दोस्तों, कुरआन में जिन नबियों का ज़िक्र आता है, उनमें से एक बेहद ख़ास शख़्सियत हैं हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम। ज़रा सोचिए, उनका ज़िक्र कुरआन मजीद में सिर्फ़ दो जगहों पर हुआ है – लेकिन जितना कम ज़िक्र, उतनी ही बुलंद उनकी शख़्सियत! अब सवाल उठता है, आख़िर क्यों?
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी से सब्र, इल्म और इंसाफ़ का सबक सीखें। जानिए उनके बेहतरीन किरदार और अल्लाह से मिले बुलंद मक़ाम के बारे में! अब पढ़ें और अपने ईमान को मज़बूत बनाएं।
कुरआन की सूरह मरयम में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं:
“और याद करो कुरआन में इदरीस को, बिला शुबहा वह सच्चे नबी थे और हमने उनका मुक़ाम बुलन्द किया।” (मरयम 19:56)
इसी तरह सूरह अंबिया में इदरीस अलैहिस्सलाम को सब्र करने वाले नबियों की फ़ेहरिस्त में शामिल किया गया है:
“और इस्माईल, इदरीस, और ज़ुलकिफ़्ल—इनमें से हर एक था सब्र करने वाला।” (अंबिया 21:85)
तो दोस्तों, इतना ऊँचा मुक़ाम आख़िर क्यों? हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की शख़्सियत में ऐसा क्या ख़ास था, जिसने उन्हें बाकी नबियों से अलग किया?
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की बुलंद शख़्सियत
इतिहासकारों के मुताबिक, हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का ताल्लुक बाबिल से था। उनकी तालीम हज़रत शीस बिन आदम अलैहिस्सलाम से हुई, और जब वो समझने की उम्र में पहुंचे, तो उन्हें नुबूवत के रुतबे से सरफ़राज़ किया गया। उन्होंने फसादियों को हिदायत दी, मगर ज़्यादातर लोग उनकी बात मानने से इंकार करते रहे।
इसके बावजूद, एक छोटी ईमानदार जमाअत उनके साथ हो गई, और वह मिस्र की तरफ़ हिजरत कर गए। वहाँ नील नदी के किनारे बसकर उन्होंने अल्लाह का पैग़ाम फैलाना जारी रखा। कहा जाता है कि उस दौर में 72 अलग-अलग ज़ुबानें बोली जाती थीं, और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम उन सभी में तब्लीग़ किया करते थे। यह अल्लाह की ख़ास अता थी।
हज़रत इदरीस: इल्म के पहले शिक्षक
एक दिलचस्प रिवायत के अनुसार, हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम पहले इंसान थे जिन्होंने कलम का इस्तेमाल किया। उन्होंने सिर्फ़ ज़ुबानी हिदायतें ही नहीं दीं, बल्कि लिखने का तरीका अपनाकर इल्म को फैलाने का ज़रिया बने। उनका इल्म, हिकमत, और फ़लसफ़ा हमें सिखाता है कि एक सच्चा नबी सिर्फ़ अपनी ज़ुबान से ही नहीं, बल्कि अपने लिखे हुए से भी इंसानियत को रोशन करता है।
तालीम और नसीहतें जो आज भी ज़िंदा हैं
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने सिर्फ़ दीन का पैग़ाम नहीं दिया, बल्कि उन्होंने इंसानियत को तरक़्क़ी की राह दिखाई। उनके तलबा ने दो सौ बस्तियों को आबाद किया। उन्होंने इंसानों को कानून और इंसाफ़ का रास्ता दिखाया। उनके दौर में दुनिया चार हिस्सों में बांटी गई, और हर हिस्से के लिए एक हाकिम मुक़र्रर किया गया।
उन्होंने हमें सिखाया कि सच्चाई और अदल व इंसाफ़ का रास्ता ही सबसे बेहतरीन है। उन्होंने इंसानियत को क़ानून का दर्जा दिया और ताकीद की कि अल्लाह का कानून सबसे ऊपर रहेगा।
नसीहत का मतलब क्या होता है?
