उतरेंगे। उस वक्त फज्र की नमाज़ का समय होगा और वो सफेद कपड़ों में लिपटे होंगे। उनका चेहरा चमकदार होगा और उनके सिर से पानी की बूंदें टपक रही होंगी, जैसे अभी अभी ग़ुस्ल किया हो।

जब वो धरती पर उतरेंगे, तो मुसलमानों का लश्कर दज्जाल से मुकाबले की तैयारी कर रहा होगा। इमाम महदी उस समय नमाज़ की इमामत कर रहे होंगे, लेकिन हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) को देखकर वो पीछे हट जाएंगे और उन्हें नमाज़ पढ़ाने की गुजारिश करेंगे। लेकिन हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) उन्हें आगे बढ़ाएंगे और इमाम महदी ही नमाज़ की इमामत करेंगे। इस वाकये से यह साफ हो जाता है कि हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) इस्लाम के पैरोकार होंगे और उसी की तालीमात को फैलाएंगे।

दज्जाल का खात्मा

हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का सबसे बड़ा मकसद दज्जाल का खात्मा होगा। वो दज्जाल का पीछा करेंगे और उसे लुद के दरवाजे पर पकड़कर मार देंगे। दज्जाल का खात्मा होते ही दुनिया में अमन और चैन का दौर शुरू होगा, जो क़यामत तक जारी रहेगा।

दुनिया में अमन का दौर

हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के आने के बाद, दुनिया से हर तरह की नाइंसाफी, ज़ुल्म और फसाद खत्म हो जाएगा। उनका शासन अमन और इंसाफ पर आधारित होगा, और हर तरफ भाईचारा और इंसानियत का बोलबाला होगा। यहां तक कि जानवर भी एक दूसरे के साथ अमन से रहेंगे।

हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का दुनिया में रहना

हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) इस धरती पर लगभग 40 साल तक रहेंगे। वो शादी करेंगे और एक आम इंसान की तरह जिंदगी बिताएंगे। उनके आने का वक्त दुनिया के लिए एक नई शुरुआत का संकेत होगा, लेकिन वो फिर से इंसानियत को अल्लाह की तरफ बुलाने के मिशन पर रहेंगे।

नुज़ूल-ए-ईसा (अलैहिस्सलाम) इस बात का इशारा होगा कि क़यामत का वक्त बहुत नज़दीक है। उनका आना इंसानियत के लिए अमन और इंसाफ की वापसी का पैग़ाम होगा, लेकिन उसके बाद दुनिया अपनी आखिरी मंज़िल की तरफ बढ़ेगी।

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6. Qayamat kab aayegi – छट्ठी निशानी?

या’जूज माजूज का ज़हूर क़यामत की बड़ी निशानियों में से एक बहुत ही खतरनाक और दिल दहला देने वाली घटना होगी। यह इंसानियत के लिए एक ऐसा वक्त होगा जब या’जूज और माजूज (Gog और Magog) जैसे ख़तरनाक और फितनापरस्त क़ौम का ज़हूर होगा, जो पूरी दुनिया में तबाही मचाएंगे।

या’जूज और माजूज कौन थे?

या’जूज और माजूज दो कबीले हैं जिनका जिक्र क़ुरआन और हदीस में मिलता है। ये क़ौमें अपनी ताकत और बर्बरता के लिए जानी जाती हैं। हज़रत ज़ुलक़रनैन के दौर में, ये लोग इतनी ज़्यादा तवानाई और बर्बरता से दुनिया में फसाद मचा रहे थे कि एक मजबूत दीवार के पीछे कैद कर दिए गए। अल्लाह के हुक्म से ज़ुलक़रनैन ने एक लोहे और तांबे की मजबूत दीवार बनाई थी, जो या’जूज माजूज को बाकी इंसानों से अलग करती थी। लेकिन क़यामत के करीब ये दीवार टूट जाएगी और वो लोग दोबारा बाहर निकल आएंगे।

या’जूज माजूज का ज़हूर कैसे और कब होगा?

