तक़दीर पर ईमान: Sahih Muslim 7268
तर्जुमा: और मुझसे मुहम्मद बिन हातिम ने हदीस बयान की, उन्होंने कहा कि हमसे यहया बिन सईद अल-क़त्तान ने हदीस बयान की, उन्होंने कहा कि हमसे उस्मान बिन ग़यास ने हदीस बयान की, उन्होंने कहा कि हमसे अब्दुल्लाह बिन बुरैदा ने हदीस बयान की, यहया बिन यअमर और हुमाid बिन अब्दुर्रहमान से, Sahih Muslim उन्होंने कहा कि हम अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से मिले और तक़दीर के बारे में जो लोग कहते हैं, उसका ज़िक्र किया। तो अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने उसी तरह हदीस बयान की जैसे उन लोगों ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से नबी करीम ﷺ के हवाले से बयान की थी। उसमें कुछ इज़ाफ़ा था और कुछ कमी भी की गई थी। |
सारांश: यह हदीस तक़दीर (Divine Decree) के बारे में बात करती है और इसके महत्व को समझाती है। इसमें याह्या बिन यामर और हमैद बिन अब्दुर्रहमान द्वारा अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से तक़दीर पर चर्चा की गई है, जिसमें उन्होंने उमर (रज़ि.) द्वारा सुनाई गई एक हदीस का उल्लेख किया, जो पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) से मंसूब है।
इस्लाम में तक़दीर (Divine Decree) यानी अल्लाह की पूर्व निर्धारित योजना पर ईमान रखने की बड़ी अहमियत है। अल्लाह ने हर चीज़ का माप (क़दर) पहले से तय कर रखा है और जो कुछ इस दुनिया में होता है, वह अल्लाह की योजना के अनुसार ही होता है। इस्लाम में यह आस्था रखने वाले व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह तक़दीर पर यकीन करे और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाए। इसी विषय पर हमें एक महत्वपूर्ण हदीस प्राप्त होती है।
हदीस का वर्णन: Sahih Muslim
याह्या बिन यामर और हमैद बिन अब्दुर्रहमान से यह रिवायत मिलती है कि वे अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से मिले और तक़दीर पर चर्चा करने लगे। उन्होंने उमर बिन अल-ख़त्ताब (रज़ि.) द्वारा पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) से मंसूब हदीस का उल्लेख किया जिसमें तक़दीर पर ईमान रखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) ने बताया कि पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) के समय में भी कुछ लोग तक़दीर के बारे में संदेह रखते थे, और वह उन्हें यह बताते थे कि तक़दीर पर विश्वास करना अनिवार्य है। पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) ने फरमाया, “जो तक़दीर पर यकीन नहीं करता, उसके अच्छे कर्म भी कबूल नहीं होते।” यह संदेश हमें इस बात की तस्दीक़ देता है कि अल्लाह की योजना पर विश्वास करना इस्लाम के प्रमुख स्तंभों में से एक है।
तक़दीर पर ईमान: Sahih Muslim
तक़दीर पर ईमान का मतलब यह है कि हर अच्छी और बुरी चीज़ अल्लाह की मर्जी से होती है। इंसान के लिए यह ज़रूरी है कि वह यह समझे कि उसके जीवन में जो भी होता है, वह अल्लाह की इच्छा और पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार ही होता है। इस पर ईमान रखना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है, क्योंकि यह उनके आस्था के आधारभूत तत्वों में से एक है।
क़ुरआन में तक़दीर का ज़िक्र:
क़ुरआन भी हमें तक़दीर पर यकीन रखने का हुक्म देता है। अल्लाह ने अपनी किताब में फरमाया:
- “और हर चीज़ का माप हमने पहले से तय कर रखा है।” (सूरत अल-क़मर: 49)
यह आयत तक़दीर की अहमियत को और स्पष्ट करती है कि हर घटना, चाहे वह कैसी भी हो, अल्लाह की योजना के अनुसार ही होती है।
इमान के तत्व: Sahih Muslim
इस हदीस में पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) ने ईमान के बुनियादी तत्वों की व्याख्या की है:
- अल्लाह पर ईमान।
- फरिश्तों पर ईमान।
- अल्लाह की किताबों पर ईमान।
- नबियों पर ईमान।
- क़यामत के दिन पर ईमान।
- तक़दीर (अच्छी और बुरी) पर ईमान।
इन सभी तत्वों में तक़दीर पर यकीन खास अहमियत रखता है, क्योंकि यह इंसान के जीवन और उसके कर्मों को सही दिशा में ले जाने के लिए ज़रूरी है।
ईमान (Iman) क्या है?
