आज हम mitti dene ki dua “कब्र पर मिट्टी देने की दुआ” के बारे में जानेंगे। Islam हमें जिंदगी के हर एक मोड़ पर रहनुमाई देता है, चाहे वह किसी की पैदाइश का मौका हो या मय्यत की विदाई का।
हर इंसान को एक न एक दिन इस दुनिया को छोड़कर अल्लाह के पास जाना है, इसलिए हमें इस हकीकत को समझते हुए इसकी तैयारी करनी चाहिए। आइए जानते हैं इस्लामिक तरीके से कब्र पर मिट्टी डालने की दुआ और तरीका।
Qabar par mitti dene ka tareeqa: mitti dene ki dua
जब किसी का इंतकाल हो जाता है और जनाजा दफन के लिए कब्र में रख दिया जाता है, तो कब्र पर मिट्टी देने का एक खास तरीका है। इस्लाम में हिदायत दी गई है कि कब्र पर तीन बार मिट्टी डाली जाए। कुछ लोग इसे पांच बार डालते हैं, मगर सही तरीका तीन बार मिट्टी डालने का ही है। mitti dene ki dua
Prayer for pouring soil on the grave: (Qabar par mitti dene ki dua)
मिट्टी डालते वक्त हर बार एक दुआ पढ़ी जाती है, जो नीचे दी गई है: mitti dene ki dua
न. | कैसे मिट्टी डाले. | Qabar par mitti dene ki dua (दुआ) | मतलब |
1 | पहली बार मिट्टी डालते वक्त | “मिन्हा खलक ना कुम” | अल्लाह ने हमें इसी “Soil” मिट्टी से पैदा किया। |
2 | दूसरी बार मिट्टी डालते वक्त | “व फिहा नोइदोकुम” | और इसी “Soil” मिट्टी में हमें लौटना है। |
3 | तीसरी बार मिट्टी डालते वक्त | “व मिन्हा नुखरे जोकुम तरतुल उखरा” | और इसी मिट्टी से हमें दोबारा उठाया जाएगा |
ताकि हिसाब-किताब के दिन यानी क़यामत के वक्त अल्लाह के सामने पेश किया जा सके। पूरी नमाज़ का तरीका ”
इसके अलावा, अल्लाह के नाम से शुरू करके, अल्लाह के रसूल (PBUH) की सुन्नत पर अमल करते हुए कब्र पर मिट्टी डालना चाहिए। यह एक तरीका है जो हमें मय्यत को अल्लाह के हवाले करते वक्त दुआके साथ तस्लीम करने की याद दिलाता है।
Maut K Waqt Insan Ki Kaifiyat
मौत एक हकीकत है जिसे हर इंसान को महसूस करना है। जब इंसान के मौत का वक़्त करीब आता है, तो उसकी रूह (soul) जिस्म से निकलने लगती है। नेक इंसान की रूह आराम से निकलती है, जैसे पानी गिलास से बाहर आता है। वहीं गुनाहगार इंसान की रूह बड़ी तकलीफ के साथ निकलती है, जैसे कांटेदार झाड़ी को गीले कपड़े में खींचा जाता है। इस दौरान इंसान एक अजीब कैफियत (हालत) से गुजरता है, जहां वह न पूरी तरह जिंदा होता है और न मर चुका होता है।
मलाइक-ए-मौत (मौत के फरिश्ते) इस वक़्त इंसान के पास आते हैं। नेक इंसान के लिए यह फरिश्ते नूरानी शक्ल में जन्नत की खुशखबरी लेकर आते हैं, जिससे उसकी कैफियत सुकून वाली हो जाती है। जबकि गुनाहगार के लिए यही फरिश्ते खौफनाक शक्ल में आते हैं, जो उसकी रूह को डर और तकलीफ के साथ जिस्म से निकालते हैं। मौत के बाद इंसान दुनिया से पूरी तरह अलग हो जाता है और उसके अपने, माल और शोहरत सब यहीं रह जाते हैं। सिर्फ उसके अमल (कर्म) उसके साथ जाते हैं।
यह वक्त हर इंसान को याद दिलाता है कि जिंदगी सिर्फ एक इम्तिहान है। मौत के इस सफर को आसान बनाने के लिए जरूरी है कि हम नेक अमल करें और अल्लाह की रज़ा के मुताबिक अपनी जिंदगी गुजारें। मौत कोई अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है, जहां इंसान को अपने हर काम का हिसाब देना होगा। इसे भी पढ़े.. अहले बैत कौन हैं?
मरते समय क्या होता है?