हदीस के मुताबिक, जब क़यामत का वक्त करीब होगा और दुनिया गुमराही और फसाद से भर चुकी होगी, तब या’जूज और माजूज की दीवार को तोड़ने की इजाज़त अल्लाह की तरफ से दी जाएगी। हर रोज़ ये लोग इस दीवार को तोड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन एक खास दिन उनके कामयाब होने का वक्त आ जाएगा, और वो दीवार तोड़कर निकल आएंगे।

जब वो बाहर आएंगे, तो इतनी बड़ी तादाद में होंगे कि दुनिया के हर कोने को तबाह कर देंगे। क़ुरआन में इस वाकये का जिक्र इस तरह आता है:
यहां तक कि जब या’जूज और माजूज की बाधा तोड़ी जाएगी और वे हर ऊंचाई से तेजी से निकलते हुए फैलने लगेंगे।Qayamat kab aayegi ” (सूरह अल-अंबिया, 21:96)

उनकी ताबाही का असर

या’जूज माजूज पूरी धरती पर अपनी ताकत और बर्बरता से कहर बरपाएंगे। ये लोग इतने तादाद में होंगे कि हर जगह फसाद और तबाही मचाएंगे, हर नदी का पानी पी जाएंगे और कोई भी ताकत उन्हें रोक नहीं पाएगी। उनकी तवानाई और फसाद इतना जबरदस्त होगा कि इंसान उनके सामने बेबस हो जाएंगे।

हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का किरदार

या’जूज माजूज के ज़हूर के वक्त हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) और उनके मानने वाले एक खास पहाड़ी पर पनाह लेंगे, क्योंकि उनसे लड़ना मुमकिन नहीं होगा। वो अल्लाह से दुआ करेंगे, और अल्लाह अपनी कुदरत से या’जूज माजूज का खात्मा करेगा। एक हदीस में आता है कि अल्लाह उनके नाकों पर एक खास बीमारी भेजेगा, जिससे वो सबके सब मारे जाएंगे। इसके बाद, उनकी लाशों से धरती इतनी भर जाएगी कि पूरी दुनिया में सड़ांध फैल जाएगी, और फिर अल्लाह की रहमत से बारिश होगी जो धरती को साफ करेगी।

या’जूज माजूज से सीख

या’जूज माजूज का ज़हूर हमें इस बात का एहसास कराता है कि इंसानी ताकत और इल्म के बावजूद, अल्लाह की कुदरत से कोई भी नहीं बच सकता। यह वाकया हमें तौबा और अल्लाह की तरफ रुख करने का सबक देता है, ताकि हम उस वक्त से पहले अपनी जिंदगी को सुधार सकें।

निष्कर्ष

या’जूज माजूज का ज़हूर एक ऐसी कयामती निशानी होगी जो दुनिया में बेहिसाब फसाद और खौफनाक तबाही लाएगी। यह इंसानियत के लिए एक बड़ा इम्तिहान होगा, लेकिन फिर भी, अल्लाह की कुदरत ही इस फसाद से निजात दिलाएगी।

Dhul-Qarnayn ka zahoor: Ek insaan jo fitna aur fasaad se bachayega.

7. Qayamat kab aayegi – सातवीं निशानी?

ज़ुलक़रनैन (Dhul-Qarnayn) का ज़िक्र क़ुरआन में एक बहुत ही खास किरदार के रूप में आता है, जो न सिर्फ़ इंसाफ़ और हिकमत से भरा हुआ था, बल्कि अल्लाह के हुक्म से उसने दुनिया में शांति और अमन का भी परचम बुलंद किया। हालांकि उनकी असली पहचान पर उलमा के दरमियान मतभेद है, लेकिन ज्यादातर इस बात पर सहमति है कि ज़ुलक़रनैन एक बेहद ताकतवर और निडर हाकिम था, जिसने अल्लाह के हुक्म से कई अहम काम किए।

