तहज्जुद की दुआ: क़ुरान और हदीस की रौशनी में
तहज्जुद की नमाज़ रात के आख़िरी हिस्से में अल्लाह की ख़ुशी और रज़ा के लिए अदा की जाती है। यह इबादत न सिर्फ़ क़ुरान और हदीस में बार-बार बताई गई है, बल्कि अल्लाह के क़रीब होने का एक ख़ास ज़रिया भी है। तहज्जुद की दुआ तहज्जुद की नमाज़ को इस्लाम में एक ख़ास मुक़ाम दिया गया है, और इस वक्त में की गई दुआएँ बहुत क़ुबूल होती हैं।
तहज्जुद की फ़ज़ीलत
तहज्जुद की दुआ हदीस की रौशनी में
तहज्जुद की नमाज़ का वक़्त वो है जब अल्लाह अपने बंदों से सबसे ज़्यादा क़रीब होता है। हदीस में आया है कि अल्लाह रात के आखिरी हिस्से में आसमान-ए-दुनिया पर आता है और पुकारता है: तहज्जुद की दुआ
कौन है जो मुझसे दुआ करे ताकि मैं उसकी दुआ क़ुबूल करूं? कौन है जो मुझसे कुछ मांगे ताकि मैं उसे अता करूं? और कौन है जो मुझसे मग़फ़िरत तलब करे ताकि मैं उसे बख़्श दूं?
(सहीह अल-बुख़ारी)
इससे साफ़ ज़ाहिर है कि तहज्जुद की नमाज़ और इस वक़्त की गई दुआ का कितना अहमियत भरा मुक़ाम है। जो शख्स इस वक्त उठकर अल्लाह की इबादत करता है और दुआ करता है, अल्लाह उसकी हर हाज़त को पूरा करता है।
तहज्जुद का क़ुरान में ज़िक्र
क़ुरान-ए-पाक में भी तहज्जुद का ज़िक्र कई जगह हुआ है। अल्लाह ने अपने प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को भी तहज्जुद की नमाज़ का हुक्म दिया: हदीस की रौशनी में
और रात के कुछ हिस्से में (तहज्जुद के वक़्त) नमाज़ अदा किया करो, ये तुम्हारे लिए नफ़्ल इबादत है। उम्मीद है कि तुम्हारा रब तुम्हें मक़ामे महमूद पर क़ायम करेगा।”
(क़ुरान 17:79)
इस आयत में अल्लाह ने तहज्जुद की नमाज़ को नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिए नफ़्ल इबादत बताया और इसे उनकी ऊँची मंज़िल का ज़रिया क़रार दिया।
तहज्जुद की नमाज़ का तरीका
तहज्जुद की नमाज़ की कोई तय रकअतें नहीं हैं, ये हर शख्स अपनी ताक़त और हिम्मत के मुताबिक़ अदा कर सकता है। मगर हदीस में आया है कि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अक्सर 8 रकअतें अदा करते थे। तहज्जुद की नमाज़ रात के आखिरी तिहाई हिस्से में अदा की जाती है, यानी फजर से पहले का वक़्त सबसे बेहतर माना गया है।
तहज्जुद की दुआ
तहज्जुद की नमाज़ के दौरान कई दुआएँ की जा सकती हैं, मगर एक ख़ास दुआ है जिसे पढ़ना बहुत फ़ज़ीलत रखता है:
दुआ (हिंदी लिपि में): तहज्जुद की दुआ
अल्लाहुम्मा लकल-हम्दु, अन्त नूरुस-समावाती वल-अर्ज़, व लकल-हम्दु, अन्त क़य्युमुस-समावाती वल-अर्ज़, व लकल-हम्दु, अन्त रब्बुस-समावाती वल-अर्ज़ व मं फ़ीहिन।
अन्त अल-हक, व वादुक अल-हक, व क़वलुक अल-हक, व लिक़ाऊक अल-हक, व अल-जन्नत हक, व अन-नार हक, व अन-नबीयून हक, व मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हक, व अस-साअत हक।
अल्लाहुम्मा लका अस्लम्तु, व बिका आमान्तु, व अलेका तवक्कल्तु, व इलेका अनब्तु, व बिका खासम्तु, व इलेका हाकम्तु।
फाग़फिर ली मा कद्दम्तु व मा अख्खर्तु, व मा अस्ररतु व मा अआलन्तु, अन्त इलाही ला इलाहा इल्ला अन्त।
(सहीह मुस्लिम)
अनुवाद: ऐ अल्लाह! तमाम तारीफ़ें तेरे लिए हैं, तू आसमानों और ज़मीन का नूर है, और तमाम तारीफ़ें तेरे लिए हैं, तू आसमानों और ज़मीन का क़य्युम (संचालक) है। तमाम तारीफ़ें तेरे लिए हैं, तू आसमानों और ज़मीन का रब है और जो कुछ इनमें है।
पूरी दुआ (हिंदी में):
“हे अल्लाह! सभी प्रशंसा तेरा है, तू ही आकाशों और धरती का نور है, और सभी प्रशंसा तेरा है, तू ही आकाशों और धरती का पालन करने वाला है, और सभी प्रशंसा तेरा है, तू ही आकाशों और धरती का रब है और जो कुछ इनमें है। तू सत्य है, तेरा वादा सत्य है, तेरा वचन सत्य है, तुझसे मिलना सत्य है, जन्नत सत्य है, नरक सत्य है, नबी सत्य हैं, और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सत्य हैं, और قیامت का दिन सत्य है।