नसीहत का अर्थ और महत्व
नसीहत का मतलब होता है किसी को नेक सलाह देना या अच्छाई की तरफ़ मार्गदर्शन करना। यह एक ऐसा अमल है जो इंसान के दिल को बेहतर बनाने और उसकी ज़िंदगी को सही दिशा देने में मदद करता है। नसीहत में सच्चाई, ईमानदारी, और भलाई का पैगाम छिपा होता है। यह व्यक्ति के अंदर सुधार लाने और उसके किरदार को संवारने का एक तरीका है। चाहे वह धार्मिक हो, सामाजिक हो, या व्यक्तिगत, नसीहत हमेशा लोगों के भले के लिए होती है।
नसीहत की अहमियत
नसीहत इंसान को गुमराही से बचाकर सही राह दिखाने का जरिया है। इसे इस्लाम में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। हदीस में भी नसीहत को ईमान का हिस्सा बताया गया है। यह एक ऐसा अमल है जो केवल बोलने तक सीमित नहीं, बल्कि सामने वाले के लिए सच्ची हमदर्दी और उसकी भलाई की नीयत से किया जाता है। नसीहत देने वाले का लहज़ा नर्म और शफक़त भरा होना चाहिए, ताकि सुनने वाले को यह दिल से मंज़ूर हो।
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की नसीहतें
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की तालीम हमें आज भी राह दिखाती है। उन्होंने कहा:
- अल्लाह की नेमतों का शुक्र अदा करना इंसान की ताक़त से बाहर है।
- दुनिया की भलाई हसरत में है और बुराई नदामत में।
- अल्लाह की याद और अच्छे अमल के लिए नीयत का खालिस होना ज़रूरी है।
- झूठी क़समों से बचें और अपनी जुबान को अल्लाह की तारीफ़ से तर रखें।
नतीजा: हज़रत इदरीस की विरासत
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की नसीहतें सिर्फ़ उस दौर तक महदूद नहीं थीं, बल्कि आज भी वो इंसानियत का सबसे ऊंचा सबक देती हैं। उनके कहे सुनहरे उसूल हमारी ज़िंदगी को अल्लाह की राह पर चलने का सही तरीका सिखाते हैं। उनकी तालीम पर अमल करके हम दीन और दुनिया में कामयाबी हासिल कर सकते हैं।
इल्म, सब्र और इंसाफ़ के नबी FAQs
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम कौन थे?
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम अल्लाह के चुनिंदा नबियों में से एक थे। उन्हें इल्म, सब्र और इंसाफ़ का प्रतीक माना जाता है। कुरआन और हदीस में उनका जिक्र बताता है कि वे हिकमत और तर्जुमा-ए-ख़ुदा के पैग़ामबर थे।
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को कौन से खास खिताब मिले?
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को ‘अस्सिद्दीक’ और ‘अस्साबिर’ जैसे खिताब मिले। उन्हें पहली बार क़लम (पेन) और सिलाई का इल्म देने वाला नबी भी कहा जाता है।
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम के सब्र की कौन सी मिसालें हैं?
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने अपनी उम्मत को सब्र और हिकमत के साथ सही रास्ते पर चलने का हुक्म दिया। उन्होंने अपनी उम्मत के लोगों को शराफ़त और इंसाफ़ के सबक सिखाए, चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न रहे।
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का सबसे बड़ा कारनामा क्या है?
उनका सबसे बड़ा कारनामा इंसानों को लिखाई-पढ़ाई और सिलाई का इल्म सिखाना था। वे पहले नबी थे जिन्होंने इंसानों को आसमानी इल्म और दुनियावी हुनर का संगम सिखाया।
हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का कुरआन में किस तरह ज़िक्र है?
कुरआन में हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का जिक्र सूरह मरयम (19:56-57) में मिलता है। इसमें उन्हें सच्चाई और बुलंद मक़ाम वाला नबी बताया गया है, जिन्हें अल्लाह ने अपनी खास रहमत से बुलंदी बख्शी।
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