ज़ुलक़रनैन का इतिहास

क़ुरआन में सूरह अल-कहफ़ के अंदर ज़ुलक़रनैन का ज़िक्र मिलता है। वो एक ऐसा इंसान था जिसे अल्लाह ने बहुत ताकत और इल्म अता किया था। उसे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में यात्रा करने का हुक्म मिला और वो जहां भी गया, वहां उसने इंसाफ और अमन का पैग़ाम पहुंचाया।

हदीस और तफसीर के मुताबिक, ज़ुलक़रनैन ने तीन अहम यात्राएं कीं: Qayamat kab aayegi?

  1. पश्चिम की तरफ़: जहां उसने सूरज को एक काले पानी में डूबते हुए पाया। यहां के लोगों पर ज़ुलक़रनैन ने इंसाफ के साथ हुकूमत की। Qayamat kab aayegi?
  2. पूर्व की तरफ़: यहां वो ऐसी कौम के पास पहुंचा जो सूरज की किरणों से बिना किसी शरण के रहती थी। उन्होंने अपने हालात के मुताबिक़ ज़िंदगी जी रही थी और ज़ुलक़रनैन ने उनके साथ कोई फसाद नहीं किया।
  3. उत्तर की तरफ़: उसकी सबसे मशहूर यात्रा थी उत्तर की तरफ़, जहां वो उन लोगों के पास पहुंचा जो या’जूज माजूज के फसाद से परेशान थे। ये लोग ज़ुलक़रनैन के पास आए और उससे मदद मांगी ताकि वो या’जूज माजूज की तबाही से बच सकें।

या’जूज माजूज और दीवार का निर्माण

ज़ुलक़रनैन ने इन लोगों की मदद करने का फैसला किया। उन्होंने इनकी सलाह से एक मज़बूत दीवार बनाई, जो लोहे और तांबे से बनी थी। इस दीवार का मकसद या’जूज और माजूज को दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग करना था, ताकि वो अपना फसाद फैलाने से रोके जा सकें।

क़ुरआन में इस दीवार के बारे में कहा गया है:
“फिर उन्होंने कहा, ‘ऐ ज़ुलक़रनैन! या’जूज और माजूज इस सरज़मीन में बहुत ज़्यादा फसाद फैलाते हैं, क्या हम आपको कुछ माल दें, ताकि आप हमारे और उनके बीच एक दीवार बना दें?’ उन्होंने जवाब दिया, ‘जो ताकत मेरे रब ने मुझे दी है, वो बेहतर है, तुम बस अपने बल से मेरी मदद करो, और मैं तुम्हारे और उनके बीच एक मज़बूत दीवार बनाऊंगा।'” Qayamat kab aayegi reference in quran (सूरह अल-कहफ़, 18:94-95)

ज़ुलक़रनैन ने इस दीवार को इतनी मज़बूती से बनाया कि या’जूज माजूज उसे तोड़ने में नाकाम रहे। लेकिन क़यामत के करीब, अल्लाह के हुक्म से यह दीवार टूट जाएगी और या’जूज माजूज फिर से निकलकर फसाद फैलाएंगे।

ज़ुलक़रनैन का मकसद और उनकी इंसानियत के लिए सीख

ज़ुलक़रनैन का मकसद साफ़ था—अमन और इंसाफ़ को कायम करना और फसाद को खत्म करना। उन्होंने जो कुछ भी किया, वो अल्लाह की रहनुमाई और हिकमत से किया। उन्होंने ताकत का इस्तेमाल सही मकसद के लिए किया और हमेशा उन लोगों की मदद की, जो ज़ुल्म और फसाद का शिकार थे।

उनकी जिंदगी हमें ये सिखाती है कि जब अल्लाह इंसान को ताकत और इल्म से नवाजता है, तो उसे उसका इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए करना चाहिए, न कि फसाद फैलाने के लिए। ज़ुलक़रनैन ने हमेशा अल्लाह पर भरोसा किया और उसकी रहनुमाई से इंसानियत की खिदमत की।