हे अल्लाह! मैंने अपने आपको तेरा हवाला कर दिया है, तुझ पर ईमान लाया हूँ, तुझ पर भरोसा किया है, तेरी ओर लौट आया हूँ, तेरे लिए ही मैंने विवाद किया है और तेरे पास ही निर्णय लाया हूँ। इसलिए, मुझे मेरे पहले किए हुए और आगे के गुनाहों को क्षमा कर दे, जो मैंने छुपाए और जो मैंने प्रकट किए। तू ही मेरा ईश्वर है, तेरे सिवा कोई ईश्वर नहीं।”
(सहीह मुस्लिम: हदीस नंबर 769)
तहज्जुद की दुआ का उर्दू तर्जुमा
ऐ अल्लाह! तमाम तारीफ़ें तेरे लिए हैं। तू ही आसमानों और ज़मीन का नूर (रोशनी) है। तमाम तारीफ़ें तेरे ही लिए हैं, तू ही आसमानों और ज़मीन का क़ायम रखने वाला है। तमाम तारीफ़ें तेरे लिए ही हैं, तू ही आसमानों और ज़मीन का रब है और जो कुछ इन में है।
ये दुआ हमें याद दिलाती है कि अल्लाह ही इस कायनात का रब है और वही सब कुछ क़ायम रखता है।
तहज्जुद का इतिहास
तहज्जुद की नमाज़ का इतिहास भी इस्लाम की शुरूआत से ही है। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की आदत थी कि वो रात के आखिरी हिस्से में उठकर अपने रब की इबादत करते और लंबी-लंबी तिलावत करते। आपके सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) भी इस इबादत को बड़े शौक़ से अदा करते थे। हज़रत उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के बारे में मशहूर है कि वो रात में अपने घर के लोगों को तहज्जुद के लिए जगाते और खुद भी नमाज़ अदा करते थे।
तहज्जुद की अहमियत
तहज्जुद की नमाज़ का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इंसान को अल्लाह का क़ुर्ब हासिल होता है। इस वक्त की गई दुआएँ सबसे ज़्यादा क़ुबूल होती हैं और इंसान अपनी दुनिया और आख़िरत के मसाइल हल कर सकता है। ये वो वक्त है जब अल्लाह की रहमत दरवाज़े खोल देती है और अपने बंदों को बिन मांगे बख़्शिश और रहमत अता करती है।
हदीस में भी तहज्जुद की नमाज़ की फ़ज़ीलत बयान की गई है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया:
तुम्हें रात की नमाज़ (तहज्जुद) का एहतिमाम करना चाहिए, क्योंकि ये तुमसे पहले के नेक लोगों का तरीका है, और ये तुम्हारे रब के करीब होने का ज़रिया है। ये तुम्हारे गुनाहों को मिटाती है और बुराइयों से बचाती है।
(तिर्मिज़ी)
नतीजा
तहज्जुद की नमाज़ वो ख़ास इबादत है जो मुसलमानों को अल्लाह के क़रीब ले जाती है। ये एक नफ़्ल नमाज़ है मगर इसकी फ़ज़ीलत और अहमियत इतनी ज़्यादा है कि इसे ज़िन्दगी का हिस्सा बनाना चाहिए। इस नमाज़ में जो दुआएं की जाती हैं, वो अल्लाह के दरबार में क़ुबूल होती हैं और बंदे की हर मुश्किल को दूर करने का ज़रिया बनती हैं।
तहज्जुद की नमाज़ के बारे में 5 अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ’s):
तहज्जुद की नमाज़ कब अदा की जाती है?
तहज्जुद की नमाज़ रात के आखिरी हिस्से में, यानी फजर से पहले, अदा की जाती है। सबसे बेहतर वक्त रात का आखिरी तिहाई हिस्सा है, जब अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को क़ुबूल करता है।
क्या तहज्जुद की नमाज़ नफ़्ल है या फ़र्ज़?
तहज्जुद की नमाज़ नफ़्ल (ऐच्छिक) है, यानी इसे अदा करना ज़रूरी नहीं, मगर इसकी बहुत फ़ज़ीलत है और यह अल्लाह के क़रीब होने का ज़रिया है।
तहज्जुद की नमाज़ में कितनी रकअतें होती हैं?
तहज्जुद की नमाज़ में कोई तय रकअतें नहीं हैं। आप अपनी हिम्मत और वक्त के मुताबिक़ 2, 4, 6, या 8 रकअतें अदा कर सकते हैं। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अक्सर 8 रकअतें अदा किया करते थे।
क्या तहज्जुद की नमाज़ के लिए सोना ज़रूरी है?
हाँ, तहज्जुद की नमाज़ के लिए सोना ज़रूरी है। यह रात की इबादत है, इसलिए इसे सोने के बाद उठकर अदा किया जाता है।
क्या तहज्जुद की नमाज़ के दौरान कोई ख़ास दुआ पढ़ी जाती है?
तहज्जुद की नमाज़ में आप अपनी मर्ज़ी से कोई भी दुआ कर सकते हैं। इसके अलावा एक ख़ास दुआ भी है जो पढ़ी जा सकती है:
“अल्लाहुम्मा लकल-हम्दु, अन्त नूरुस-समावाती वल-अर्ज़…”
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