ईमान का मतलब होता है अल्लाह और उसकी हर चीज़ पर पूरा यकीन और विश्वास रखना। इस्लामी शिक्षा में ईमान का एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, और इसे हदीस में विस्तार से समझाया गया है। हदीस के माध्यम से ईमान की परिभाषा और उसके पहलुओं को समझ सकते हैं।
एक मशहूर हदीस जिसे हदीस-ए-जिब्रईल कहा जाता है, उसमें ईमान के बारे में विशेष रूप से चर्चा की गई है:
हदीस-ए-जिब्रईल (हदीस का सारांश):
हज़रत उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने बयान किया कि एक दिन हम अल्लाह के रसूल (ﷺ) के पास बैठे हुए थे। अचानक एक व्यक्ति आया, जिसके कपड़े बहुत सफेद और बाल बहुत काले थे। उस पर सफर की कोई निशानी नहीं थी और हम में से कोई उसे पहचानता भी नहीं था। उसने नबी (ﷺ) के सामने बैठकर पूछा:
इमान क्या है?– Iman kya hai
अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने जवाब दिया:
ईमान यह है कि: The honor is that
- तुम अल्लाह पर विश्वास करो।
- उसके फ़रिश्तों पर विश्वास करो।
- उसकी किताबों पर विश्वास करो।
- उसके रसूलों पर विश्वास करो।
- आख़िरी दिन (क़यामत) पर विश्वास करो।
- और क़दर (तक़दीर) के अच्छे और बुरे पर यकीन करो।
इसके बाद उस व्यक्ति ने कहा: “आपने सच कहा।”
इस हदीस में जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) एक इंसान की शक्ल में आए थे ताकि सहाबा को ईमान और इस्लाम की शिक्षा दी जाए। इस हदीस में साफ तौर पर बताया गया है कि ईमान का मतलब सिर्फ अल्लाह पर यकीन करना ही नहीं बल्कि उसके सारे नबियों, किताबों, फरिश्तों, और क़यामत के दिन पर यकीन करना भी है। साथ ही, अल्लाह की तरफ से आने वाली हर अच्छी और बुरी तक़दीर को मानना भी ईमान का हिस्सा है।
नतीजा:
इस हदीस से यह स्पष्ट होता है कि तक़दीर पर ईमान रखना इस्लाम के बुनियादी आस्थाओं में से एक है। इसका महत्व हमें हमारे जीवन के हर पहलू में दिखाई देता है। अल्लाह की योजना पर विश्वास रखना न सिर्फ हमारे ईमान का हिस्सा है, बल्कि यह हमें जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने में भी मदद करता है। मुसलमान के लिए यह जरूरी है कि वह तक़दीर को माने और अल्लाह की योजना पर पूरी तरह भरोसा रखे, क्योंकि वही सबसे बेहतर जानने वाला है।
सम्बंधित आयतें और हदीस:
- क़ुरआन: “हर चीज़ का माप हमने पहले से तय कर रखा है।” (सूरत अल-क़मर: 49)
- हदीस: जो शख्स तक़दीर पर यकीन नहीं रखता, उसके तमाम अच्छे अमल भी कुबूल नहीं किए जाते।
यह हदीस इस्लाम के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की पुष्टि करती है और यह बताती है कि तक़दीर पर ईमान रखना मुसलमान के लिए आवश्यक है।
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ईमान FAQ’s
तक़दीर पर ईमान क्या है?
तक़दीर पर ईमान इस्लाम के छह बुनियादी ईमानों में से एक है। इसका मतलब है कि हर चीज़, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, अल्लाह के हुक्म और योजना के तहत होती है। मुसलमानों का यकीन है कि अल्लाह ने हर इंसान की ज़िंदगी और उसके हालात पहले से तय कर दिए हैं।
तक़दीर और इंसानी आज़ादी में क्या रिश्ता है?
इस्लाम में तक़दीर पर ईमान रखने का मतलब यह नहीं है कि इंसान के पास कोई आज़ादी नहीं है। इंसान को सही और गलत के बीच चुनाव करने की ताकत दी गई है, लेकिन उसका अंजाम अल्लाह की मर्जी से ही होता है।
तक़दीर पर ईमान का मुसलमान की ज़िंदगी में क्या असर पड़ता है?
तक़दीर पर यकीन रखने से इंसान को यह अहसास होता है कि जो भी होता है, वह अल्लाह की मर्जी और योजना के मुताबिक होता है। यह यकीन इंसान को मुश्किल हालात में सब्र और अल्लाह पर भरोसा रखने की ताकत देता है।
क्या इंसान तक़दीर को बदल सकता है?
तक़दीर को बदलना इंसान के बस की बात नहीं है, लेकिन दुआ, नेकी और तौबा के ज़रिए अल्लाह से मदद मांगी जा सकती है। दुआ की ताकत इतनी होती है कि यह मुश्किलों को हल कर सकती है और हालात बेहतर बना सकती है।
तक़दीर पर ईमान क्यों ज़रूरी है?
तक़दीर पर ईमान इस्लाम का एक अहम हिस्सा है, क्योंकि यह अल्लाह की कुदरत और ज्ञान को मानने का सबूत है। यह यकीन इंसान को अहंकार से बचाता है और उसे अल्लाह के करीब लाता है, साथ ही सुकून और आत्मविश्वास का एहसास कराता है।
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