निष्कर्ष

ज़ुलक़रनैन की कहानी हमें बताती है कि ताकत और हुकूमत को सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो दुनिया में अमन और इंसाफ कायम हो सकता है। उन्होंने या’जूज माजूज के फसाद को रोकने के लिए एक मज़बूत दीवार बनाई, लेकिन उनका सबसे बड़ा काम इंसानियत के लिए सबक़ छोड़ना था कि अल्लाह की दी हुई ताकत और हिकमत का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए।

Nasle Zina ka izaafa: Zina se paida hone wale logon ka zyada ho jana.

8. Qayamat kab aayegi – आठवीं निशानी?

नस्ल-ए-ज़िना का इज़ाफा क़यामत की निशानियों में से एक अहम और फिकरअंगेज़ निशानी है। इसका मतलब है कि वो दौर आएगा जब ज़िना (व्यभिचार) समाज में इस कदर बढ़ जाएगा कि इससे पैदा होने वाली औलादें भी बड़ी तादाद में होंगी। यह निशानी इंसानियत के इखलाकी पतन और इस्लामी तालीमात से दूर हो जाने का इशारा करती है।

ज़िना का समाज में असर

ज़िना, यानी निकाह के बिना किसी हराम रिश्ते से ताल्लुकात बनाना, इस्लाम में एक बहुत बड़ा गुनाह माना गया है। ये गुनाह ना सिर्फ़ शख्स की रूहानी हालत पर असर डालता है, बल्कि समाज को भी बर्बाद करने का सबब बनता है। क़यामत से पहले का दौर ऐसा होगा जब ज़िना को न सिर्फ़ आम किया जाएगा, बल्कि इसे बुरा भी नहीं समझा जाएगा। निकाह की अहमियत कम हो जाएगी और लोग हराम रिश्तों को तवज्जो देंगे।

नस्ल-ए-ज़िना का बढ़ना

जब समाज में ज़िना आम हो जाएगा, तो इससे पैदा होने वाली औलादों की तादाद भी बढ़ जाएगी। ऐसी औलादें जिनका न कोई सही शरई रिश्ता होगा, न ही पारिवारिक मूल्यों की समझ। ये लोग समाज में कई तरह की बुराइयों को जन्म देंगे, जैसे फ़साद, जुर्म, और इखलाकी पतन। उनका ताल्लुक ना सिर्फ़ शरीअत से कट जाएगा, बल्कि वो इंसानी रिश्तों की अहमियत को भी नहीं समझेंगे।

इखलाकी पतन की निशानी

नस्ल-ए-ज़िना का बढ़ना ये भी दर्शाता है कि लोग दीन और शरीअत से दूर हो जाएंगे। जब ज़िना आम होगा, तो रिश्तों की पवित्रता और पाकीज़गी खत्म हो जाएगी। लोग अपनी ख्वाहिशात के पीछे भागेंगे, और इस्लाम के दिए हुए उसूलों को भुला देंगे। हदीसों में यह बताया गया है कि क़यामत के करीब लोग इस कदर गिर जाएंगे कि ज़िना खुलेआम किया जाएगा, और कोई उन्हें रोकने वाला नहीं होगा।

समाज पर इसका असर

नस्ल-ए-ज़िना के बढ़ने का असर सिर्फ़ एक शख्स तक महदूद नहीं रहेगा, बल्कि पूरा समाज इस बुराई से मुतास्सिर होगा। ऐसी औलादें जिनके पास इस्लामी तालीमात और पारिवारिक आधार नहीं होंगे, समाज को कमजोर करेंगी। यह दौर उस वक्त का संकेत है जब दुनिया इखलाकी तौर पर इतनी गिर जाएगी कि हर तरफ फसाद और बे-इंसाफ़ी का बोलबाला होगा।

निष्कर्ष

नस्ल-ए-ज़िना का इज़ाफा एक बहुत बड़ी निशानी है कि क़यामत का वक्त करीब है। यह हमें इस बात की याद दिलाता है कि इखलाकी पतन और शरीअत से दूरी इंसानियत को किस कदर तबाही की तरफ ले जाती है।

Barish mein khushboo ka zahoor: Khushboo wali barishen jo zameen ko pavitra karengi.

