इस्लाम के पैग़ाम का आगाज़ बेहद रूहानी और अहम तरीक़े से हुआ। नबी ﷺ पर अल्लाह का पहला संदेश यानी वही (प्रकाशना) ग़ार-ए-हिरा में नाज़िल हुआ, जो इस्लामी इतिहास का सबसे ऐतिहासिक और रहस्यपूर्ण वाक़िया है। इस वाक़िये में नबी ﷺ पर वही का नुज़ूल (आविर्भाव) और इस्लाम की पहली बुनियादी हिदायतें शामिल हैं। ये हदीस सहिह बुख़ारी में दर्ज है, जो बताती है कि कैसे नबी ﷺ पर पहला अल्लाह का पैग़ाम आया और कैसे इसने आपकी ज़िंदगी और इंसानियत पर गहरा असर डाला।
नबी ﷺ पर पहली वही (संदेश यानी) वही !
Sahih Bukhari Hadith No. 3 समझने के लिए इस पूरी आर्टिकल पोस्ट को पढना पड़ेगा तभी समझ आयेगा
1. नबी ﷺ का तन्हाई इख़्तियार करना
जब नबी ﷺ की उम्र 40 साल के क़रीब पहुंची, तो आपको तन्हाई का शौक़ हुआ। आप अल्लाह की इबादत और उसकी मखलूक़ात (सृष्टि) पर ग़ौर करने के लिए मक्का के क़रीब ग़ार-ए-हिरा में जाया करते थे। आप वहां कई रातें अकेले गुज़ारते, अल्लाह की इबादत करते, और सोचते कि इस कायनात (ब्रह्मांड) का असल मक्सद (उद्देश्य) क्या है।
नबी ﷺ का ये अमल इस बात का इज़हार करता है कि आप हमेशा सच्चाई की तलाश में थे। दुनिया की हलचल से दूर, आप अल्लाह के करीब होने की जिद्दोजहद कर रहे थे। नबी ﷺ पर पहली वही
2. ग़ार-ए-हिरा में पहला वही का नुज़ूल
एक दिन, जब आप ग़ार-ए-हिरा में थे, अचानक अल्लाह का फरिश्ता हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आपके सामने आया। ये वाक़िया बेहद अजीब और हैरतअंगेज़ था। “नबी ﷺ पर पहली वही” फरिश्ता ने आपसे कहा, “इक़रा” यानी “पढ़ो।” लेकिन नबी ﷺ ने जवाब दिया, “मैं पढ़ना नहीं जानता।” नबी ﷺ पर पहली वही…….
हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आपको जोर से दबाया और फिर छोड़ दिया। उन्होंने दोबारा कहा, “पढ़ो।” नबी ﷺ ने फिर वही जवाब दिया। तीसरी बार, फरिश्ता ने आपको दबाया और कहा:
“अपने रब के नाम से पढ़ो, जिसने हर चीज़ को वजूद दिया, इंसान को जमे हुए ख़ून के टुकड़े से बनाया। पढ़ो, और तुम्हारा रब बेहिसाब मेहरबान है।” (Quran 96:1-3)
ये कुरआन के पहले आयात थे जो नबी ﷺ पर नाज़िल हुए। ये आयतें इस्लाम की पहली हिदायतें थीं, जिन्होंने इस्लाम के पैग़ाम का आगाज़ किया।
3. नबी ﷺ की घबराहट और हज़रत ख़दीजा رضی اللہ عنہا का साथ
पहले वही के नुज़ूल के बाद, नबी ﷺ बेहद घबराए हुए थे। आप ग़ार-ए-हिरा से दौड़ते हुए घर आए और अपनी बीवी हज़रत ख़दीजा से कहा, “मुझे ढांप दो, मुझे ढांप दो।” आपकी घबराहट इस बात का सबूत थी कि आप इस तजुर्बे से हिल गए थे। जब आपका डर ख़त्म हुआ, तो आपने हज़रत ख़दीजा को पूरा वाक़िया सुनाया और फ़रमाया, “मुझे डर है कि मेरे साथ कुछ अजीब या असामान्य घटित हुआ है।”
लेकिन हज़रत ख़दीजा ने आपको तसल्ली दी और कहा, “कभी नहीं! अल्लाह आपको कभी रुसवा नहीं करेगा। आप अपने रिश्तेदारों का ख़्याल रखते हैं, गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद करते हैं, और मेहमानों की खूब इज़्ज़त करते हैं।”
4. वाराक़ा बिन नौफल का अहम किरदार
हज़रत ख़दीजा आपको अपने चचेरे भाई वाराक़ा बिन नौफल के पास ले गईं। वाराक़ा उस दौर के पढ़े-लिखे और रूहानी इंसान थे, जिन्होंने इस्लाम से पहले ईसाइयत को अपनाया था। उन्होंने नबी ﷺ की बात सुनकर कहा, “ये वही फरिश्ता है जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास आया था।”
वाराक़ा ने आगे कहा, “काश मैं उस वक़्त ज़िंदा होता जब आपकी क़ौम आपको मक्का से निकाल देगी।” नबी ﷺ हैरान होकर बोले, “क्या वो लोग मुझे निकाल देंगे?” वाराक़ा ने जवाब दिया, “हां, जो भी इस तरह का पैग़ाम लेकर आता है, उसे मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।”
5. पहला वही और इस्लाम की शुरुआत