जब इंसान इस दुनिया से रुख़्सत होने लगता है, तो यह सफर बेहद अजीब और हैरतअंगेज़ होता है। कुरआन और हदीस में इसका ज़िक्र मिलता है, जो हमें मरने के वक़्त होने वाले हालात को समझने में मदद करता है। इस्लाम के मुताबिक, मौत सिर्फ एक दुनिया से दूसरी दुनिया की तरफ़ सफर का नाम है। आइए, इसे आसान लहजे में समझते हैं।
1. रूह का जिस्म से निकलना
मरने के वक़्त सबसे पहली चीज़ यह होती है कि इंसान की रूह (soul) उसके जिस्म से निकलने लगती है। नेक और सालेह इंसान की रूह आसानी से निकलती है, जैसे एक बर्तन से पानी निकलता है। जबकि गुनाहगार की रूह बड़ी तकलीफ और दर्द के साथ निकलती है, जैसे कांटेदार झाड़ी को गीले ऊन में से खींचा जाए।
2. मौत के फरिश्तों का आना
मौत के वक़्त मलाइक-ए-मौत (मौत के फरिश्ते) आते हैं। नेक लोगों के लिए यह फरिश्ते नूरानी शक्ल में आते हैं और जन्नत की खुशखबरी देते हैं। गुनाहगार के लिए यही फरिश्ते डरावनी शक्ल में आते हैं और अजाब की खबर देते हैं।
3. दुनिया से रिश्ता खत्म होना
इंसान के मरते ही उसका इस दुनिया से रिश्ता खत्म हो जाता है। उसके अपने, माल, दौलत, और शोहरत सब पीछे रह जाते हैं। हदीस के मुताबिक, “इंसान के साथ उसकी तीन चीजें जाती हैं – उसके अमल (कर्म), उसके रिश्तेदार और उसका माल। लेकिन दो लौट जाते हैं और सिर्फ अमल उसके साथ रहता है।”
4. क़ब्र की शुरुआत
मरने के बाद इंसान को क़ब्र में रखा जाता है। वहां मुनकर और नकीर नाम के दो फरिश्ते आते हैं और उससे तीन सवाल पूछते हैं:
- मन्न रब्बुक? (तुम्हारा रब कौन है?)
- मा दीनेक? (तुम्हारा दीन क्या है?)
- मन्न नबीयुक? (तुम्हारे नबी कौन हैं?)
नेक इंसान सही जवाब देता है, और उसकी क़ब्र जन्नत के बागों में से एक बाग बन जाती है। जबकि गुनाहगार सही जवाब नहीं दे पाता, और उसकी क़ब्र जहन्नम के गड्ढों में से एक गड्ढा बन जाती है।
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5. आखिरत की तैयारी
मौत इस बात की याद दिलाती है कि हमें अपनी आखिरत (परलोक) के लिए तैयारी करनी चाहिए। जो भी अमल (कर्म) हम करते हैं, वही हमारे लिए काम आएगा। इसलिए, इस दुनिया में नेक अमल करना और अल्लाह की रज़ा हासिल करना बहुत जरूरी है।
नसीहत (सीख)
मौत का यह सफर हर इंसान को तय करना है। यह हकीकत है जिसे कोई झुठला नहीं सकता। इसलिए, हमें चाहिए कि अपनी ज़िंदगी को इस तरह बिताएं कि जब मौत आए, तो वह हमारे लिए खुशी और जन्नत की खबर लेकर आए।
अल्लाह से दुआ है कि वह हमें नेक अमल करने की तौफीक़ दे और हमारे आख़िरत को कामयाब बनाए।
आमीन।
FAQ:
- मिट्टी देने की दुआ कब पढ़ी जाती है?
मिट्टी देने की दुआ मय्यत को कब्र में रखने के दौरान पढ़ी जाती है। - क्या मिट्टी देने की दुआ का अरबी में पढ़ना जरूरी है?
हां, मिट्टी देने की दुआ का अरबी में उच्चारण करना जरूरी है क्योंकि यह दुआ रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत से है। - मिट्टी देने की दुआ का क्या महत्व है?
यह दुआ मृतक के लिए राहत और सुकून की प्रार्थना है और उसकी आखिरी यात्रा को आसान बनाती है। - कब्र पर मिट्टी देने का सही तरीका क्या है?
कब्र पर मिट्टी देने का सही तरीका है कि तीन बार मिट्टी डाली जाए और हर बार दुआ पढ़ी जाए। - क्या मिट्टी देने की दुआ हर किसी के लिए पढ़ी जा सकती है?
हां, यह दुआ हर मुसलमान के लिए पढ़ी जा सकती है जो इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाया जा रहा हो।
इन सवालों के जवाब देकर हम मिट्टी देने की दुआ के महत्व और उसके सही तरीके को समझ सकते हैं।
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