9. Qayamat kab aayegi – नवीं निशानी?

बारिश में खुशबू का ज़हूर क़यामत की एक खास और बेहद प्यारी निशानी होगी। इस निशानी का मतलब है कि आख़री वक्त में ऐसी बारिशें होंगी जिनमें एक अलग तरह की खुशबू होगी, जो पूरी ज़मीन को पाक और पवित्र कर देंगी।

खुशबू वाली बारिश का मकसद

हदीसों में इसका जिक्र आता है कि क़यामत के करीब, जब दुनिया फसाद और गुनाहों से भर चुकी होगी, तो अल्लाह अपनी रहमत से एक खास तरह की बारिश भेजेगा। यह बारिश सिर्फ पानी की नहीं होगी, बल्कि इसमें एक खास खुशबू होगी, जिससे पूरी ज़मीन पाक और साफ़ हो जाएगी। यह बारिश अल्लाह की रहमत और उसकी तरफ से दी गई आखिरी निशानियों में से एक होगी।

खुशबू वाली बारिश का असर

इस खुशबू वाली बारिश का सबसे बड़ा असर यह होगा कि दुनिया में बचे हुए मोमिन और नेक लोग इस बारिश की वजह से ज़मीन से उठा लिए जाएंगे। हदीसों में आता है कि यह बारिश इंसानों के गुनाहों को धोने के लिए नहीं, बल्कि धरती पर बचे हुए मोमिनों को राहत और राहत अता करने के लिए होगी। यह बारिश उन लोगों को अल्लाह के पास बुलाने का जरिया होगी, जो उस वक्त तक सही रास्ते पर कायम रहे होंगे।

इसका मतलब यह भी है कि इस निशानी के बाद दुनिया में सिर्फ फसाद और गुनाहों में लिपटे लोग रह जाएंगे, जिनपर क़यामत की असल घटनाएं बरपा होंगी। यह बारिश नेक और मोमिन लोगों को एक सुकून देने वाली होगी और उन्हें अल्लाह की तरफ से इनाम के तौर पर भेजी जाएगी।

इससे मिलने वाली सीख

खुशबू वाली बारिश क़यामत के करीब एक खास निशानी होगी, जो मोमिनों को दुनिया की गंदगी और फसाद से दूर कर देगी। यह हमें यह सिखाती है कि चाहे फसाद और गुनाहों से भरी दुनिया हो, लेकिन अल्लाह अपने नेक बंदों को हमेशा याद रखता है और उन्हें राहत देता है। हमें अपने ईमान को मजबूत रखने और अल्लाह की रहमत की उम्मीद करने की जरूरत है।

निष्कर्ष

खुशबू वाली बारिश क़यामत की एक प्यारी निशानी है, जो अल्लाह की तरफ से नेक और मोमिन लोगों के लिए एक खास इनाम के तौर पर आएगी। यह बारिश उन्हें दुनिया की फितनों से उठाकर अल्लाह के करीब ले जाएगी, और ज़मीन को फसादियों के लिए छोड़ दिया जाएगा।

Yahudi aur Musalmano ke darmiyan jang: Aakhri samay mein Musalmano aur Yahudiyo ke darmiyan jang ho gi.