इस हदीस से हमें ये सिखने को मिलता है कि इस्लाम का आगाज़ कितनी सादगी और परेशानियों के साथ हुआ। नबी ﷺ पर पहली वही का नुज़ूल इस बात का इशारा था कि अल्लाह ने आपको इंसानियत के लिए अपना आखिरी पैग़ाम देने के लिए चुना। इस्लाम की शुरुआत इसी नाज़ुक मौके से हुई, और उसके बाद इस्लाम एक मुकम्मल दीन (धर्म) बनकर सामने आया, जो आज अरबों लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा है।
वही किसे कहते हैं – इस्लाम
इस्लाम में “वही” का मतलब है अल्लाह तआला का अपने पैग़म्बरों और रसूलों से बात करना या उनका मार्गदर्शन करना। यह अल्लाह की ओर से भेजा गया पैग़ाम है, जो इंसानों की हिदायत (मार्गदर्शन) के लिए आता है। अल्लाह तआला अपने नबी और रसूलों के ज़रिए इंसानों तक अपनी बात पहुँचाते हैं ताकि वो सही राह पर चल सकें।
वही की तीन मुख्य क़िस्में होती हैं:
- वही मुतलूक: जब अल्लाह तआला सीधे अपने नबी या रसूल से कलाम (बात) करते हैं।
- वही के लिए फ़रिश्ते का आना: इसमें अल्लाह तआला का पैग़ाम फ़रिश्ते, खासतौर पर हज़रत जिब्रील (अलैहिस्सलाम), के ज़रिए नबी तक पहुँचाया जाता है।
- इल्हाम या ख़्वाब: कभी-कभी अल्लाह तआला अपने नबी को ख़्वाब के ज़रिए भी हिदायत देते हैं।
पहली वही:
इस्लाम में सबसे पहली वही ग़ार-ए-हिरा में नाज़िल हुई। यह वही “सूरह अल-अलक” की शुरूआती 5 आयतें थीं, जिसमें अल्लाह तआला ने फ़रमाया:
यह पहली वही नबी करीम ﷺ के पास हज़रत जिब्रील (अलैहिस्सलाम) के ज़रिए पहुँची।
इस्लाम में वही का मक़सद इंसानियत को अंधेरे से निकालकर रोशनी की तरफ़ ले जाना है। अल्लाह तआला ने वही के ज़रिए इंसानों को तौहीद (अल्लाह की एकता), अक़ीदा, इबादत और अच्छे आमाल सिखाए।
नबी ﷺ पर नाज़िल हुई वही ही आज क़ुरआन की सूरत में मौजूद है, जो क़यामत तक आने वाली तमाम इंसानियत के लिए हिदायत और रहमत का सरचश्मा (स्त्रोत) है।
नतीजा
नबी ﷺ पर पहली वही का नुज़ूल न सिर्फ इस्लाम की बुनियाद रखता है, बल्कि ये वाक़िया इंसानियत के लिए रूहानी मार्गदर्शन भी पेश करता है। नबी ﷺ की ज़िंदगी और आपकी तब्लीग़ का ये अहम हिस्सा हमें सिखाता है कि सच्चाई और रूहानियत की तलाश में सब्र और इखलास (ईमानदारी) सबसे अहम होते हैं।
FAQs नबी ﷺ
पहली वही कब और कहां नाज़िल हुई थी?
पहली वही ग़ार-ए-हिरा में नाज़िल हुई थी, जो मक्का के क़रीब “जबल-ए-नूर” पहाड़ पर स्थित है। यह वाक़िया रमज़ान के महीने में हुआ जब नबी ﷺ 40 साल के थे।
पहली वही कौन सी आयत थी?
पहली वही “सूरह अल-अलक” की शुरूआती 5 आयतें थीं: “اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ” (अपने रब के नाम से पढ़ो, जिसने पैदा किया)।
नबी ﷺ ग़ार-ए-हिरा क्यों जाया करते थे?
नबी ﷺ ग़ार-ए-हिरा में तन्हाई में इबादत (पूजा) और तफक्कुर (सोच-विचार) के लिए जाते थे। वह अल्लाह की कुदरत पर गौर करते और शिर्क से दूर रहते थे।
वही लाने वाला कौन था?
वही लाने वाले अल्लाह के फ़रिश्ते हज़रत जिब्रील (अलैहिस्सलाम) थे। उन्होंने पहली बार वही ग़ार-ए-हिरा में नबी ﷺ को पहुँचाई।
जब पहली वही आई, तो नबी ﷺ का क्या हाल था?
जब पहली वही आई, तो नबी ﷺ घबरा गए थे और डर से कांपने लगे थे। उन्होंने अपनी पत्नी हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) से कहा: “मुझे कपड़ा ओढ़ा दो, मुझे डर लग रहा है।”
ग़ार-ए-हिरा कहां स्थित है?
ग़ार-ए-हिरा “जबल-ए-नूर” नाम के पहाड़ पर स्थित है, जो मक्के से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर है।
हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ने इस वाक़िये पर क्या किया?
हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ने नबी ﷺ को तसल्ली दी और उन्हें वरक़ा बिन नवफ़ल के पास ले गईं, जो उस समय के एक बुज़ुर्ग और अल्लाह के किताबों के जानकार थे। उन्होंने बताया कि नबी ﷺ को वही नाज़िल हुई है।
ग़ार-ए-हिरा का वाक़िया इस्लाम में क्यों अहम है?
ग़ार-ए-हिरा का वाक़िया इस्लाम की शुरुआत और नुबूवत के ऐलान का पहला क़दम था। यह वाक़िया साबित करता है कि अल्लाह ने नबी ﷺ को पूरी इंसानियत की रहनुमाई के लिए चुना।
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