10. Qayamat kab aayegi – दसवीं निशानी?

यहूदी और मुसलमानों के बीच जंग क़यामत की एक महत्वपूर्ण और गंभीर निशानी है। यह उस समय की ओर इशारा करती है जब आख़िरी दौर में मुसलमानों और यहूदियों के बीच एक महा संघर्ष होगा, जो ना सिर्फ़ धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी प्रभाव डालेगा।

जंग का पृष्ठभूमि

क़ुरआन और हदीस में यह जिक्र मिलता है कि आख़िरी समय में मुसलमानों और यहूदियों के बीच तनाव बढ़ेगा। यह तनाव धार्मिक मतभेदों, राजनीतिक मुद्दों और ऐतिहासिक कारणों से उत्पन्न होगा। इस संघर्ष की जड़ें इतिहास में निहित हैं, जिसमें विभिन्न घटनाओं ने दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा की है।

जंग का कारण

यह जंग कई कारणों से हो सकती है:

  1. धार्मिक मतभेद: इस्लाम और यहूदी धर्म में कई अहम अंतर हैं, जिनके कारण दोनों समुदायों के बीच टकराव हो सकता है।
  2. राजनीतिक मुद्दे: यहूदी और मुसलमानों के बीच ऐतिहासिक और राजनीतिक विवाद, जैसे फिलिस्तीनी मुद्दा, भी इस संघर्ष को बढ़ावा देंगे।
  3. सामाजिक कारक: समाज में बढ़ते तनाव और नफरत के चलते यह जंग भड़क सकती है।

जंग का प्रभाव

इस जंग का असर केवल दोनों समुदायों तक सीमित नहीं रहेगा। इससे पूरी दुनिया प्रभावित होगी। यह संघर्ष एक व्यापक स्तर पर होगा, जिसमें ना सिर्फ़ लोग बल्कि देशों और साम्राज्यों का भी टकराव होगा। यह एक ऐसे युग की शुरुआत करेगा जहां इंसानियत, इखलाकीता और धार्मिक सहिष्णुता को बहुत बड़ा खतरा होगा।

संघर्ष के समय की पहचान

हदीसों में बताया गया है कि यह जंग तब होगी जब मुसलमान अपनी ताकत को खो देंगे और उन्हें अपनी पहचान को बचाने के लिए जंग में शामिल होना पड़ेगा। इस समय, अल्लाह अपने नेक बंदों को सहायता देगा और उन्हें सही रास्ते पर चलने की ताकत देगा।

निष्कर्ष

यहूदी और मुसलमानों के बीच जंग क़यामत की एक गंभीर और आखिरी निशानी है, जो हमें यह सिखाती है कि संघर्षों से केवल नफरत और बर्बादी आती है। इस जंग के दौरान इंसानियत को खतरा होगा, और यह हमारे लिए एक चेतावनी है कि हम आपसी समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा दें। हमें एक-दूसरे के धर्म और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए, ताकि हम ऐसी कठिनाइयों से बच सकें।

इस जंग का अंत केवल विनाश में नहीं होगा, बल्कि यह हमें यह याद दिलाने का मौका देगा कि हमें अपने इखलाक और तालीमात पर अमल करना चाहिए, ताकि हम “आपस में सहयोग और समझदारी के साथ एक ऐसा समाज बना सकें जो तरक्की और खुशहाली की मिसाल पेश करे।”

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  • Islamichindi.com के मुसन्निफ़ इस्लामी मालूमात, क़ुरआन-ओ-हदीस और तारीख़ के माहिर हैं। बरसों से इस्लामी तालीमात को सहीह और मुसद्दक़ तरीके़ से अवाम तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। इनका मक़सद है के आम ज़बान में लोगों तक दीन-ए-इस्लाम की हक़ीक़ी तालीमात पहुँचाई जाएँ।

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Sher Mohammad Shamsi

Islamichindi.com के मुसन्निफ़ इस्लामी मालूमात, क़ुरआन-ओ-हदीस और तारीख़ के माहिर हैं। बरसों से इस्लामी तालीमात को सहीह और मुसद्दक़ तरीके़ से अवाम तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। इनका मक़सद है के आम ज़बान में लोगों तक दीन-ए-इस्लाम की हक़ीक़ी तालीमात पहुँचाई जाएँ।

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